Book Title: Dashvaikalik Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar,
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
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इमस्य
निक्षेपाः
सिद्धिश्च,
श्रीदश- | जो जीवो दुमपदत्याधिकारजाणओ तस्स जं सरीरगं जीवरहियं सुखरुक्खो वा पुव्वभावपण्णवणं पडुच्च जहा अयं घयकुंभो वैकालिक
आसी एस जाणगसरीरदव्वदुमो, इयाणि भवियसरीरदब्वदुमो जो जीवो दुमपदत्याधिगारं जाणिहिइ, अणागतभावपण्णवणं पडुच्च चूर्णी जहा अयं घयकुंभो भविस्सइ अयं मधुकुंभो भविस्सइ, एस भवियसरीरदव्वदुमो । इदाणि जाणगसरीरभवियसरीरवइरित्तो दव्वदुमो, १अध्ययने ।
४ सो तिविहो भवइ, तं०-एगभविओ बद्धाउओ अभिमुहणामगोत्तो य, एगभविओ जो ततो भवाओ अणंतरं दुमेसु उववज्जिस्सति, बद्धा-18 ॥१०॥
उओ णाम जो दुमेसु आउगं णिबद्धं ण ताव उववज्जइ, अभिमुहनामगोत्तो णाम जस्स पुब्बभविए णामगोत्ते पहीणयाए पएसा णिच्छूढा इलियादिद्वैतेणं सो पुब्वभवं जहाय अभिमुहनामगोओ दुमेसु उववज्जिउकामो, एस दबदुमो । भावदुमो दुविहो-आगमओ णोआगमओ य, आगमओ जो दुमाहिगारजाणओ जहा एतेहिं कम्मेहिं कएहिं उप्पज्जिस्सइ एस उवउत्तो, नोआगमओ दुमणामगोत्ताणि कम्माणि वेदितो भावदुमो भवति । सीसो आह अहो ताव असमंजसं भण्णाइ, कहं खु जो जस्स जीवस्स उवओगो सो सो चेव भविस्सइ ?, नो खलु लोए अग्गिमि उवउत्तो देवदत्तो अग्गि चेव भवइ, आयरिओ भणइ-अहो वच्छ ! अइमुद्धोऽसि, णणु णाणंति वा संवेदणंति वा अधिगमोत्ति वा चेतणंति वा भावत्ति वा एते सद्दा एगट्ठा, जीवलक्खणं चेव णाणं , ण तु णाणातो वतिरित्तो जीवो, तेण जो० स णाया, सो जं अग्गिस्स सामत्थं दहणपयणपगासणाई जाणइ, तओ अग्गिणाणायो सो णाया अव्वइरित्तो, तेण सो अग्गिसामत्थजाणओ भावग्गि चव लब्भइ, तम्हा जो जस्स जीवस्स उवओगो सो चेव भण्णइ । इदाणि दुमस्स एगट्ठियाणि-जहा सक्कसहस्सक्खवज्जपाणिपुरंदरादीणि इंदस्स एगट्ठियाणि एवं दुमस्सवि इमाई एगडियाई, 'दुमा य पादवा चेव रुक्खा गच्छा' (३५-१७) गाहा । तत्थ दुमा नाम भूमीय आगासे य दोसु माया दुमा, पादेहिं पिबंतीति पादपाः पाएसु वा
SARKARISHASKAR25
FRANAS

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