Book Title: Dhammakahanuogo
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 8
________________ प्रकाशकीय आगम अनुयोग ट्रस्ट की स्थापना एवं उसके प्रकाशन : चार अनुयोगों में विभाजित जैनागमों की नामावली से प्रायः सभी स्वाध्यायशील सुपरिचित हैं। उन्हें यह जानकार प्रसन्नता होगी की समस्त जैनागमों में से संकलित तथा वर्गीकृत प्रत्येक अनुयोग का सानुवाद प्रकाशन हो रहा है। अनुयोग प्रवर्तक मुनि श्री कन्हैयालालजी "कमल" कुछ वर्षों पहले अहमदाबाद आये थे । उनके आगमन का उद्देश्य विद्वानों से सम्पर्क साधने का था। सम्पर्क में आने पर यह ज्ञात हुआ कि वे कई वर्षों से चारों अनुयोगों के विभाजन, संकलन एवं वर्गीकरण के भगीरथ कार्य में लगे हुये हैं और सांडेराव-राजस्थान से हिन्दी अनुवाद सहित गणितानुयोग का प्रकाशन भी हुआ है। किन्तु उसका प्रतियां अब अनुपलब्ध हैं। गणितानुयोग के प्रकाशन को कई विद्वानों ने उपयोगी बताया और शेष अनुयोगों के प्रकाशन की आवश्यकता भी बतायी। धर्मप्रेमी सहयोगी बन्धुओं से अनुयोगों के प्रकाशन के सम्बन्ध में विचार-विमर्श किया। सभी ने सहर्ष सहयोग देने का आश्वासन दिया। "सांडेराव-राजस्थान से प्रकाशित होने वाले अनुयोग प्रकाशन जिज्ञासु जगत् के लिए अधिक से अधिक उपयोगी बनें तथा उनका व्यापक प्रचार प्रसार हो" इस भावना से आगम अनुयोग ट्रस्ट की स्थापना अहमदाबाद में की गई। प्रस्तुत प्रकाशन: कुछ विद्वानों का प्रारम्भ में यह सुझाव रहा कि चारों अनुयोगों का सर्वप्रथम मूलमात्र का संस्करण प्रकाशित किया जावें। हिन्दी तथा गुजराती अनुवाद के संस्करण क्रमश: प्रकाशित किये जावें। तदनुसार धर्मकथानुयोग का प्रस्तुत संस्करण प्रकाशित किया गया है। किन्तु कुछ आगम प्रेमी बन्धुओं का यह विचार रहा कि मूलमात्र का संस्करण केवल विद्वानों के लिए उपयोगी रहता है और अनुवाद सहित संस्करण जिज्ञासुओं के लिए अधिक उपयोगी रहता है। यह विचार ट्रस्टी महानुभावों को अधिक उपयुक्त लगा। अत: हिन्दी अनुवाद सहित धर्मकथानुयोग का तथा हिन्दी अनुवाद सहित गणितानुयोग का द्वितीय संस्करण प्रकाशित किया जा रहा है। आभार प्रदर्शन : अनुयोग प्रकाशन परिषद् सांडेराव-राजस्थान के प्रमुख कार्यकर्ताओं ने अनुयोगों के प्रकाशन की सहर्ष अनुमति प्रदान करके और प्रकाशन के प्रारम्भ में सहयोग प्रदान करके उदारता प्रदर्शित की। इसके लिए उन सभी बन्धुओं का चिरकृतज्ञ हूं। श्री हिम्मतभाई अनुयोग प्रकाशनों की प्रकाशन व्यवस्था संभालकर श्रुत-सेवा का महान् कार्य कर रहे हैं वे मेरे मित्र हैं उनके सक्रिय सहयोग के लिए मैं सदैव आभारी हूं। . नईदुनिया प्रिन्टरी, इन्दौर के प्रबन्धक श्री छजलानी बन्धु, व्यवस्थापक श्री हीरालालजी झांझरी, श्री महेन्द्र डांगी आदि के श्रमपूर्ण सहयोग से ही धर्मकथानुयोग का मुद्रण कार्य सुचारु रूप से सम्पन्न हो सका है अत: वे धन्यवाद के पात्र हैं। प्रूफ रीडिंग आदि का महत्वपूर्ण कार्य श्री रमेशभाई मालवणिया ने हादिक लगन से करके एक प्रशंसनीय कार्य किया है। बम्बई निवासी पं. श्री जगदीशचन्द्र जी ने इस ग्रन्थ की महत्वपूर्ण अंग्रेजी प्रस्तावना लिखी हैं । अत: मैं उनका आभारी हूँ। नये प्रकाशन: धर्मकथानुयोग का हिन्दी अनुवाद सहित प्रथम संस्करण तथा गणितानुयोग का हिन्दी अनुवाद सहित द्वितीय संस्करण आगरा में मुद्रित हो रहे हैं। अग्रिम ग्राहकों एवं अर्थ सहयोगियों को अनुवाद सहित संस्करण ही अर्पित एवं प्रेषित किये जायेंगे । नये आयोजन ___ धर्मकथानुयोग और गणितानुयोग का गुजराती भाषा में अनुवाद योग्य विद्वान् कर रहे हैं। कार्य सम्पूर्ण होने पर ही मुद्रण के लिये दिये जा सकेंगे। Jain Education International For Private &Personal-Use Only www.jainelibrary.org

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