Book Title: Dharm Parikshano Ras Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 9
________________ नखामिन् तुं अवधार ॥ पवनवेग मुज मित्र जी, तेहनो कहो विचाररे ॥ ना धo १७॥ जव्य जीव ने तेहनोजी, किंवा अन्नव्य नर एह ॥ कदाग्रही माने नहींजी, जिनवर वचनज तेहरे ॥ जा ध० ॥ १ए ॥ मुनिवर कहे तुमे सांजलोजी, मनोवेग राय सुजाण ॥ नेमविजय ढाल बीजीएजी, प्रथम खंमनी परमाणरे ॥ ना ध० ॥ . उदा. NI पवनवेग तुज मित्र जे, उत्तम जीव ने तेह ॥ नव्य जीव करी जाणजो, एमां नहीं संदेह ॥१॥ ते माटे तमने कडं, एनो एक उपाय ॥ पामलीपुर दक्षिण दिशे, तुमे जाजो तिणे गय ॥२॥ बिडं बंधव मली एकग, अपूरव करीने वेश॥वादी लोक वसे तिहां, Nउरधर दक्षिण देश ॥३॥ ब्राह्मण नाती मली तिहां, जाग जग्ननो ठगम ॥ श्राडंबर अधिक करी, करे होमनां काम ॥४॥ होमे हिंसा डे घणी, काय विराधन थाय॥ पंचेंजि जीव मोटका, होमे अग्निमांय ॥५॥ त्यां तुमे वाद करो जइ, विप्रना उतारो नाद ॥ लान थशे तुमने घणो, जब सांजलशे साद ॥६॥ गुप्त राखजो जिनधरम, नाखजो मरम पुराण ॥ अगम थर थापा जश्, केजो कथा कुपुराण ॥ ७॥ पवनवेग १ अहंकार.Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 342