Book Title: Dashvaikalik Swadhyaya
Author(s): Vruddhivijay
Publisher: Vruddhivijay
Catalog link: https://jainqq.org/explore/036428/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AASARAM-AAAEX नमः श्री सर्वज्ञाय. ॥श्री वृद्धिविजयजी विरचित दशवकालिक स्वाध्याय // // सुग्रीव नयर सोहामणुजी // ए देशी // श्री गुरुपद पंकज नमोजी, वली धरी धरमनी | 8 बुद्धि // साधु क्रिया गुण नाखश्युंजी, करवा समकित शुझि॥१॥ मुनिसर धरम सयल सुखकार, | 8// तुम्हे पाळो निरतिचार मुनिसरण ए आंकणी. जीवदया संजम तवो जी, धरम ए मंगल रूप // | जेहना मनमां नित वसेजी, तस नमे सूर नर नूप // मु० // 2 // न करे कुसुम किलामणाजी, 18 विचरतो जिम तरबूंद // संतोषे वली श्रातमाजी, मधुकर ग्रही मकरंद // मु॥३॥ एणि परे मुनि घर घर भमोजी, लेतो शुद्ध थाहार // न करे बाधा कोइने जी, दीए पिंडने आधार // मु० // 4 // पहिले दशवैकालिके जी, अध्ययने अधिकार // जाख्यो ते बाराधतां जो, वृद्धिविजय | || जयकार // मु० // 5 // इति // 1 // // सोल सोहामणु पालीए, ए देशी // नमवा नेमिजिणंदने, राजुल रुमी नारीरे ॥सील सु. INIAC. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aarad Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ THAN दश स्वाध्या कालिक ARRAGE+SANSARKAR | रंगी संचरे, गोरी गढ गिरनारीरे // 1 // सोख सोहामणी मन धरो, तुम्हे निरुपम निथरे // 5 सवि अनिलाष तजी करी, पाळो शुद्धो पंथरे // सी० // 5 // पाउसजीनी पद्मिनी, गइ गुफा ||2|| 8|| मांहि तेहरे // चतुरा चीर निचोवती, दीन ऋषि रहनेमिरे // सी० // 3 // चित्त चल्यो चारि-| त्रियो, वयण वदे तव एम रे // सुख जोगवीए सुंदरी, आपणे पूरण प्रेमरे // सी० // 4 // तव || रायजादी ते जणे, भुंमा श्म स्यूं नाषेरे // वयण विरुद्ध ते बोलतां, कांश कुललाज न राखेरे // 8 | सी० // 5 // हुं पुत्री उग्रसेननी, तुं यादव कुल जायो रे // ए निरमल कुल आपणां, तो केम || कारज थायोरेसी // 6 // चित्त चळावीस एली पर, निरखी जो तं नारीरे // तो पवनाहत तरुपरे, थैश अथिर निरधारीरे // सी० // 7 // भोग जला जे परिहर्या, ते वळी वांजे जेहरे // || वमन जखी कूकर समो, कहीए कुकरमी तेहरे // सी० // // सरप अगंधन कुलतणा, करे | अगनि प्रवेशरे // पण वम्युं विष नवि लिये, जुयो जाति विशेषरे // सी० // ए॥ तिम उत्तम कुल उपना, बोमी भोग संजोगरे // फरी तेहने वाले नहीं, जो होय प्राण वियोगरे // सी॥१०॥ || चारित्र किम पाळी शके, जो न तजे अजिलाषरे॥सीदासो संकल्पथी, पग पग श्म जिन नाषेरे || Ac. Gunratrasuri M.S. 1 Jun Gun Aaradhak Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || सी० // 11 // जे कण कंचन कामिनी, अबते श्रण जोगवतो रे // त्यागी न कहीए तेहने, जो हैमन सवी जोगवतोरे // सी० // 12 // जोग संयोग जला सही, परिहरे जेह निरीहरे / त्यागी | तेहज नाषीये, तस पद नमु निस दिसरे // सी० // 13 // एम उपदेशने अंकुशे, मयगल परे | | मुनिराजरे // संयम मारगे थिर कर्या, सार्या वंबित काजरे // सी० // 14 // ए बीजा अध्यय- || | नमां, गुरु हितसीख पयासे रे // लानविजय कविरायनो, वृद्धिविजय एम नाषेरे ॥सी // 15 // इति // 2 // // पंच महाव्रत सुद्धापाले ए देशी // श्राधाकर्मी श्राहार न लीजे, निशि जोजन नवि क-|| रीए॥ राजपिमने शय्यातरनो पिंक वळी परिहरिए के // 1 // मुनिवर ए मारग अनुसरियें, जीम है नवजळ निधि तरोए // ए आंकणी // साहामो थाण्यो थाहार न लीजे, नित पिंक नवी आद-| करीये शी श्वा एम पूछी थापे, तेह न अंगी करीयें के // मु॥२॥ कंदमूल फळ बीज प्रमुख | वळी, लवणादिक सचित्त // वरजे तिम वळी नवि राखीजे, तेह संनिधि निमित्त के // मु० // 3 // | उबटणुं पानी परिहरिये, स्नान कदा नवि करीये // गंध विलेपन नवि आचरीये, अंग कुसुम WAVARASHTRAKARE Ac Gunnatasun MS Jun Gun Aara u st Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दा . * य. ** स्वाध्य नवि धरीये के // मु०॥४॥ ग्रहीन नाजन नवि वावरिये, पहेरिये नवि बाजरण // बाया कारण कालिक छत्र न धरिये, धरीये न वानह चरण के // मु०॥ 5 // दातण न करे दरपण न धरे, देखे नवि || निज रूप // तेल चोपमी न कांकसी कीज, दीजे न वस्त्रे धूप के // मु० // 6 // मांची पलंगे नवि || | बेसीजे, कीजे न विजणे वाय // गृहस्थ गेह नवि बेसीजे, विण कारण समुदाय के // मु॥७॥ | वमन विरेचन रोग चिकित्सा, अग्नि थाम्न न किजे // सोगटां सेत्रंज प्रमुख जे क्रीमा, ते पण | * सवि वर जिजेके // मु॥ 7 // पांचे इंद्रिय निज वश श्राणी, पंचाश्रव पचखी जे // पंच समिति || त्रण गुप्ती धरीने, काय रक्षा कीजे के // मु०॥ ए // उनाले आतापना लीजे, शीत शीयाले सहीये // शांत दांत थइ परिसह सहीये, थोर वरसाले रहीये // मु०॥ 10 // श्म दुःकर करणी | बहु करतां, धरतां नाव उदासो // करम खपावी केश हुआ, शीव रमणीस्यूं विलासी के // मु. X // 11 // दशवकालिक त्रीजे अध्ययनें, नाख्यो एह याचार // लाजविजय गुरु चरण पसाये, || वृद्धिविजय जयकार के // मु० // 15 // इति // 3 // // 2 // सुण सुण प्राणी रे वाणी जिन तणी, ए देशो // स्वामी सुधर्मा रे कहे जंबुप्रते, सुण सुण तुं **REAL P AC.Gunratnasuri.M.S. Gun Aaradha Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुण खाण // सरस सुधारस हंती मीठडी, वीर जीणेसर वाण // स्वा० // 1 // सूक्ष्म बादर त्रस BI स्थावर वळी, जीव विराहण टाल // मन वच कायारे त्रिविधे स्थिर करी, पहिलं व्रत नित पाल // 4 // स्वा० // 2 // क्रोधे लोभेरे भय हास्ये कररी, मिथ्या म जाखेरे वेष // त्रिकरण शुद्धेरे व्रत धारा, धजे, बीजं दीवस ने रेण // स्वा० // 3 // गामे नगरेरे वनमा विचरंतां, सचित्त अचित्त तृणमात्र॥ || काइ अण दोधुरे मत अंगीकरे, त्रीजे व्रते गुण पात्र // खा // 4 // सुर नर तिर्यच योनी संबं. धीया, मैथुन करी परिहार // त्रिविध त्रिविधेरे तुं नित पाळजे, चोथु व्रत सुखकार // स्वा // IPI॥५॥धण कण कंचण वस्तु प्रमुख वळी, सर्व सचित्त अचित्त // परिग्रह मूळ रे तेहनी परिहरी, 18 धरी व्रत पंचम चित्त // स्वाण // 6 // पंच महाव्रत एणी परे पालज्यो, टाळजो जोजन रात // पाप स्थानक सघळां परिहरी, धरो समता सविनांत / स्वा० // 7 // पुहवी पाणी रे वायु वनस्पति, अगनी ए थावर पंच // विति चउ पंचिंदी जलयर थलयरा, खयरा त्रस परपंच // स्वा॥॥ ए बकायनी बांझी विराधना, जयणा करे सवि वाण // विण जयणायेरे जीव विराधना, जांखे तिहुशण जाण // स्वा० // ए // जयणा पुरवक बोलतां बेसतां, करतां आहार निहार // पाप kHHHHHARASHEKHERE Cre PAGunratnasuri M.S.. Jun Gun Aarad!! Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || करम बंध कहीये नवि हुये, कहे जिन जगदाधार // स्वा० // 1 // जीव अजीवनेरे पहेला अोलखी, ||| कालिका | जिम जयणा तस होय // ज्ञान विना नवि जीवदया पळे, टळे नवी आरंज कोय // स्वा० // 11 // स्वाध्या || जाणपणाथीरे संवर संपजे, संवरे करम खपेय // करम यथीरे केवळ उपजे, केवळे मुगति लहेश 4-5 // स्वा० // 15 // दशवैकालिक चोथा अध्ययनमां, अर्थ प्रकाश्योरे एह // श्री गुरु लाजविजय || | पद सेवतां, वृषिविजय लहे तेह // स्वा० // 13 // इति // 4 // वीर वखाणी राणी चेलणाजी // ए देशो // सुकता आहारनो खप करोजी, साधुजी संयम | संजाल // संयम शुरू करवा नणोजी, एषणा कुषण टाल // सु० // 1 // प्रथम सज्जाय पोरसी & करीजी, अणुसर) वळी उपयोग // पात्र पमिलेहण याचरोजी, आदरी गुरु अणुयोग // सु० // है ॥गर धुवर वरसादनीजी, जीव विराहण टाल // पग पग शरिया शोधतांजी, हरिकायादिक जाल // सु० // 3 // गेह गणिका तणां परिहरोजी, जीहां गये चलचित्त होय // हिंसक कूल पण तिम तजोजी, पाप तिहां परतत जोय // सु० // 4 // निज हाथे बार उघामीने जी, पेसिये नवि || घर मांहि // बाल पशु जिनुक प्रमुखनेजी, संघटि जइयें न प्राहि // सु० // 5 // जल फल जलण X c.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RANSARKAHAS || कण लुणस्युजी, नेटता जे दिये दान // ते कल्पे नहि साधुनेजी, विहरतुं अन्न ने पान ॥सु० // 3 |6 // स्तन अंतराय बालक प्रतेजी, करीने रमतो उवेइ // दान दिये उलट जरीजी, तोहि ते साधु | है वरजेय // सु० // 7 // गर्जवंतो वली जे दोयेजी, ते पण अकलय होय // माल नोसरणी प्रमुखे / |चमीजी. आणी दीये कल्पे न सोय // सु०॥ // मूल्ये आएयुं पण मत लीयोजी, मत लीओ || करी अंतराय // विहरता थंने खंजादिकेजी, न अमको थोर वो पाय // स॥ ए॥ एणिपरें / 13 दोष सवी मीनेजी, पामोये थाहार जो शुद्धि // तो लिये देह धारण जणीजी, अण लहे तो | तपवृष्॥ि सु० // 10 // वयण लजा तृषा नुखनाजी, परिसहथी थोर चित्त // गुरु पासे रिया| वही पडीकमीजी, निमंतर साधुने नित // सु० // 11 // शुद्ध एकान्त गमे जश्जी, पझिकमी ||3 है| इरियावही सार // जोयण दोष सवि बांमिनेजो, थोर थइ करवो आहार // सु० // 12 // दश. वैकालिक पांचमेजी, अध्ययने कह्यो ए आचार॥ ते गुरु लाजविजय सेवतांजी, वृद्धिविजय जयकार // सु० // 13 // इति // 5 // ____ दान उलट जरी दीजीये, ए देशी // गणधर सुधर्म एम उपदीसे, सांजलो मुनिवर वृंदरे // ISSNESS IGunratnasuri M.S Jun Gun Aaradh Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कालिक स्वाध्या // 4 // KASA KARAAKARE स्थान अढार ए लखो, जेह दे पापना कंदरे // ग ॥१॥प्रथम हिंसा तिहां बमोए, जुन नवि || जांखीए वेंणरे // तण पण अदत्त नवि लीजीए, तजीएं सव मेहुण सयणरे // ग० // 2 // परिग्रह || य.६-७ मूळ परिहरो, नवि करो जोयण रातरे // बांडो उकाय विराधना, नेद समजी सहु नांतरे ॥ग० // || 3 // अकल्प थाहार नवि लीजीए, उपजे दोष जेह मांहो रे // धातुनां पात्र मत वावरो, गृह || तणां मुनिवर प्राही रे // ग० // 4 // गादीए मांचीए न बेसीए, वारीए शय्या पलंगरे // रात || P रहिए नविते स्थले, जिहां होवे नारी प्रसंगरे ॥ग // 5 // स्नान मजान नवि कीजीए, जीणे || 4 हुवे मन तणो दोजरे // तेह शणगार वली परिहरी, दंत नख केश तणी शोजरे // ग० // 6 // 3 बढे अध्ययने प्रकाशीयो, दसवैकालिक एह रे // लानविजय गुरु सेवतां, वृद्धिविजय लह्यो तेह | रे // ग ॥७॥इति // 6 // // कपूर हुवे अति उजलोरे, ए देशी // साचुं वयण जे लांखीये रे, साची नाषा तेह॥ सच्चा | मोसा ते कहीये रे, साचुं मृषा होय जेह रे // 1 // साधुजी करजो नाषा शुरु // करी निर्मल निज ||4|| || घुकिरे // सा // कर // ए बांकणी // केवल जूव जिहां होवे रे, तेह असच्चा जाण // साचुनहि Jun Gun Aardh Gunratnasuri MS Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | मा .. THEHARSHANKHABAR 6 जूतुं नहिरे, असच्चमोसा ते जाणरे // सा // कर ॥२॥ए चारे माहें कही रे, पहेलीने चोथी KI दोय // संयम धारी बोलवी रे, समय विचारी जोयरे // सा // कर // 3 // कठीन वयण नवि || लांखिए रे, तुकारो रोकार // कोयनो मर्म न बोलीए रे, साचो पण निर्धाररे॥ सा // कर० // 4 // || चोरने चोर नव भांखीएरे, काणाने न कहे काण // कहिए न अंधो अंधने रे, साचुं कठिन ए | जाणरे // सा // करण // ५॥जेहथी अनरथ उपजे रे, परने पीमा थाय // साचुं वयण ते जांखतां | छ रे, लानथी त्रोटो जाय रे // सा // कर // 6 // धर्मसहित हितकारीयारे, गर्वरहित समतोल // 4 थोमला ते पण मीठमारे, बोल विचारी बोलरे // सा // कर // 7 // एम सवि गुण अंगीकरी रे, परहरीरे दोष अशेष / / बोलतां साधुने हुवे नहिरे, कर्मनो बंध लवलेशरे // सा // करण // // दसवैकालिक सातमेरे, अध्ययने ए विचार // लानविजय गुरुथी लहेरे, वृद्धिविजय जयकाररे // सा // कर // ए॥ इति // 7 // // राम सीताने धीज करावे // ए देशी // कहे श्री गुरु सांनळो चेलारे, आचार ए पुन्यना SIMASANA AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aarad! Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दश वै || वेलारे // बक्काय विराहण टाळो रे, चित्त चोखे चारित्र पाळोरे // 1 // पुढवी पाषाण न जेदोरे, स्वाध्या कालिक || फळ फुल पत्रादि न बेदोरे // बोज कुंपळ वन मत फरसोर, विजणें वाय म करसोरे // 2 // वळी ||6|| अग्नि म नेटशो लारे, पीजो पाणी ननुं सदा // मत वावरो काचुं पाणी रे, एहवी वीतरा गनी वाणोरे // 3 // हिम धूवर वम उबरनारे. फल कुंशुन्या कीमी नगरां रे // नील फूल हरी| 3 अंकूरा रे, इंफाल ए आये पूरारे // 4 // स्नेहादिक नेदे जाणी रे, मत हणजो रे सूक्ष्म प्राणी रे | // पमिलेही सवि वारजोरे, उपकरणे प्रमाद म करजोरे // 5 // जयणाए मगलां जरजो रे, वाटे * चालंतां वात म करजोरे // मत ज्योतिष निमित्त प्रकासो रे, निरखो मत नाच तमासो रे॥६॥ |8 6 दीडै अणदीढं करजो रे, पाप वयण न श्रवणे धरजोरे // अणसूजतो आहार त्यजजोरे, राते || | सन्निध सवि वरजोरे // 7 // बावीस परिसह सहेजो रे, देहदुःखे फळ सदहजोरे // अणपामे | कृपण म कहेजोरे, तपश्रुतनो मद म वहिजोरे, // 7 // स्तुति गाते समता ग्रहजो रे, देश काळ ||* || जोस्ने रहेजो रे // गृहस्थ\ जाति सगा रे, मत काढजो मुनिवर कांरे // ए // न रमामो गृह- // 5 // RSSISAR**%A4%A8 Jun Gun Aaradhak DIHAc.Gunratnasuri M.S. Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * स्थना बाळरे, करो कोरीयानी संजाळरे // यंत्र मंत्र औषधना नामारे, मत करजो वली वस का|| मारे // // 10 // क्रोधे प्रोति पूरवली जायरे, वलो माने विनय पलायरे // माया मित्राश् बगडेरे, | 3 सवि गुणने लोन ते उमेरे // 11 // ते माटे कषाय ए चार रे, अनुक्रमे दमजो अणगार रे // - ||5| पशमशुं केवळ नावे रे, सरलाइ संतोष सनावे रे // 12 // ब्रह्मचारीने जाणजो नारी रे, जैसी पोप- | टने मांजारी रे // तेणे परिहरो तस परसंग रे, जब वाम धरो वळी चंग रे // 13 // रसलोलुप थ मत पोषोरे, निजकाया तप करी शोषो रे // जाणी अथीर पुद्गलनो पिमरे, व्रत पालजो पंच अखंगरे // 14 // कयं दसवैकालिके एम रे, अध्ययने आठमे तेम रे // गुरु लाजविजययो जाण्यो रे, बुध वृद्धिविजय मन बाण्यो रे, // 15 // 7 // | शेजे जश्ए लालन, शेव्रुजे जइए // ए देशी // विनय करेजो चेला, विनय करेजो // श्री | गुरु वाणा शीश धरेजो // चेला० // शी० // ए आंकणी // क्रोधी मानी ने परमादी, विनय न | शिखे वळी विषवाद॥ चेला // 30 // 1 // विनय रहित आशातना करतां, बहु नव जटके CAGACASSES Dildunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhill Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुर्गति फरतां // चे // पु० // अग्नि सर्प विष जिम नवि मारे, गुरु थासायण तेथी अधिक कालिक प्रकारे // चे // अ० // 2 // अविनयी मुखी बहुल संसारी, अविनयी मुक्तिनो नहि अधि| कारी // चे न० // अविनयी आराधक नवी थाए, कुलवालूबानी परे दूरगती पावे // चे // PII // 3 // अविनयकारी इच्छाचारी, रत्नत्रयहारी थाए जोखारी // चे० था० // कोह्या काननी कुतरी जेम, हांकी काढे अविनयी तेम // चे० // 10 // 4 // विनय श्रुत तप वळी याचार, 8 कहीए समाधीनां गम ए चार // चे० // ठा० // चार चार नेद वळी एकेक, समजो गुरु मुखथी है सुविवेक // चे० // थी। // 5 // ते चारेमा विनय ने पहेलो, धर्म विनय विण नांखे ते घेलो // चे॥ नां // मूळथकी जिम शाखा कहीए, धर्म क्रिया तिम विनयथी सहीए // चे॥ वि० R // 6 // गुरुना विनयथी लहेशो सार, ज्ञान क्रिया तप जे आचार // चे ॥जे // गरथ पखे जा जिम न होए हाट, विण गुरु विनये तिम धर्मन वाट चेला० ॥ध // 7 // गुरुनान्दो गुण मोटो | कहीए, राजापरे तस आणा वहोए // चे० // या० // अल्पश्रुती पण बहुश्रुती जाणो, गुरु साथे CHOREGARCARRESHSA AS Ac Gunratnasur M Jun Gunthe Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RECARSA%AA%ASAREAK है हववाद म ताणो // चे०॥दा॥(शास्त्र सिद्धांते तेह मनाणो॥०॥ते॥)॥॥ जेम शशहर ग्रह|| गणमां विराजे, मुनि परिवारमा तेम गुरु गाजे // चे // ते // गुरुथी अलगा मत रहो नाश, गुरु ||8 | सेव्ये सहेशो गौरव // चे // सो // ए॥ गुरुना चरणनी सेवा म चूको, तीम गुरुने वीसारी म Pil मुको // चे० // वी० // गुरु विनये गीतारथ थाशो, वंबित सवि सुख लक्ष्मी कमाशो // चे // लग || // 10 // शांत दांत विनयथा लजालु, तप जप क्रियावंत दीन दयालु // चे // वं० // गुरुकुल8/ वासे वसतो शिष्य, पूजनीय होये वीसवा वीस // 0 // वि० // 11 // दशवैकालिक नवमे अध्य 6 यने, अर्थ ए जांख्यो केवली वयणे // चे // के // इणीपरे लानविजय गुरु सेवी, वृद्धिविजय हूँ|| स्थिर लक्ष्मी लहेव // चे // लम् // 15 // इति // ए॥ ते तरीया लाइ ते तरीथा // ए देशी // ते मुनि वंदो ते मुनि वंदो, उपशम रसतरु कंदो रे // निर्मल शान कलानो चंदो, तप तेजे जेहवो दिणंदोरे // ते // 1 // ए यांकणी // पंचाश्र. | वनो करे परिहार, पंचमहाव्रत धाररे // षट् जीवकाय तणा थाधार, करतो उग्र विहाररे // ते // C. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aarad Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2 // पंच समिति त्रण गुप्ति श्राराधे, धर्मध्यान निराबाधे रे // पंचमगतिनो मारग साधे, शुज कालिक & गुणे श्म वाधेरे // ते० // 3 // क्रय विक्रय नो करे परिहार, निर्मम निरहंकार रे // चारित्र पाले स्वाध्या | निरतिचारे, चालंतो खजनी धाररे // ते // 4 // जोगने रोग कर जे जाणे, आपोपुं न वखाणे | रे // तप श्रुतरुपनो मद नवि आणे, गोपवी अंग विकाररे ॥ते॥५॥ बांमी धन कण स्वजन गेह, | थइ निःस्नेही निःस्पृह निरीहरे // खेह समाणी जाणी देह, नवि पोसे पापे जेहरे // ते॥६॥दोष | रहित आहार जे पामे, जे मुखे परिणामेरे // लतो देहसुख नवि कामे, जागतो थावे जामे रे // | ते॥७॥ रसनारसरसि नवो थावे, निर्लोनो निर्माय रे // सहे परिषद स्थिर करी काया, | अविचल जिम गिरिराय रे // ते // 7 // राते काउसग्ग करे मसाणे, जो तिहां परिसह जाणे रे / | // तो नवि चूके तेहवे टाणे, जय मनमा नवि थाणे रे // ते // ए // कोइ उपरे न धरे क्रोध, | दीये सहने प्रतिबोध रे // कर्म आठ जीपवा योध, करतो संयम शोध रे // ते // 10 // दशवैका. खिक दशमाध्ययने, एम जांख्यो आचार रे // ते गुरु लानविजयथी पामे, वृद्धि विजय जयकार RECARECRoctGKKKRANT REKRUASHLIGAICHIGAN MORA IREGunratnasurf M.S. Jun Gim Aaradhakal Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // 2 // ते॥ 11 // इति // 10 // __नमोरे नमो श्री शत्रुजय गिरिवर // ए देशी // साधुजी संयम सूधो पालो, व्रत दुषण सवि | टालो रे // दशवैकालिक सूत्र संगालो, जिनशासन अजुयालोरे ॥सा // सं०॥ 1 ॥ए आंकणी ||8 | // रोगातक परिसह संकट, परसंगे पण.धाररे // चारित्रथी मत चूको प्राणी, श्म नांखे जिन || | वाणी रे // सा // 2 // ब्रष्टाचारी जुमो कहावे, श्ह नव पर जब हारे रे // नरक निगोदतणां || | पुःख पामे, जमतो. बहु संसारे रे // सा // सं० // 3 // चित्त चोखे चारित्र आराधे, उपशमनीर अगाधे रे // जोले समता सुंदर दरोए, ते सुख संपत्ति साधेरे // सा // सं० // 4 // कामधेनु चिंतामणी सरिखं, चारित्र चित्त बाराधेरे // श्ह नव पर नव सुखदायक सम, ते सुख समता |6|| साधेरे // सा // सं० ॥५॥श्री सिङानव सूरीए रचियां, दश अध्ययन रसाला रे // मनकपुत्र || देते ते जणता, लहोए मंगलमालारे // सा० // सं० ॥६॥श्री विजयप्रनसूरिने राज्ये, बुब लान विजयने शिष्येरे // वृझिविजय विबुध श्राचार ए, गायो सकल जगीशेरे ॥सा // 20 // 7 // 19 // Arturonsstorre ANGunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhalik Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ OXIGOXOX One QOXNO // इति श्री वृद्धिविजयजी विरचित दशवकालिक सज्जाय संपूर्ण COCOOOOOOOOOOO09