Book Title: Dhammakahanuogo
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 6
________________ समप्पणं - अब्भत्थणा य वंदामि वंदणिज्जे ठाणयवासीण पढमआयरिए । आगमसज्झाययरे कंठट्ठियआगमे पायं ॥१॥ अत्तारामम्मि ठिए सिरि-'अत्तारामजी'ति णामघरे । सुयपुरिसे सुयभत्ते दिवंगए तिविहजोएणं ॥२॥ जुम्म तेसि आयरियाणं संपइ सयवरिसउस्सवं पप्प । करकमलकोसमझे पुणे पुण्णोदएण अहं ॥३॥ मणि-'कमलों'पारोक्खं भत्तिब्भरनिब्भरंगलट्ठीओ। धम्मकहाणऽणुओगं एवं पणओ समप्पेमि ॥४॥ जुम्म । किचधम्मकहाणं एवं विविहजिणागमवरट्ठियाण खलु । संकलणं एत्थ कयं अप्पसुएणं, न मे किंची ॥१॥ ww wwwWWW अब्भत्थणाउरिं निरूवियाणं आयरियाणं भदतपवराणं । दिव्वाण दिव्वलोयट्ठियाण पुज्जाण ताणाणं ॥१॥ उवओगप्पा संपयकालाणं समणसुविहियाण वरो। सज्झायसीलविसए देउ सया पेरणं, भदं ॥२।। जुम्मं ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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