Book Title: Dashvaikalik Swadhyaya
Author(s): Vruddhivijay
Publisher: Vruddhivijay

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Page 14
________________ 2 // पंच समिति त्रण गुप्ति श्राराधे, धर्मध्यान निराबाधे रे // पंचमगतिनो मारग साधे, शुज कालिक & गुणे श्म वाधेरे // ते० // 3 // क्रय विक्रय नो करे परिहार, निर्मम निरहंकार रे // चारित्र पाले स्वाध्या | निरतिचारे, चालंतो खजनी धाररे // ते // 4 // जोगने रोग कर जे जाणे, आपोपुं न वखाणे | रे // तप श्रुतरुपनो मद नवि आणे, गोपवी अंग विकाररे ॥ते॥५॥ बांमी धन कण स्वजन गेह, | थइ निःस्नेही निःस्पृह निरीहरे // खेह समाणी जाणी देह, नवि पोसे पापे जेहरे // ते॥६॥दोष | रहित आहार जे पामे, जे मुखे परिणामेरे // लतो देहसुख नवि कामे, जागतो थावे जामे रे // | ते॥७॥ रसनारसरसि नवो थावे, निर्लोनो निर्माय रे // सहे परिषद स्थिर करी काया, | अविचल जिम गिरिराय रे // ते // 7 // राते काउसग्ग करे मसाणे, जो तिहां परिसह जाणे रे / | // तो नवि चूके तेहवे टाणे, जय मनमा नवि थाणे रे // ते // ए // कोइ उपरे न धरे क्रोध, | दीये सहने प्रतिबोध रे // कर्म आठ जीपवा योध, करतो संयम शोध रे // ते // 10 // दशवैका. खिक दशमाध्ययने, एम जांख्यो आचार रे // ते गुरु लानविजयथी पामे, वृद्धि विजय जयकार RECARECRoctGKKKRANT REKRUASHLIGAICHIGAN MORA IREGunratnasurf M.S. Jun Gim Aaradhakal

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