Book Title: Darshan aur Vigyan ke Pariprekshya me Pudgal Author(s): Anandrushi Publisher: Z_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf View full book textPage 5
________________ वर्शन और विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में पुद्गल : एक विश्लेषणात्मक विवेचन ३६५ . विलीन करने का कारण क्या है ? परमाणु के निर्माण में कोई रुकावट नहीं है, क्योंकि स्कन्ध के छिन्न-भिन्न होने से उसके खंड-खंड होते जाने से परमाणु का निर्माण होता है। यह बात आज के वैज्ञानिक प्रयोगों से स्पष्ट हो चुकी है। लेकिन स्कंध निर्माण की प्रक्रिया में अन्तर है । प्रायोगिक बंधजन्य स्कन्ध निर्माण की प्रक्रिया के लिए यह एक सामान्य बात है कि मकान आदि बनाते समय ईंटों को परस्पर जोड़ने के लिए चूना, सीमेण्ट आदि संयोजक द्रव्य का उपयोग होता है। परन्तु गलन-मिलन रूप वैनसिक प्रक्रिया के कारण अनन्त ब्रह्माण्ड में स्कंधों का संघटन और विघटन प्रतिक्षण स्वत: भी होता रहता है । जैसे निरभ्र आकाश थोड़े से समय में बादलों से भर जाता है, वहाँ बादल रूप स्कन्धों का जमघट लग जाता है और कुछ ही क्षणों में वह बादल विखरता भी देखा जाता है। इस प्रकार के स्वाभाविक स्कंधों के निर्माण का क्या हेतु है ? हमारे हाथों में जो पौद्गलिक वस्तु आती है और जो दृश्यमान महल, मकान आदि हैं वे सब तो परमाणुओं के समवायी परिणाम हैं । उनमें संख्यात, असंख्यात, अनन्त परमाणु हैं । जैनदर्शन में स्कंध निर्माण की एक समुचित रासायनिक प्रक्रिया बतलाई है। जो प्रायोगिक बंध की प्रक्रिया से भिन्न नहीं है। वह संक्षेप में इस प्रकार है पूर्व में यह संकेत किया गया है कि प्रत्येक परमाणु में एक वर्ण, एक गंध, एक रस तथा स्निग्ध-रूक्ष में से एक तथा शीत-उष्ण में से एक इस प्रकार कुल दो स्पर्श होते हैं । एक परमाणु दूसरे परमाणु के साथ जो स्कंधजनक संयोग करता है, उसमें परमाणुगत वर्ण, गंध रस तथा शीत या उष्ण स्पर्श का उपयोग नहीं होता है, किन्तु जो स्निग्ध या रूक्ष स्पर्श हैं उन्हीं का उपयोग होता है। जैसे कि निरभ्र आकाश में एकाएक बादलों के स्कंधों के छा जाने में नितान्त शान्त वातावरण में आंधी तूफान के रूप में वायु के स्कंधों के भर जाने में और थोड़ी ही देर में उन सबके बिखर जाने में कोई मनुष्य, देव या ईश्वर कारण नहीं है और न यह उन सबके द्वारा कृत है। किन्तु पौद्गलिक परमाणुगत स्निग्धरूक्ष स्पर्शों का स्वाभाविक संयोग और वियोग कारण है । इसीलिये इस स्कंध निर्माण की प्रक्रिया में स्निग्ध-रूक्ष स्पर्शों को मुख्य माना गया है । वर्ण आदि के जैसे गुणात्मक तारतम्य के अनन्त प्रकार (Degree) होते हैं, वैसे ही ये स्निग्ध और रूक्ष स्पर्श भी एक गुण से लेकर अनन्त गुण प्रकार के हो सकते हैं। स्कन्धों की उत्पत्ति तीन प्रकार से होती है—संघात, भेद और भेद-संघात । कोई स्कंध संघात, एकत्व परिणति, मिलने से उत्पन्न होता है। कोई भेद से और कोई एक साथ भेद-संघात दोनों के निमित्त से होता है । जब पृथक्पृथक् स्थित दो परमाणुओं के मिलने पर द्वि-प्रदेशी स्कंध होता है तब वह संघातजन्य कहलाता है। इसी प्रकार तीन, चार, संख्यात, असंख्यात, अनन्त यावत् अनन्तानन्त परमाणुओं के मिलने से जो द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी आदि अनन्तानन्त प्रदेशी स्कंध बनते हैं वे सब संघातजन्य हैं। किसी बड़े स्कंध के टूटने से जो छोटे-छोटे स्कंध बनते हैं, वे भेदजन्य हैं। ये भी द्विप्रदेशी से लेकर अनन्तानन्त प्रदेशी तक हो सकते हैं। जब किसी एक स्कन्ध के टूटने पर उसके अवयव के साथ उसी समय दूसरे किसी द्रव्य के मिलने से जो नया स्कंध बनता है तब वह नवीन स्कंध भेदसंघातजन्य है। ऐसे स्कंध भी द्वि-प्रदेशी से लेकर अनन्तानन्त प्रदेश वाले हो सकते हैं । इन सबके निर्माण में स्निग्धत्व और रूक्षत्व कारण है। स्कन्ध निर्माण की उक्त सामान्य प्रक्रिया है । किन्तु अचाक्षुष स्कन्ध के चाक्षुष होने में भेद और संघात ये दो ही हेतु हैं । अर्थात् सभी अतीन्द्रियक स्कन्धों के ऐन्द्रियक (इन्द्रिय ग्राह्य) बनने में भेद और संघात ये दो ही हेतु अपेक्षित हैं । क्योंकि जब किसी स्कन्ध में सूक्ष्मत्व परिणाम की निवृत्ति होकर स्थूलत्व परिणाम पैदा होता है तब कुछ नये परमाणु उसमें अवश्य मिलते हैं और इसी मिलने के साथ कुछ परमाणु उस स्कन्ध में से अलग भी हो जाते हैं। सूक्ष्मत्व परिणाम की निवृत्तिपूर्वक स्थूलत्व परिणाम की उत्पत्ति न केवल संघात परमाणुओं से होती है और न भेद परमाणुओं के पृथक् होने मात्र से होती है और स्थूलत्व रूप परिणाम के अलावा कोई स्कन्ध चाक्षुष नहीं हो सकता है । इसीलिए चाक्षुष स्कन्ध की उत्पत्ति भेद और संघात दोनों से बताई है। स्कन्ध निर्माण में कौनसा परमाणु किस परमाणु के साथ संयोग कर सकता है ? इसके लिए जनदर्शन में कुछ नियम निर्धारित हैं । वे इस प्रकार हैं- . * १. स्निग्ध और रूक्ष परमाणुओं के श्लेष (मिलन) से स्कन्ध बनते हैं । यह श्लेष दो प्रकार का हो सकता हैसदृश और विसदृश । स्निग्ध का स्निग्ध के साय और रूक्ष का रूक्ष के साथ श्लेष होना सदृश श्लेष है और स्निग्ध का रूक्ष से श्लेष विसदृश श्लेष है। इसमें स्निग्ध परमाणु का स्निग्ध परमाणु के साथ मेल होने पर स्कन्ध का निर्माण अवश्य हो सकता है, लेकिन उसके लिए शर्त यह है कि उन दोनों परमाणुओं की स्निग्धता में कम से कम दो अंशों से अधिक अन्तर हो। इसी तरह रूक्षता के लिए भी समझना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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