Book Title: Darshan aur Vigyan ke Pariprekshya me Pudgal Author(s): Anandrushi Publisher: Z_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf View full book textPage 4
________________ ३६४ श्री पुष्करमृनि अभिनन्दन अन्य : चतुर्व खण्ड. + HHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHH.. ला है। चतुरना स्पर्श होंगे। अकेले पुद्गल के गुण पुद्गल के गुणों का सामान्यतः पूर्व में संकेत किया है और उसके लाक्षणिक पारिभाषिक स्वरूप की भी रूपरेखा बतायी जा चुकी है । इन्हीं दोनों बातों का और अधिक स्पष्टतापूर्वक विवेचन करते हुए भगवतीसूत्र में बताया है कि पुद्गल पांच वर्ण (कृष्ण, नील, पीत, लोहित और शुक्ल), दो गंध (सुगंध और दुर्गध) पांच रस (तिक्त, कटु अम्ल, कषाय और मधुर) और आठ स्पर्श (मृदु, कठिन, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और सूक्ष्म) से युक्त होता है । ये पांच वर्ण आदि किसी भी स्थूल स्कंध में मिलेंगे किन्तु परमाणु में तो एक वर्ण, एक गंध, एक रस और दो स्पर्श होते हैं । स्पों की अपेक्षा स्कंधों के दो भेद हो जाते हैं-चतुर्पी स्कंध और अष्टस्पर्शी स्कंध । सूक्ष्म से सूक्ष्म पुद्गल स्कन्ध चतुर्पी स्कन्ध वाला है । चतुर्पी स्कन्ध में आठ स्पर्शों में से शीत, उष्ण, स्निग्ध सूक्ष्म ये चार स्पर्श मिलेंगे और परमाणु में उक्त चारों में से कोई दो स्पर्श होंगे। कोई परमाणु शीत या उष्ण होगा, स्निग्ध या सूक्ष्म होगा । मदु कठिन, गुरु, लघु इन चार स्पर्शों में से कोई भी स्पर्श अकेले परमाणु में प्राप्त नहीं होता है । क्योंकि ये चार स्पर्श मौलिक न होकर संयोगज हैं । जैन दार्शनिकों ने गुरुत्व और लघुत्व (भारीपन और हल्कापन) को मौलिक स्वभाव नहीं माना है किन्तु वे तो विभिन्न परमाणुओं के संयोगज-वियोगज परिणाम है। यदि स्कन्ध स्थूलत्व से सूक्ष्मत्व की ओर अवरोहण करते हैं तब उनमें लघुत्व और सूक्ष्मत्व से स्थूलत्व की ओर आरोहण करने पर गुरुत्व योग्यता उत्पन्न हो जाती है। इसीलिए पुद्गल को गुरु-लघु और अगुरु-लघु कहा गया है । कोई पुद्गल गुरुलघु है और कोई अगुरुलघु । पुद्गल पुद्गलत्व की अपेक्षा अनादि पारिणामिक भाव है, सादि पारिणामिक भाव नहीं है । द्रव्य की अपेक्षा सप्रदेशी पुद्गल भी होते हैं और अप्रदेशी पुद्गल भी । परमाणु पुद्गल अप्रदेशी पुद्गल है और द्विप्रदेशी स्कंध से लेकर अनन्त प्रदेशी स्कंध पुद्गल सप्रदेशी है । इसी दृष्टि से जनदर्शन में पुद्गल द्रव्य के संख्यात, असंख्यात और अनन्त प्रदेश कहे गये हैं। - द्रव्य की तरह क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा सप्रदेशी भी होता है और अप्रदेशी भी। क्षेत्र की अपेक्षा सप्रदेशित्व अप्रदेशित्व इस प्रकार समझना चाहिए कि एक आकाश प्रदेश को अवगाहन करने वाला होने से अप्रदेशी एवं अनेक आकाश प्रदेशों को अवगाहन करने वाला होने से सप्रदेशी है । काल की अपेक्षा एक समय की स्थिति वाला होने से अप्रदेशी और अनेक समय की स्थिति वाला होने से सप्रदेशी है। यह स्थिति परमाणुत्व तथा स्कन्धत्व की अपेक्षा भी, अवगाहन तथा क्षेत्रान्तर की अपेक्षा भी और भाव गुणों की अपेक्षा भी हो सकती है। माव की अपेक्षा एक गुण वाला होने से अप्रदेशी और अनेक अंश गुण वाला भी होने से सप्रदेशी है। जैसे कि कोई पुद्गल एक अंश काला वर्णगुण वाला भी होता है और अनेक अंश कालावर्ण गुण वाला भी होता है। पुद्गल विभाजन के प्रकार पुद्गल द्रव्य का विभाजन पाँच प्रकार का होता है-उत्कट, चूर्ण, खंड अतर और अनुतटिका । उत्कट-मूंग की फली का टूटना। चूर्ण-गेहूं आदि का आटा। खंड-पत्थर के टुकड़े। अतर-अभ्रक के दल । .. अनुतटिका-तालाब की दरारें। पुद्गल के बंध के भेद विभिन्न परमाणुओं के संशिलष्ट होने, मिलने, चिपकने, जुड़ने को बंध कहते हैं । इस बंध के प्रमुख दो भेद हैं-प्रायोगिक और वैससिक । प्रायोगिक बंध जीवप्रयल प्रयोग जन्य होता है और वह सादि है तथा वैनसिक बंध में व्यक्ति के प्रयत्न की अपेक्षा नहीं रहती है, वह सहज स्वभावजन्य है। इसके दो प्रकार हैं-सादि वैनसिक और अनादि वैनसिक । सादि वैनसिक बंध वह है जो बनता है बिगड़ता है और उसके बनने बिगड़ने में किसी व्यक्ति के प्रयत्न की अपेक्षा नहीं रहती है। जैसे बादलों में चमकने वाली बिजली, उल्का, मेघ, इन्द्रधनुष आदि । अनादि वैनसिक बंध तद्गत स्वभावजन्य है। स्कंध निर्माण की प्रक्रिया: जब प्रत्येक परमाणु स्वतन्त्र इकाई है तब वे परस्पर मिलकर महाकाय स्कन्धों के रूप में कैसे परिणत हो जाते हैं ? यह एक विचारणीय स्थिति है । परमाणु रूप स्वतन्त्र इकाई अपना अस्तित्व कैसे बिलीन कर देती है और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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