Book Title: Dhammakahanuogo
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ "कालियसुयं च इसिभासियाई तइओ य सूरपण्णत्ती । सव्वो य दिळुिवाओ, चउत्थओ होई अणुओगो ॥" "जं च महाकप्पसुयं, जाणि य सेसाणि छेयसत्ताणि । चरणकरणाणुओगोत्ति, कालियत्ये उवगयाणि ॥"२ सूर्यप्रज्ञप्ति का गणितानुयोग में और दृष्टिवाद का द्रव्यानुयोग में समावेश होता है। कथानुयोग में कथावाले आगमों का समावेश स्वयं ज्ञेय होने से उनके नाम नहीं दिये हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ में सभी जैन आगमों में से कथाओं का संकलन किया गया है और उसका नाम 'धम्मकहाणुओग" दिया गया है । अनुक्रमणिका को देखने से पता चल जाएगा कि प्रथम तीर्थकर भ० ऋषभदेव से लेकर भ० महावोर तक के श्रमण, श्रमणी, उपासक, उपासिकाओं का क्रमश: संकलन किया गया है, और अन्य तीर्थकों की कथाओं का भी समावेश इसमें किया गया है। वाचक को सर्वप्रथम आगमों को सभी कथाओं का संग्रह प्रस्तुत संकलन में उपलब्ध होगा, जिन्हें कथाओं में रस है उनके लिए प्रस्तुत कथानुयोग में आगमों की सम्पूर्ण कथा सामग्री उपलब्ध हो जायगी । पं० दलसुख मालवणिया अहमदाबाद १. क-मूलभाष्य गाथा १२४ । ख-विशेषावश्यक भाष्य, गाथा २७७६ । २. क-आवश्यक नियुक्ति गाथा, ७७७ । ख-विशेषावश्यक भाष्य गाथा, २७७७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 810