Book Title: Dandakadik Dwar Sangraha
Author(s): Saubhagyashreeji
Publisher: Umedchand Raichand
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श्री सर्वज्ञाय नमः
अथ श्री दंडकादिक द्वार लख्यते.
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॥ गाथा ॥
दंमग जुवण शरीरं, जंगादणा बेस्सेंदिच्य समुब्धाया. संघयण संघाण पाणा, पज्जति योनी कुलकोमी. ॥१॥ नाणान्नाणं दंसण, दिधि जोगोवलंग गुण गणाप्राहारं शहाहारे, किमाहाराऊ जी नेया ॥ २ ॥ वे कसाय सन्ना, य कार्यविश विरहकाळन चैव: चवणोववाय संख्खा, गइ याग संपया देव ॥३॥ संज्या जरा परि-ग्गढ़ व्यप्प बहु सन्निय इच्चाई. दाराई झ्ग चत्ता, सरणेध्यं संग्गदे इथं ॥ ४ ॥
१ रुक- २ भुवन ३ शरीर ४ अवगाहना ५ लेश्या

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