Book Title: Dashvaikalik Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar, 
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha

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Page 19
________________ पदार्थादि . . . . .. . च . . णा . श्रीदश-1& तदिति भवति, णम ग्रहत्वे शन्दे' अस्य धातोरमप्रत्ययान्तस्येदं रूपं नम इति, यदिति सर्वनाम, अस्य स्वकृतलक्षणां षष्ठीमुत्पादयित्वा वैकालिक तस्येदं रूपं यस्येति, धर्मः पूर्वविहित एव, धर्म इति, सर्वस्मिन् काले 'सर्वैकान्यकिंयत्तदः काले दा' (पा.५-३-१५) प्रत्ययो भवति, त्वा सर्वस्य सोऽन्यतरस्यां दि (पा. ५-३-६) स आदेः, तस्येदं रूपं सदा यदा इति, 'मन ज्ञाने' अस्य धातोरस्प्रत्ययान्तस्य चेदं रूपं १ अध्ययन र मन इति, पदमतिक्रान्तं । इदानि पदार्थः-यस्मात् जीवं नरकतिर्यग्योनिकुमानुषदेवत्वेषु प्रपतंतं धारयतीति धर्मः, उक्तञ्च-'दुर्गति॥ १५॥ प्रसृतान् जीवान् , यस्माद्धारयते ततः। धत्ते चैतान् शुभे स्थाने, तस्माद्धर्म इति स्थितः ॥१॥ मंगं नारकादिषु पवडतं सो लाति मंगलं, लाति गेण्हइत्ति वुत्तं भवति, उक्किटुंणाम अणुत्तरं, ण तओ अण्णं उकिट्ठयरंति, अहिंसा नाम पाणातिवायविरती, संजमो नाम उवरमो, रागद्दोसविरहियस्स एगिभावे भवइत्ति, तवो णाम तावयति अट्ठविहं कम्मगंठिं, नासेतित्ति वुत्तं भवइ, देवा णाम दीवं आगासं तंमि आगासे जे वसंति ते देवा, अविणाम संभावणा, अहिंसातवसंजसलक्खणे धम्मे ठिओ तस्स देवा पणिवायबंधुरसिरा भवंति, माणुस्सेसु पुण का सण्णत्ति एसा संभावणा, तमिति जो पुव्वभीणओ अहिंसातवसंजमलक्खणे धम्मे ठिओ तस्स एस णिद्देसोति, जस्सत्ति अविसेस, यस्य साधुस्स निद्देसो, धम्मो पुव्वभणिओ, सदाणाम निच्चकालं, जस्स धम्मे मणो बुद्धी णाम एताणि ४ अज्झवसाणं । इदाणि पदविग्गहो-सो य दोण्हं पदाणं भवइ जेसिं परोप्परं अत्थसंबंधो जुज्जइ, एत्थ पुण पिहप्पिहाणि चेव पदाणि तेण गओ ।। चालणपसिद्धीओ उवारिं भण्णिहिंति ॥ 'कत्थइ पुच्छति सीसो (३८-२१) सीसो कम्हियि संदेहे समुप्पण्णे | पुच्छइ, आयरियो य तं तस्स सीसस्स हियट्ठाए तत्तो पुच्छातो विउणतरागं परिकहेइ, कत्थइ पुण आयरिओ अपुच्छिओ चेव सीसस्स बुद्धिवित्थारणनिमित्तं परिकहेइ सयमेव ॥ इदाणि सुत्तफासियनिज्जुत्ती वित्थारिज्जइ,एयपि अपुच्छि ओ चेव आयरिओ C4AMR. X ॥१५॥

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