Book Title: Dashvaikalik Churni Author(s): Jindasgani Mahattar, Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha View full book textPage 9
________________ काल भीमा- मणूसा, खेत्तदसा दस आगासपएसा, कालदसा 'बाला मंदा किडा' जहा तंदुलयेयालिए, भावदसा एते चेव दस अज्झयणा ॥ वैकालिकइदाणिं कालेत्ति दारं, तत्थ गाहा कानिक्षेपादि चूर्णी दब्वे अद्धअहाउय, उवकमे देसकाल काले य । तहय पमाणे वण्णे भावे पगयं तु भावेणं ॥११-९५०। एसा १ अध्ययने है गाहा जहा सामाइयनिज्जुत्तीए तहा परूवेतव्वा, एत्थ दिवसपमाणकालेण अधिगारो, तत्थवि ततियपोरुसीए ठविज्जइत्तिकाउं 18 तेण अधिगारो, आढत्तो य णिज्जूहिउं अवरणहकाले, तस्स पडिसेहो कज्जइ, विगतः कालो विकालः, अथवा विकालः कालः, असकलः खंडश्चेत्यनातर, विकालवेलायां परिसमाप्तं वैकालिकं, अथवा (एतत् ) विकाले पठ्यत इति वैकालिकं, अथवा दशैतानि अध्ययनानि व्यवगते दिने कृतानीति दशवकालिकं ॥ दशवकालिकमिति कः शब्दार्थो?, विकालेन निवृत्तं संकाशादिपाठाच्चातुरर्थिको ठक, 'तद्धिते बचामादि' रित्यादिवृद्धिः वैकालिकं ॥ इदाणिं सुतं, तं चउविहं-णामसुतं ठवणसुतं दव्वसुतं भावसुर्य, जहा अणुयोगदारे। एवं खधस्सवि चउक्कओ निक्खेवओ , तहेव अज्झयणस्स, तहेव णामठवणाओ दब्वभावा भाणिऊणं जहा। अणुयोगदारे, णवरं भावज्झयणस्स इमाओ निरुत्तिगाहाओ चउरो 'अज्झप्पस्साणयणं'(२९।। प०१६) गाहा, अधिगम्मन्ति य अत्था ( ३० ॥ प०१६ ) गाहा 'जह दीवा दीवसयं' गाथा (३१ ॥५० १६) ' अहविहं कम्मरयं' गाथा (॥३३॥ पा०१६) चउरोवि कंठाओ, एवं उद्देसगस्सवि चउक्कओ निक्खेवो तहेव ॥ IN॥ ५॥ 5 इदाणिं 'जेणव जं च पडुच्च' गाथा, जेण निज्जूढं सो भाणितब्बो, जं वा पटुच्च निज्जूढं जइ वा णिज्जूढाणि जाए वा परिवाडिए (जह वा) अज्झयणाणि ठवियाणि पचं कारणाणि भाणियव्याणि, 'जेणं' ति जेण एताणि दस अन्झयणाणि णिज्जूढाणि ESSASSACARPage Navigation
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