Book Title: Darshan aur Vigyan ke Pariprekshya me Pudgal
Author(s): Anandrushi
Publisher: Z_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf

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Page 2
________________ ० O -O Jain Education International ३६२ श्री पुष्कर मुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : चतुर्थ खण्ड जो वस्तु दूसरी वस्तु (द्रव्य या पर्याय) से मिलती रहे, मिले और गले, पृथक् हो इस प्रकार के गलन-मिलन स्वभाव वाली वस्तु को पुद्गल कहते हैं। ******* गलन और मिलन स्वभाव को इस प्रकार समझा जा सकता है कि बड़े स्कन्धों में से कितने ही परमाणु दूर होते हैं और कितने ही नवीन परमाणु जुड़ते हैं, मिलते हैं, जबकि परमाणु में से कितनी ही वर्णादि पर्यायें विलग हो जाती हैं, हट जाती हैं और कितनी ही आकर मिल जाती हैं। इसीलिए सभी स्कन्धों और परमाणुओं को पुद्गल कहते हैं और उनके लिये पुद्गल कहना सार्थक, अन्वर्थक है। जैनागमों में पुद्गल की स्वरूपात्मक व्याख्या करते हुए बताया है कि भाव की अपेक्षा पुद्गल वर्ण, गन्ध रस, स्पर्श वाला है । वह पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस और आठ स्पर्श वाला होता है । द्रव्य की अपेक्षा पुद्गल अनन्त है, क्षेत्र की अपेक्षा लोक प्रमाण है। काल की अपेक्षा कभी नहीं था, नहीं है, नहीं रहेगा, ऐसा नहीं है, किन्तु उसका अस्तित्व है । अतीत अनन्तकाल में था, वर्तमान काल में है और अनागत अनन्तकाल में रहेगा। वह ध्रुव, नियत, शाश्वत अक्षय, अव्यय, अवस्थित तथा नित्य है । गुण की अपेक्षा ग्रहण गुण वाला है। जीव द्वारा पुद्गल का ग्रहण होता भी है, वर्णादि वाला होने से स्पर्शन आदि पाँचों इन्द्रियों का विषय ज्ञ ेय है । गुगल के भेद पुद्गल द्रव्य के अपेक्षानुसार भेद किये गये हैं। जैसे, पुद्गल के दो भेद हैं-अणु और स्कम्भ स्वभाव पुद्गल और विभाव पुद्गल, यह दो भेद भी पुद्गल द्रव्य के किये गये है तथा चार भेद भी हैं - (१) स्कन्ध, (२) स्कन्ध देश, (३) स्कन्ध प्रदेश, (४) परमाणु । स्कन्ध-- दो से लेकर यावत् अनन्त परमाणुओं का एक पिंड रूप होना स्कन्ध है। कम से कम दो परमाणुओं का स्कन्ध होता है जो द्विप्रदेशी स्कन्ध कहलाता है और कभी-कभी अनन्त परमाणुओं के स्वाभाविक मिलन से एक लोकव्यापी महास्कन्ध भी बन जाता है। इस महास्कन्ध की अपेक्षा पुद्गल द्रव्य सवंगत है और शेष पुद्गलों की अपेक्षा असर्वगत है । स्कन्ध देश - स्कन्ध एक इकाई है। उस इकाई का बुद्धिकल्पित एक भाग स्कन्ध देश है । अथवा स्कन्ध के आधे भाग को स्कन्ध देश कहते हैं । स्कन्ध प्रवेश - जैनदर्शन के अनुसार प्रत्येक स्कन्ध की मूल भित्ति परमाणु है । जब तक यह परमाणु स्कन्धगत है, तब तक वह स्कन्धप्रदेश कहलाता है । अथवा पूर्वोक्त आधे भाग के भी आधे भाग को स्कन्धप्रदेश कह सकते हैं । 7 परमाणु - स्कन्ध का वह भाग जो विभाजित हो ही नहीं सकता है, उसे परमाणु कहते हैं । जब तक वह स्कन्धगत है, तब तक वह स्कन्धप्रदेश कहलाता है और अपनी पृथक् अवस्था में परमाणु । परमाणु के स्वरूप को शास्त्रकारों ने विभिन्न प्रकार से स्पष्ट किया है। जैसे कि परमाणु पुद्गल अविभाज्य, अच्छेय, अभेद्य, अदाह्य व अग्राह्य है। किसी भी उपाय, उपचार या उपाधि से उसका भाग नहीं हो सकता है। परमा पुद्गल अन है, अमध्य है, अप्रदेशी है, सार्व नहीं है, समध्य नहीं है। परमाणु की न लम्बाई है, न चौड़ाई है, न गहराई है, यदि वह है तो स्वयं एक इकाई रूप है। सूक्ष्मता के कारण वह स्वयं ही आदि मध्य और अन्त है । प्रथम अणु और स्कन्ध यह जो दो भेद बताये गये हैं उनमें और स्कन्ध आदि इन चार भेदों में संक्षेप और विस्तार की अपेक्षा अन्तर अवश्य है, लेकिन मूल लाक्षणिक भेद नहीं है । स्कन्ध के अतिरिक्त स्कन्ध देश और स्कन्ध प्रदेश यह स्कन्ध के दो अवान्तर भेद कर लेने से पुद्गल द्रव्य के चार भेद होते हैं । आदि । सूक्ष्मता और स्थूलता को लेकर दूसरे प्रकार से पुद्गल द्रव्य के निम्नलिखित छह भेद भी हैं(१) स्थूलस्थूल (२) स्थूल, (३) स्थूलसूक्ष्म, (४) सूक्ष्मस्थूल, (५) सूक्ष्म, (६) सूक्ष्मसूक्ष्म । पत्थर, पर्वत आदि । आदि । स्थूल स्थूल -- जिस पुद्गल स्कन्ध का छेदन, भेदन तथा अन्यत्र वहन सामान्य रूप से हो सके। जैसे—भूमि, स्थूल - जिस पुद्गल स्कन्ध का छेदन भेदन, न हो सके किन्तु अन्यत्र वहन हो सके । जैसे—- घी, तेल, पानी - स्थूल सूक्ष्म - जिस पुद्गल स्कन्ध का छेदन, भेदन, अन्यत्र वहन कुछ भी न हो सके। जैसे - छाया, आतप For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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