Book Title: Dash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak Author(s): Deepchand Varni Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia View full book textPage 5
________________ श्रीवीतरागाय नमः श्रीदशलक्षण धर्मे वन्धु महावा धम्मो, खमादि भावो य दसविहो धम्मो । - स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा । रयणतयं च धम्मो जीवाणं रक्खणं धम्मो ॥ --- अर्थ - तुका जो स्वभाव है वह धर्म है, अर्थात् जैसे जीव दर्शनज्ञानादि उपयोग स्वभाव तथा चेतनस्वभाव अथवा पुद्गल अचेतनत्व वा स्पर्श, रस, गंध, वर्णत्व आदि स्वभाव होता है, उत्तम - क्षमादि दश प्रकारके भाव भी धर्म हैं और रत्नत्रय रूप भी धर्म होता है तथा अहिंसा लक्षण अर्थात् जीवोंकी रक्षा करना भी धर्म है । भावार्थ यद्यपि उक्त गाथा में वस्तु के स्वभावको, उत्तम क्षमादि दश लक्षणोंको, रत्नत्रयको और अहिंसाको, इस प्रकार धर्म चार प्रकार से कहा है तथापि निश्चयसे विचार करनेपर केवल वस्तुस्वभावमें ही अन्य तीनों प्रकार गर्भित हो सकते हैं । कारण यहां पर जो धर्म शब्दकी व्याख्या की गई है, वह जीवकी अपेक्षा की गई है; इसलिये जिस प्रकार अजीवका स्वभाव जड़त्व है, उसी प्रकार 'जीवका स्वभाव चेतनत्व अर्थात् ज्ञान, दर्शन, सुखं, वीर्यादिरूप होता " है " अर्थात् जहां चेतनत्व होता है, वहां उससे अविनाभावी सम्बन्ध रखनेवाले" दर्शन और ज्ञानगुण अर्थात् देखना व जानना अवश्य ही होता है। यह कथन अभेदन की अपेक्षासे है No "Page Navigation
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