Book Title: Dharm Parikshano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 7
________________ बेग एकग, बहु बंधाणो नेह ॥ नित्य आवे एकेकने, फरी फरीने मेह ॥ ॥ वातो विविध प्रकारनी, करता माहोमांद॥धर्म वखाणे आपणो, अन्यो अन्य उबांद॥ए। ढाल बीजी. रे जीवमा दीधानां फल जोय-ए देशी. मनोवेग कहे सांजलोजी, जैनधरम जग सार॥ केवली जाषित निरमलोजी, उतारे नव पार रे ना ॥ धरम समो नहीं कोय ॥ ए आंकणी ॥१॥ दान शीयल तप नावनाजी, धर्मना चार प्रकार ॥ जीवदया जतने करीजी, जे पाले नरनाररे ॥ ना ध० ॥२॥ सुक्षम बादर जाणीएजी, त्रस थावर दोय जीव ॥ सन्नीई श्रसन्नीजी, संमुर्छिम गर्नज हीवरे ॥ ना ध० ॥३॥ अनेक नेक धर्मनाजी, कहेता नावे पार ॥ तव पवनवेग बोलीउजी, ढुं नवी जाणुं लगाररे ॥ लाए ध॥३॥ त्यांची बेजण श्रावीयाजी, पुष्पदंत गुरु पास ॥ अध्यारु आदिनोज़ी, नात्र नणावे तासरे ॥ ला ध० ॥५॥ जणवा बेग बे जणाजी, ज्योतिष वैदक सार ॥ मंत्र जंत्र की मूलीजी, वेद शास्त्र अपाररे ॥ जा ध० ॥६॥ जणी गणी प्रौढ़ा थयाजी, माम्या परम थानं ॥M मनोवेग भावक जलोजी, प्रवनवेग मिथ्या कंदरे॥ना ध॥७॥ विखाने वेसी बोय

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