Book Title: Dashvaikalik Swadhyaya Author(s): Vruddhivijay Publisher: Vruddhivijay View full book textPage 2
________________ THAN दश स्वाध्या कालिक ARRAGE+SANSARKAR | रंगी संचरे, गोरी गढ गिरनारीरे // 1 // सोख सोहामणी मन धरो, तुम्हे निरुपम निथरे // 5 सवि अनिलाष तजी करी, पाळो शुद्धो पंथरे // सी० // 5 // पाउसजीनी पद्मिनी, गइ गुफा ||2|| 8|| मांहि तेहरे // चतुरा चीर निचोवती, दीन ऋषि रहनेमिरे // सी० // 3 // चित्त चल्यो चारि-| त्रियो, वयण वदे तव एम रे // सुख जोगवीए सुंदरी, आपणे पूरण प्रेमरे // सी० // 4 // तव || रायजादी ते जणे, भुंमा श्म स्यूं नाषेरे // वयण विरुद्ध ते बोलतां, कांश कुललाज न राखेरे // 8 | सी० // 5 // हुं पुत्री उग्रसेननी, तुं यादव कुल जायो रे // ए निरमल कुल आपणां, तो केम || कारज थायोरेसी // 6 // चित्त चळावीस एली पर, निरखी जो तं नारीरे // तो पवनाहत तरुपरे, थैश अथिर निरधारीरे // सी० // 7 // भोग जला जे परिहर्या, ते वळी वांजे जेहरे // || वमन जखी कूकर समो, कहीए कुकरमी तेहरे // सी० // // सरप अगंधन कुलतणा, करे | अगनि प्रवेशरे // पण वम्युं विष नवि लिये, जुयो जाति विशेषरे // सी० // ए॥ तिम उत्तम कुल उपना, बोमी भोग संजोगरे // फरी तेहने वाले नहीं, जो होय प्राण वियोगरे // सी॥१०॥ || चारित्र किम पाळी शके, जो न तजे अजिलाषरे॥सीदासो संकल्पथी, पग पग श्म जिन नाषेरे || Ac. Gunratrasuri M.S. 1 Jun Gun AaradhakPage Navigation
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