Book Title: Dharm Parikshano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 10
________________ धर्मपरि० ॥४॥ तुम मित्रनो, जाशे मन संदेह ॥ जैनधरम आदर करी, पालशे तव सही तेह ॥ ८ ॥ वाणी मुनिनी सांजली, दरख्यो हयमां मांय ॥ प्रणमीने चाल्यो तुरत, बेसी विमान उढांय ॥ ए ॥ मन चिंता करतो घणी, बंधव मलशे कयांहिं ॥ जोवाने फिरतो फिरे, | देश विदेशज त्यांहिं ॥ १० ॥ एम करतां घ्यावी मल्यो, पूर्वी कुशलनी वात ॥ मोहे विंध्या बे जणा, थया दख सुख सात ॥ ११ ॥ ढाल ३ जी. फतमल पाणीमा गश्ती तलाव, लश्कर थायो हामा रायरो-ए देशी. वीरा मारा पवनवेग कहे वात, आज मुने दरख वधामणा ॥ वीरा मारा जोयां में गमोगम, साजन पूब्या में तुम तथा ॥ १ ॥ वीरा मारा घ्यावी मल्या मुने आज, एता दिवस तुमे क्यों दता ॥ वीरा कहो धुरथी ते वात, की हां जइ श्राव्या थया बता ॥ वीरा० ॥ २ ॥ वीरा मनोवेग कड़े तव एम, देश विदेशे हुं जज्यो ॥ वीरा कौतिक दीठां अनेक, छाढीद्वीप मांहे हुं रम्यो ॥ वी० ॥ ३ ॥ वीरा काश्मीर थाने गुजरात, गौम चौड सोहामणां ॥ वीरा जोट आमीर सोजीर, कुंकण कलिंग कनोज तषां ॥ वी ॥४॥ वीरा मलबार सोरठ दालार, हीरंजज मुलतान जाणीए ॥ वीरा अंग वंश कुल्यंग ति खंग १ ॥४॥

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