Book Title: Darshan aur Chintan Part 1 2
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Sukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad

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Page 9
________________ (३) ग्रन्थोंको कहाँ मुद्रित कराना इस बातका निर्णय सम्पादकमण्डल करेगा, व इन ग्रन्थों को तैयार करने में जो भी आवश्यक खर्च करना होगा वह सब सम्पादकमण्डलकी सूचना अनुसार किया जायगा । (४) ग्रन्थ डिमाई ८ पेजी साईझमें मुद्रित किया जाय । (५) हिन्दी व गुजराती दोनों ग्रन्थों की दो-दो हजार नकलें रहें। (६) सन्माननिधिमें कम-से-कम रू. २५) (पच्चीस) का चन्दा देनेवालोंको हिन्दी तथा गुजराती दोनों ग्रन्थ भेंट दिये जाय । इस प्रस्तावके अनुसार ' दर्शन और चिन्तन 'के नामसे प्रस्तुत पुस्तकमें पंडितजीके हिन्दी लेखोंका संग्रह प्रकाशित किया जाता है। प्रथम खण्डमें धर्म, समाज तथा दार्शनिक मीमांसा विषयक लेखोंका संग्रह है और दूसरे खण्डमें जैन धर्म और दर्शनसे संबद्ध लेख संगृहीत हैं । ये लेख पत्र-पत्रिकाओं, पुस्तकों को प्रस्तावनाओं, ग्रन्थगत टिप्पणों और व्याख्यानोंके रूपमें लिखे गये थे। ई० १९१८ में मुद्रित कर्मग्रन्थकी प्रस्तावनासे लेकर ई० १९५६ के अक्तूबर में गांधीपारितोषिककी प्राप्तिके अवसर पर दिये गये व्याख्यान तककी पंडितजीको हिन्दी साहित्य की साधनाको साकार करनेका यहाँ प्रयत्न है। वाचक यह न समझें कि पंडित जी को साहित्यसाधना इतनेमें ही मर्यादित है। इसी पुस्तकके साथ उनके गुजराती लेखों का संग्रह भी प्रकाशित हो रहा है, जो विषयवैविध्यकी दृष्टि से, हिन्दी संग्रहकी अपेक्षा, अधिक समृद्ध है। उनके संस्कृत लेखोंका संग्रह किया ही नहीं गया। और कुछ लेखोंका संग्रह होना अभी बाकी है। विशाल पत्रराशिको और वाचनके समय की गई नोधोंको भी छोड़ दिया गया है। संस्कृत और प्राकृत ग्रन्थोंके सम्पादनकी शैली उनकी अपनी ही है । इन सबका परिशीलन किया जाय तब ही पंडितजीकी साहित्य-साधनाका पूरा परिचय प्राप्त हो सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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