Book Title: Darshan aur Vigyan ke Pariprekshya me Pudgal
Author(s): Anandrushi
Publisher: Z_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf

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Page 13
________________ वर्शन और विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में पुद्गल : एक विश्लेषणात्मक विवेचन ३७३ . जैनदर्शन के अनुसार इससे प्रतीत हा से तथा वैज्ञानिक o/ स्निग्धत्व और रूक्षत्व को बन्धन का कारण माना है, वैसे ही वैज्ञानिकों ने पदार्थ के धन विद्युत और ऋण विद्युत इन दो स्वभावों को बन्धन का कारण कहा है। जैनदर्शन के अनुसार स्निग्धत्व और रूक्षत्व परमाणु मात्र में मिलता है और विज्ञान के अनुसार धन व ऋण विद्युत पदार्थ मात्र में पाई जाती है। इससे प्रतीत होता है कि जैनदर्शन और विज्ञान में शाब्दिक भेद से एक ही बात कही गई है । जैनदर्शन ने रूक्षत्व और स्निग्धत्व के नाम से तथा वैज्ञानिकों ने धन विद्युत और ऋण विद्युत के नाम से पदार्थों में दो धर्मों को कहा है। सर्वार्थसिद्धि अध्याय ५ सूत्र ३४ में विद्युत के विषय में बताया है कि "स्निग्धरूक्षगुणनिमित्तो विद्युतः' अर्थात् आकाश में चमकने वाली विद्य त परमाणुओं के । स्निग्ध और रूक्ष गुणों का परिणाम है, तन्निमित्त क है । इसका स्पष्ट आशय यह हुआ कि स्निग्धत्व और रूक्षत्व इन दो गुणों से धन और ऋण विद्युत उत्पन्न होती है। यानी स्निग्धत्व और रूक्षत्व आणविक बन्धनों के कारण हैं या धन और ऋण दो प्रकार के विद्युत स्वभाव के । इसी प्रकार जब हम विज्ञान के बन्धनो के प्रकारों का अध्ययन करते हैं तब वहाँ भी जैनदर्शन के विचारों से समानता मिलती है । विज्ञान ने भी भारी ऋणाणु की भविष्य वाणी की है जो साधारण ऋणाणुओं से पचास गुना भारी होता है और वह ऋणाणुओं के समुदाय का परिणाम ही होता है । इसलिये उसे नेगेट्रोन कहते हैं । क्योंकि उसमें केवल निषेध विद्युत ही पाई जाती है । इस प्रकार के परमाणु जब पूर्णरूपेण प्रगट हो जायेंगे तो आशा है कि वे रूक्ष के साथ रूक्ष के बन्ध को भी चरितार्थ कर देंगे जैसा कि जैनदर्शन में माना गया है । इस नियम से प्रोटोन स्निग्ध के साथ स्निग्ध के, तथा न्यूट्रोन रूक्ष और रूक्ष के बन्ध के उदाहरण बन सकते हैं । आधुनिक परमाणु का बीजाणु भी जो ऋणाणुओं तथा धनाणुओं का समुदाय मात्र है, स्निग्ध और रूक्ष बन्ध का उदाहरण बनता है । डा. बी. एल. शील ने अपनी पुस्तक 'पोजिटिव साइन्स आफ एन्सिएन्ट हिन्दूज' में स्पष्ट लिखा है कि जैनदर्शनकार इस बात से भलीभाँति परिचित थे कि पोजिटिव और निगेटिव विद्य त कणों के मेल से विद्युत की उत्पत्ति होती है। जैनदर्शन में जैसे शब्द, अंधकार, छाया, प्रकाश, आतप, उद्योत आदि की पौद्गलिकता सिद्ध की गई है, वैसे ही विज्ञान भी इनके बारे में अधिकांशतया समान मत रखता है। यदि उनमें कहीं अंतर है तो उसका कारण वैज्ञानिक प्रयोगों की सीमा है। पदार्थ की उत्पत्ति, विनाश और स्थिति के बारे में विज्ञान का मत बनता जा रहा है कि शक्ति अविनाशी एवं शाश्वत है, वह नष्ट न होकर दूसरा रूप ले लेती है, किन्तु उस परिवर्तन में शक्ति मात्रा ज्यों की त्यों स्थिर रहती है । विज्ञान की इसी बात को दर्शन के क्षेत्र में शक्ति (ध्रौव्य) परिवर्तन (उत्पत्ति, विनाश) इन तीन शब्दों में व्यक्त किया गया है। जैनदर्शन और विज्ञान के पदार्थ विषयक विचार से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि जैनदर्शन का परमाणु-विज्ञान और पदार्थदर्शन निश्चल और समग्र निरूपण है। आध्यात्मिक विषयों की तरह पदार्थ विज्ञान के बारे में मी इतने अनुपम अकाट्य विचार दिये हैं जिनका अनुसरण करके आधुनिक विज्ञान अपने क्रमिक आरोहण की स्थिति में एक के बाद दूसरे सोपान पर बढ़ रहा है। आज वैज्ञानिक मानने लगे हैं कि दार्शनिकों की परमाणु सम्बन्धी धारणा के समक्ष विज्ञान की धारणा नगण्य है । जो सन् १९५६ में लंदन से प्रकाशित 'परमाणु और विश्व' नामक पुस्तक के लेखक पदार्थ विज्ञान के अधिकारी विद्वान वैज्ञानिक जी. ओ. जोन्स, जे. रोटबेल्ट और जे. जे. विटरो के विचारों से स्पष्ट हो जाता है । वे पुस्तक के पृष्ठ ४६ पर परमाणु के अंतर्गत मौलिक तत्वों की चर्चा करते हुए लिखते हैं - "बहुत दिनों तक तीन ही तत्त्व-इलेक्ट्रोन, न्यूट्रोन और प्रोटोन-विश्व संघटना के मूलभूत आधार माने जाते थे। किन्तु वर्तमान में उनकी संख्या कम से कम १६ तक पहुंच गई है एवं तथाप्रकार के अन्य दूसरे तत्त्वों का अस्तित्व और भी सम्मिलित हो गया है।......मौलिक तत्त्वों का यह अप्रत्याशित बढ़ावा बहुत ही असंतोष का कारण है और सहज ही यह प्रश्न उठता है कि मौलिक तत्त्वों का हम सही अर्थ क्या लें? पहले अग्नि, पृथ्वी, हवा और पानी इन चार पदार्थों को मौलिक तत्त्वों की संज्ञा दी, इसके बाद सोचा गया कि प्रत्येक रासायनिक पदार्थ का मूलभूत अणु ही परमाणु है, उसके अनन्तर प्रोटोन, न्यूट्रोन और इलेक्ट्रोन इन तीन मूलभूत अणुओं की संख्या बीस तक पहुंच गई है। यह संख्या और भी आगे बढ़ सकती है । क्या वास्तव में ही पदार्थ के इतने टुकड़ों की आवश्यकता है या मूलभूत अणुओं का यह बढ़ावा पदार्थ मूल सम्बन्धी हमारे अज्ञान का ही सूचक है ?."सही बात तो यह है कि मौलिक अणु क्या है ? यह पहेली अभी तक सुलझ नहीं पाई है।" उक्त उद्धरण से यह स्पष्ट हो गया है कि आज के यांत्रिक युग में परमाणु एक पहेली बना हुआ है । दर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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