Book Title: Darshan aur Vigyan ke Pariprekshya me Pudgal
Author(s): Anandrushi
Publisher: Z_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf

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Page 11
________________ दर्शन और विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में पुद्गल : एक विश्लेषणात्मक विवेचन आदि भारी वजनदार पदार्थ माने जाते हैं। एक इंच के काष्ठ टुकड़े में और उतने ही बड़े लोहे के टुकड़े के भार में कितना अन्तर है ? यह स्पष्ट है । जिसका कारण परमाणुओं की सघनता, निविडता है। जितने आकाश खंड को उस काष्ठ के छोटे से परमाणुओं ने घेरा, उतने ही आकाश खंड में अधिकाधिक परमाणु एकत्रित होकर खनिज पदार्थों, सोना, चांदी आदि के रूप में रह सकते हैं। इसी तरह अन्य सघन ठोस पदार्थों के बारे में जाना जा सकता है जो अपनी सघनता से एक छोटे से आकाश खंड में रहते हैं और उनके भार को उठाने के लिये बड़े-बड़े क्रेन भी असफल, अक्षम हो जायें तथा एक छोटा-सा ढेला ऊपर से गिरकर बड़े-बड़े भवनों को भी तोड़ सकता है । जैनदर्शन के अनुसार एक छोटा-सा वालुकण अनन्त परमाणुओं का पिंड है, जिसे स्कन्ध कहते हैं, छोटे से छोटा स्कन्ध दो परमाणुओं का होता है। आँखों से दिखने वाले पदार्थ तो अनन्त प्रदेशात्मक हैं और स्कन्ध के तोड़ने से भी स्कन्ध बनते जाते हैं । लेकिन परमाणु के बारे में यह नियम स्थिति लागू नहीं होती है । क्योंकि परमाणु पदार्थ का वह अनुत्तर परम अणु है जिसे अलग नहीं किया जा सकता है यानी परमाणु को कभी भी परमाणु से पृथक् नहीं किया जा सकता है । वह स्वयं अपना आदि, मध्य और अन्त है । यही धारणा अब विज्ञान की भी बनती जा रही है । विज्ञान के क्षेत्र में भी अब यही चर्चा होने लगी है। प्रो. अन्ड्रेड ने कहा है कि एक औंस पानी में इतने स्कन्ध हैं जिनको गिनने के लिये संसार के सभी मनुष्य लग जायें और प्रति सेकिन्ड पांच की गति से दिन-रात गिनते जायें तो उनका यह गिनती का कार्य चालीस लाख वर्षों में पूरा हो सकेगा । यही अनुमान हवा के बारे में लगाया गया है कि एक इंच लम्बी, एक इंच चौड़ी और एक इंच ऊँची डिबिया में समा जाने वाली हवा में ४४२४ के ऊपर १७ शून्य रखे जायें तो उस संख्या के बराबर स्कन्ध उसमें हैं। जब इनमें (पानी और हवा में ) इतने स्कन्ध हैं तो परमाणुओं की संख्या का तो अनुमान ही नहीं लगाया जा सकता है। इस प्रकार पुद्गल व पदार्थ की सूक्ष्मता और सघनता के दोनों पक्षों ( दर्शन व विज्ञान) में और भी अनेक उदाहरण मिलते हैं । परमाणु की जैनदर्शन मान्य सूक्ष्मता और सघनता का तो पूर्व में स्पष्ट उल्लेख किया जा चुका है । जैन शास्त्रों में परमाणु के दो भेद बतलाये हैं- परमाणु और व्यवहार परमाणु । अविभाज्य सूक्ष्मतम अणु परमाणु है और सूक्ष्म स्कन्ध जो इन्द्रिय व्यवहार में सूक्ष्मराम सागते हैं, वे व्यवहार परमाणु है जिनको अरे, वसरेणु, रथ-रेणु आदि शब्दों से कहा गया है। विज्ञान के क्षेत्र में भी अब ऐसे व्यवहार प्रचलित हो गये हैं कि जिसे परमाणु माना गया है, वह तो परम अणु नहीं है किन्तु व्यवहार से उस अणु की पहिचान परमाणु शब्द से होती है। जैनदर्शन की दृष्टि में इलेक्ट्रोन आदि अन्य कण भी व्यवहार परमाणु हैं, यथार्थ परमाणु नहीं हैं । ३७१ जैनदर्शन में पुद्गल के स्थूल स्थूल ( अति स्थूल) आदि छह भेद बताये हैं । जिनकी व्याख्या का पूर्व में संकेत किया गया है । विज्ञान ने भी पदार्थ को ठोस, तरल और वाष्प इन तीन भेदों में बाँटा है। ये तीनों भेद जैनदर्शन के छह मंदों में से क्रमवाः प्रथम अतिस्थूल, द्वितीय स्थूल और चतुर्थ सूक्ष्म स्थूल मेद में समाविष्ट हो जाते हैं। दार्शनिकों की दृष्टि में ठोस ( अति स्थूल) आदि तीन भेदों के अतिरिक्त और भी पदार्थ थे, इसीलिये उन्होंने पदार्थ के छह मेद किये । अणु विखण्डन के पश्चात् जो विभिन्न प्रकार के पदार्थ कण सामने आये तो वैज्ञानिकों के तीन भेद भी अब केवल कहने मात्र के लिये रह गये हैं । वैज्ञानिक इस बात को स्वीकार करते हैं और उनको किस नाम से कहा जाये ? विचारगीय है। अनुसार है ट्र्स की परमाणु सम्बन्धी मान्यताओं में बताया गया है कि प्रत्येक परमाणु स्वतन्त्र इकाई है। जबकि जैनदर्शन का मत है कि प्रत्येक परमाणु अपने गुण, पर्यायों को रूपान्तरित कर सकता है । अब यही बात वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार करली है । सन् १९४१ में वैज्ञानिक बेंजामिन ने पारे को सोने के रूप में परिवर्तित किया। पारे के अणु का भार दो सौ अंश होता है । उसे एक अंश भार वाले विद्युत प्रोटोन से विस्फोटित किया गया जिससे प्रोटोन पारे में घुलमिल गया तब उसका मार २०१ अंश हो जाना चाहिये था। लेकिन उस मिले हुए अणु की मूल धूलि में से एक अल्फा बिंदु जिसका भार चार अंश था, स्वतः निकल भागा। परिणामतः पारे का भार २०१ अंश से घटकर १६७ अंश का हो गया । इस १६७ अंश भार का ही तो सोना होता है । इसी तरह सन् १९५३ में प्लेटिनम को सोने में परिवर्तित करने में सफलता मिली। इन प्रयोगों से यह सिद्ध हो जाता है कि विज्ञान मान्य मूल द्रव्यों में परिवर्तन न होने की बात अब कल्पना की उड़ान रह गई है। विज्ञान जैनदर्शन के मत की ओर अग्रसर हो रहा है कि परमाणु अपने गुण-पर्यायों को रूपान्तरित कर सकता है, उसके गुण पर्यायों में परिवर्तन होता है। ऊपर दर्शन और विज्ञान के परमाणु की संक्षिप्त जानकारी दी है। जिसकी समोक्षा का सारांश नीचे लिखे Jain Education International For Private & Personal Use Only o www.jainelibrary.org

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