Book Title: Dharm Pariksha
Author(s): Bhagwandas Pandit
Publisher: Hemchandracharya Sabha
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संग्रहणीवृत्ति. समयसारसूत्रवृत्ति.
समवायाङ्ग.
55
सिद्ध हैम. सूत्रकृतांग.
""
वृत्ति.
चूर्णि
१०४.
१०४.
१४७,
७३, ९२, ९३,१२३, १२४,१८३,२५०
चन्द्रसूरिशिष्यदेवसूरि. जिनभद्रगणि.
धनपालपंडित.
वाचकमुख्य.
****
...
२६,
३५, १२३.
...
....
१२
....
....
वृत्ति.
संस्कृत नवतत्वसूत्र.
स्थानांग.
"
३३. संघदासगणि.
३३. सिद्धसेन दिवाकर.८२,८८,१११,१५५. ८८. हरिभद्रसूरि. १०८. | हेमचन्द्रसूरि. प्रमाणत्वेनावृतानि अनिर्दिष्टग्रन्थप्रतीकानि. अत्थि अणता जीवा, २९, ३५. नाणं चरितहीणं. अनधिगमविपर्ययौ मिथ्यात्वम्. २०० परमरहस्समिसीणं.
११८.
पुढवीपमुद्दा.
१३५०
प्रदानं प्रच्छनं.
१३५.
फुडपागडमकतो.
१०६.
अनुकंपकामणिज्जर. अह सयलन्नपावा. उस्मुत्तभासमाणं. कचं इच्छेते. गुढाण परिणाम. छमत्थनाणहे. छत्थे पुण. जइ पुग्गलपरिअट्टा. णय पच्चुप्पन्न वणस्सइ. तस्स असंचेययओ.
महव्वय - अणुव्वएहि य. यत्रोभयोः समो दोषः
१२७.
२४२.
वणस्सइ कायमइगओ. वणस्सइ. काइआणं पुच्छा.
तेणं मच्छियपमुहा० दसारसिंह स्सय दुभासिएण इक्केण.
१०७,१६७,१७९,२४१,
२४५, २५४.
२४२.
१२.
वृत्ति.
""
स्याद्वादरत्नाकर (आकर).
ह.
१९७० | हितोपदेशमाला.
ग्रन्थकारनामानि.
२४२.
२८.
२९.
१५६. २३७.
लोइअमिच्छत्तं पुण. वज्जेमित्ति परिणओ. १३०. संथरणंमि असुद्धो. १३४,१३८. । सिज्जंति जत्तिआ किर.
९२, २२१.
३९.
ववहारीणं नियमा. लडूवि देवतं.
....
.....
२३०.
...
२००.
९०, १०३.
९०.
९४.
२६३.
२३५.
११२.
१३३.
१२६.
२४७.
१३८.
२६.
२६.
१५०.
२३.
१५८.
१०८.
३०.

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