Book Title: Devgadh ki Jain Kala Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar Publisher: Bharatiya GyanpithPage 12
________________ 2. स्मारक 40-92 1. प्रास्ताविक 40 (अ) मन्दिर संख्या एक से इकतीस तक, (ब) लघु मन्दिर, (स) स्तम्भ, (द) प्रकीर्ण सामग्री। 2. द्वार (अ) कुंज द्वार, (ब) हाथी दरवाज़ा। 3. जैनेतर स्मारक (अ) घाटियाँ : 1. नाहरघाटी, 2. राजघाटी, (ब) सिद्ध की गुफा, (स) वराह मन्दिर, (द) दशावतार मन्दिर, (इ) सती स्तम्भ। 4. उपसंहार 92 98 3. स्थापत्य 93-121 1. मन्दिर-वास्तु का उद्भव (अ) सुमेरु : मन्दिर-स्थापत्य का आधार स्रोत, (ब) कैलास : शिखर संरचना का प्रेरक, (स) मुद्राओं पर अंकित मन्दिर-आकृतियाँ, (द) वेदिकाओं पर अंकित मन्दिर-आकृतियाँ, (इ) प्राचीन मन्दिर-स्थापत्य की दो विशेषताएँ। 2. मन्दिर-स्थापत्य का विकास : ऐतिहासिक दृष्टि 95 (अ) मौर्य-शुंग काल, (ब) शक-सातवाहन काल, (स) कुषाण काल, (द) गुप्त काल, (इ) गुप्तोत्तर काल और उसकी चार शैलियाँ, 1. गुर्जर-प्रतिहार शैली, 2. कलचुरि शैली, 3. चन्देल शैली, 4. कच्छपघात शैली। 3. देवगढ़ की मन्दिर-वास्तु : स्वरूप और प्रमुख विशेषताएँ 1. भूमि तथा उपकरण, 2. निर्माता और निर्माणकाल, 3. शैलीगत विशेषताएँ और अलंकरण। 4. देवगढ़ के जैन मन्दिर 54 1. मन्दिर संख्या 12: महामण्डप, गर्भगृह, प्रदक्षिणापथ, अन्तराल, अर्धमण्डप, प्रदक्षिणापथ का प्रवेश-द्वार, गर्भगृह का प्रवेश-द्वार, 2. मन्दिर संख्या 30, 3. मन्दिर संख्या 15, 4. मन्दिर संख्या 31, 5. मन्दिर संख्या 4, 6. मन्दिर संख्या 18, 7. मन्दिर संख्या 28, 8. मन्दिर संख्या 5, 9. मन्दिर संख्या 11, 10. शेष मन्दिर । 5. मानस्तम्भ 119 100 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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