Book Title: Dharm Pariksha
Author(s): Bhagwandas Pandit
Publisher: Hemchandracharya Sabha
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अर्हम्
न्यायाचार्य श्री मद्यशोविजयोपाध्यायविरचिता स्वोपज्ञवृत्तिसंवलिता
धर्मपरीक्षा
एँ नमः
ऐन्द्रगिटिकोटेरनिशं यत्पादपद्मद्वये हंसालिश्रियमादधाति न च यो दोषैः कदापीक्षितः । यद्गीः कल्पलता शुभाशय भुवः सर्वमवादस्थिते
ज्ञवं यस्य च निर्मलं स जयति त्रैलोक्यनाथ जिनः ॥१॥ यन्नानमात्र गाज्जनानां प्रत्यूहको टिः प्रलयं प्रयाति । अचिन्त्यचिन्तामणिकल्पनेनं शङ्खेश्वरस्वामिनमाश्रयामः ॥ २॥ नला जिनान् गणवरान् गिरं जैनीं गुरूनपि । स्वोपज्ञां विद्धिर्मपरीक्षां विवृणोम्यहम् ||३||
इह हि सर्वोपज्ञे प्रवचने प्रविततनयभङ्गप्रमाणगंभीरे परममाध्यस्थ्यपवित्रितैः श्रीसिद्धसेन - हरिभद्रप्रभृति सूरिभिर्विशदीकृतेऽपि दुःषमादोषानुभावात्यांचिद् दुर्विदग्धोपदेशविप्रतारितानां भूयः शङ्कोदयः पादुर्भवतीति तन्निरासेन तन्मनोनैर्मल्यमाधातुं धर्मपरीक्षा नामायं ग्रन्थः प्रारभ्यते, तस्य चेयमादिगाथा
पण मिय पास जिगिंदं धम्मपरिक्खाविहिं पवक्खामि । गुरु परिवाडीसुद्धं आगमजुत्तीहिं अविरुद्धं ॥ १ ॥
प्रणम्य पार्श्वजितेन्द्र धर्मपरीक्षाविधिं प्रवक्ष्ये । गुरुपरिपाटीशुद्धं आगमयुक्तिभ्यामविरुद्धम् ||

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