Book Title: Dashvaikalik Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar, 
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha

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Page 15
________________ + दुमपुष्पिका श्रीदशवैकालिक घूणों १ अध्ययने ॥११॥ पालीजंतीति पादपाः, पादा मूलं भण्णंति, रुत्ति पुहवी खत्ति आगासं तेसु दोसुवि जहा ठिया तेण रुक्खा. अहवा रुः पुढवा तं खायतीति रुक्खो, विडिमाणि जेण अत्थि तेण विडिमा, ण गच्छंतीति अगमा, णदीतलागादीणि तेहिं तरिजंति तेण तरवो, कुत्ति पिथिवी तीए धारिज्जति तेणं कुहा, महीए जेण रुहंति तेण महीरुहा, पुतणेहेण वा परिगिझंति तेण वच्छा, रुप्पति जम्हा तेण रोवगा, रुत्ति पृथिवी तीय जी(जा)यंतित्ति रुजगा, दुमेत्ति दारं संमत्तं । इदाणिं पुप्फत्ति दारं, तंपि चउव्विहं, जहा दुमो वक्खाणिओ तहा वक्खाणेऊण चउविहंपि दव्वपुप्फाग अहिगारो, तस्स एगावयाणि णामाणि 'पुप्फं फुलं कुसुमं' एवमादीणि, पुफियमिति किं तारकादौ पठ्यते ?, पुष्पशब्द एतत्प्रातिपदिकं तस्य नपुंसकविवक्षायां प्रातिपदिकार्थलिंगपरिणामवचनमात्रे प्रथमाम्तस्य एकवचनस्य अतो नित्यमम्भावः अतो गुणः पररूपत्वं पुष्पं, अवयवलक्षणषष्ठीसमासः, सुपो धातुप्रातिपदिकयोरिति सुप्लुक् । इदाणिं वाक्यं द्रुमपुष्पं द्रुमपुष्पिका, का रूपसिद्धिः?, दुमपुष्पशब्दस्य 'प्रागिवात्क' (पा. ५-३-७) इति वर्तमाने 'अज्ञाते' (७३) 'कुत्सिते' (७४) 'संज्ञायां' (७५) कन्प्रत्ययः, नकारलोपः, दुमपुष्पप्रातिपदिकं, स्त्रीविवक्षायां 'अजाद्यतष्टा' (पा ४। १-४) पिति टाप्प्रत्ययो भवति, पकारटकारलोपे कृते 'प्रत्ययस्थात्कारपूर्वस्यात इदाप्यसुपे (पा. ७-३-४४) ति इत्वं, अक: सवर्णदीर्घत्वं परगमने कृते दुमपुष्पिकारूपं सिद्धं । इदाणिं दुमपुष्पिकाध्ययनं, का रूपसिद्धिः १, द्रुमपुष्पिका चासो | अध्ययनं च समानाधिकरणः, षष्ठीतत्पुरुषः, दुमपुष्पिकाध्ययनरूपं सिद्धं. अथवा द्रुमपुष्फेन यत्र उपमानं क्रियते तदिदं वा द्रुमपुष्पिकाध्ययनमिति । तस्स य अज्झयणस्स इमे अत्याधिगारा एगट्ठिया, एत्थ गाहा 'दुमपुफिया य आहारएसणा ला(३७-१८) दुमपुफियत्ति वा आहारएसणत्ति वा गोयरेवि वा ततेति वा उञ्छेत्ति वा मेससरिसेत्ति वा जलोगसरिसेइवा सप्पस प्रत्ययस्थान, दुमपुष्पप्रालि (पा. ५-३.00 कारूपंत ॥११॥

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