Book Title: Devdravya Nirnay Part 01
Author(s): Manisagar
Publisher: Jinkrupachandrasuri Gyanbhandar

Previous | Next

Page 5
________________ हो तो भी मेरेको कोई हरकत नहीं है, मगर सभा में जो सत्य निर्णय ठहरे सो उसी समय आपको स्वीकार करना पड़ेगा और जिसकी प्ररूपणा झूठी ठहरे उसको उसी समय संघ समक्ष सभामें अपनी भूलका मिच्छामि दुक्कडं देना पडेगा. यह दोनों बातें अगर आपको मंजूर हो तो अपनी सहीसे सूचना दीजिये, यहांपर मौनेकादशीको उपधानकी माला का महोत्सव व दीक्षा होनेवाली है, सो होने बाद मैं इन्दोर तरफ आने को तैयार हूं. पहिले प्रतिज्ञा होनी चाहिये पीछे शास्त्रार्थ का दिवस मुकरर होनेसे अन्य मुनि महाराज भी पधारने का संभव है / संवत् 1978 मांगसर वदी 8... . मुनि-मणिसागर, रतलाम. उपर मुजब पत्र रजीष्टरी से धूलिये भेजा था, वो विहार करके सीरपुर होकर मांडवगढ आनेवाले सुना था, इसलिये सीरपुर और मांडवगढभी इस पत्र की नकल रजीष्टरी से भेजी गई थी, तीनों जगह के रज़ीष्टर पत्र उन्होंको मिल गये उनकी पहुंच आगई है और यही पत्र महावीर पत्र के अंक 16 वें में और जैन पत्र के अंक 47 वें में छपकर प्रकट भी हो चुका है. .. और रतलाम में उपधान तप की माला पहिरने का तथा 'मालवा जैन समाज सम्मेलन'का महोत्सव था, उसपर इन्दोर से स्वयंसेवक मंडल भी आया था उनके साथ इन्दोर श्रीमान् प्रतापमुनिजी को अनुक्रम से दो पत्र भेजे; उन्हों की नकल नीचे मुजब है... प्रथम पत्रकी नकल, ... श्रीमान् प्रतापमुनिजी योग्य अनुवंदना सुखशाता वंचना. महावीर पत्रके अंक 16 वें में लेख मेरी तरफ से छपाहे उसमुजब श्रीविजय धर्म सूरिजी इन्दोर आवें तब उनके पाससे सही भिजवाना, मैं इन्दोर अमेको तैयार हूं. सं० 1978 मागसर सुदी 11, मुनि मणिसागर, रतअम.

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 96