Book Title: Dhammakahanuogo
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 17
________________ (१४) चौथे स्कन्ध के तेवीस अध्ययनों का विषय-निर्देश :-- (क) पहले और दूसरे अध्ययन में भ० पार्श्वनाथ के तीर्थ में हुए श्रमणोंपासकों के कथानक १०२४३ से २८८ पर्यन्त । (ख) तीसरे अध्ययन से तेवीसवें अध्ययन पर्यन्त भ. महावीर के तीर्थ में हुए श्रमणोपासकों के और श्रमणोपासिकाओं के कथानक पृ० २८९ से ३७७ पर्यन्त । पांचवें स्कन्ध के तीन अध्ययनों का विषय-निर्देश :-- पहले अध्ययन में सात प्रवचन निन्हवों के कथानक । पृ० ३८१ । दूसरे अध्ययन में जमाली निन्हव का कथानक । पृ० ३८१ से ३९२ पर्यन्त । तीसरे अध्ययन में गोशालक का कथानक पृ० ३९३ से ४१८ पर्यन्त । छठे स्कन्ध के तेवीस अध्ययनों का विषय-निर्देश :(क) पहले अध्ययन में श्रेणिक और चेलणा के श्रृंगार को भोग वैभव को देखकर साधु-साध्वियों के "निहाणा" करने का कथानक । पृ० ४२१ से ४२३ पर्यन्त । (ख) दूसरे तीसरे और चौथे अध्ययन में रथमुसल और महाशिला कंटक युद्ध का कथानक । पृ० ४२४ से ४३६ पर्यन्त । (ग) पाँचवें अध्ययन में विजय चोर का कथानक । पृ० ४३६ से ४४४ पर्यन्त । (घ) छठे से नोवें अध्ययन पर्यन्त चार रूपक । पृ० ४४४ से ४५९ पर्यन्त । (ङ) दसवें अध्ययन से गुन्नीसवें अध्ययन पर्यन्त, मृगापुत्र आदि के कथानक । पृ० ४५९ से ४९६ पर्यन्त । (च) बीसवें अध्ययन में पूरण बाल तपस्वी का कथानक । पृ० ४९६ से ५०१ पर्यन्त । (छ) इक्कीसवें अध्ययन में देवताओं द्वारा मन से किये गये प्रश्न और भ० महावीर द्वारा मन से दिये गए उत्तर। पृ० ५०२। प्रस्तुत संकलन एवं वर्गीकरण : पूर्वोक्त समस्याएँ अल्प समय में असमाहित रहीं अतः धर्मकथानुयोग का संकलन एवं वर्गीकरण यथेष्ट आयोजन के अनुरूप अशक्य रहा। फिर भी यह प्रथम प्रयास पूर्ण सफल है। प्रस्तुत संकलन-वर्गीकरण से जिज्ञासुओं को एक पुस्तक में जैनागमों की सभी धर्मकथाएँ और उनसे सम्बन्धित विकीर्ण सामग्री संकलित एवं वर्गीकृत उपलब्ध हो रही हैं। इस धर्मकथानुयोग में कुछ धर्मकथाएँ हैं, कुछ धर्मकथाओं के कथांश हैं, कुछ रूपक हैं, कुछ संवाद हैं, कुछ प्रश्नोत्तर हैं, और कुछ उदाहरण हैं--इस प्रकार यह एक श्रीदामगंड के रूप में अनुपम है। धर्मकथाओं पर भक्तिवाद का अमित प्रभाव : प्रारम्भ में इन धर्मकथाओं का प्रस्तुतिकरण जिस रूप में हुआ था। उसी रूप में ये धर्मकथाएँ आज हमारे सामने हैं ? निर्विकल्प रूप में यह मानना उचित प्रतीत नहीं होता। क्योंकि अनेक शताब्दियों से वीतराग दर्शन पर भक्तिवाद का असीम प्रभाव चला आ रहा है। वह सहसा समाप्त होने वाला नहीं है । इन धर्मकथाओं भक्तिवाद इतना व्यापक है कि इनका मूल स्वरूप कैसा था? यह भी समझ में नहीं आता। पाठकों का कर्तव्य : धर्मकथानुयोग के संकलन एवं वर्गीकरण का यह प्रथम प्रयास है-स्वाध्याय शील साधक इस दृष्टि से ही इसका स्वाध्याय करें। यदि आप आगमों के अभ्यासी हैं? पूर्वापर का अनुसन्धान आपकी स्मृति में सदैव बना रहता है ? तो आप इस संकलन में संशोधन के लिए अपने मौलिक मन्तव्य अनुयोग ट्रस्ट अहमदाबाद के पते पर अवश्य भेजें। उचित संशोधनों पर अवश्य विचार किया जाएगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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