Book Title: Dharmaratnaprakaranam Author(s): Shantisuri, Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha View full book textPage 2
________________ PRO नि वे द न विक्रमनी बारमी सदीमां थई गयेला, परमपूज्यपाद आचार्यवर्य श्री शान्तिसूरीश्वरजी महाराजे रचेल बा 'धर्मरत्नप्रकरण' ग्रंथ, एना नाम प्रमाणे धर्मरूपी रत्ननी प्राप्ति माटेनी भूमिका- निरूपण करे छ. एमा त्रण विभागामां अनुक्रमे सर्व धर्मस्थानोनी सामान्य भूमिका रूप एकवीश गुणोनुं वर्णन, भावभावकना लक्षण- वर्णन अने भावसाधुना लक्षण- वर्णन आवे छे. मूळ ग्रंथ प्राकृत भाषामां छंदोबद्ध होवाथी, ग्रंथ सुगम बने ए हेतुथी, ग्रंथकारे पोते जे एना उपर संस्कृतमा टीका बनावी छे. अने टीका संस्कृतमा रचवा छतां एमां ठेर ठेर जे अनेक दृष्टान्तो आपवामां आध्यां छे ते पाछा पाकृत भाषामां आपवामां आव्यां छे, ए आ ग्रंथनी ध्यान रेखेचे एवी विशेषता छे. स्व० पूज्य मुनिमहाराज श्री चतुरविजयजी महाराजे संपादित करेल आ ग्रंथ ४० वर्ष पहेलां भावनगरनी श्री आत्मानंद सभाए प्रगट कर्यो हतो, पण अत्यारे आ अथ बजारमा मळी शकतो नहीं होवाथी, अने एनी उपयोगिताने कारणे एनी हमेशां मागणी थती होवाथी, आ ग्रंथर्नु अमे पुनर्मुद्रण कर्यु छे. आमां दृष्टिदोष के बीजे कारणे कई भूल-चूक रही जवा पामी होय तो तेनी अमे क्षमा मागीए छीए. ग्रंथमा प्रारंभमां शुद्धिपत्रक आपवामां आव्युं छे ते मुजब ग्रंथ पहेलेथी सुधारी लईने पछी एनुं पठनपाठन करवा विनंती छे. -प्रकाशक मुद्रक : मणिलाल छगनलाल शाह, घी नवप्रभात प्रिन्टिंग प्रेस, घीकांटा- अमदावाद..Page Navigation
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