Book Title: Dandakadik Dwar Sangraha Author(s): Saubhagyashreeji Publisher: Umedchand Raichand View full book textPage 4
________________ श्री देवश्रीजीगुरुणीजी महाराजना सुविहित शिष्या साध्वीजी महाराज सौन्नाग्य श्रीजी" के जेओ हिंदुस्तानना घणा भागमा विचरी घणी श्रावकाओ तेम बालिकाओ उपर उत्तम उपगार करी पोताना दीव्यचारित्रमय जीवनने शोभावी रह्या छे तेमने मली आवी जे प्रत वांची तेओ साहेबनो एवो विचार थयो के आवा विस्तारवाली एक बुक बाहार पडी नथी. अने आ बुक घणी उपयोगी थइ पडशे तेथी तेओ साहेवे मने ते प्रत उपरथी शुद्ध लखावी सुधारी-छपाववानी भलामण करी तेथी में ते प्रत अत्रे एक जाणीता प्रवीण “मास्तर--जगजीवनदास पानाचंद" पासे लखावी-तेमां प्राचीन पुस्तको कर्मग्रंथ अने मोटीसंग्रहणी विगेरे नो आधार लइ बनता प्रयासे जेम पुस्तक-शुद्ध अने सारुं थाय तेम प्रयत्न करवामां आवेलो छ वली--ज्यां ज्यां टुंकामां समजी शकाय तेम न होय त्या त्यां घणा विस्तारपूर्वकते ते ध्वा रोनुं वर्णन करवामां आवेलुं छे. आ पुस्तकनी पहेलां परम उपगारी, . गुरुणीजी महाराज श्री सौभाग्य श्रीजीना उपदेशथी. ... श्रीमान् जम्बूगुरु विरचित जिनशतक नामनो संस्कृत ग्रंथ-तेमज जैन प्राचीन स्तवनादि संग्रह ए वे पुस्तको बहार पडी चुकेला छे अने ते जैन प्रजामां घणा लोकपीय थइ पडेला छे. जैन प्राचीन स्तवनादि संग्रह अत्रेज खंभात श्रावीकाशान तरफथी प्रसीद्ध करेलो हतो ते पुस्तकमां जेजे सदगृहस्थो तथा व्हेनोए मदद करेली ते खचमां जतां तेमां खुटतुं हवं. ते खुको घणीखरी तो परमपूज्य साधुसाध्वीजी महाराज साहेबोने भेट आपवामां आवेली छे अने थोडीPage Navigation
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