Book Title: Dandakadik Dwar Sangraha
Author(s): Saubhagyashreeji
Publisher: Umedchand Raichand

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Page 3
________________ प्रस्तावना सुज्ञ जैन बन्धुओ अने व्हेनो. ___आपने सुविदितज छे के आवा हमेश-भगवा वांचा विचारवा जेवा लघु पुस्तकनी प्रस्तावनानी अति आवश्यक्ता होइ शके नहि, छतां आ पुस्तक शा हेतुथी बाहार पाडवामां आव्यु, तेम कोना स. दुपदेशथी विगेरे सहज हकीकत बहार मुकवी उचित धारी छे. घणा आन्दनी वात छे के हिंदुस्तानना घणा शहेरो अने गामो मां ज्यां ज्यां आपणा पवित्र पूज्यपाद उत्तम चारित्र रत्नी विभूषित गुरुणीजी महाराजाओ विचरी रह्या छे त्यां त्यां आधुनिक समयमां जैन स्त्रीवर्गमां तेम बालिकाओमां खास परमपवित्र वितराग परमात्माना अविच्छिन्न प्रभावशाली धर्म क्रियामां तेम ते परमात्मा ना अलौकिक ग्रन्थोने पठनपाठन फरवाना उद्यम माटे पूरतो उत्साह दाखल करलो दष्टिगोचर थाय छे, दरेक स्त्रीयो अने बालिकाओ पोतानुं दुर्लभ्य मानुष्य जीवन जो वितराग परमात्माना धर्म सेवनथी तेमज पठनपाठनथी पावन करे तो ते शिवाय आनि सार दुनीयामां आत्म कल्याणनो बादशाही मार्ग बीजो कयो छे ? मतलब के तेज छे आ उत्साहने पूरो पाडवा माटे अने कर्मानुसार चारे गतिना चोवीसे दंडकमां परिभ्रमणा करवारुप दंडकादि द्वारना . पुस्तको प्रसिद्ध थयेला द्रष्टिगोचर थाय छे छतां पण आवा विस्तार पूर्वक प्रसिद्ध थयेल नहीं होवाथी अने तेनी घणी जरुर समजी तेवा प्राचीन हस्तलिखित ४१. द्वारवाली प्रत " परम उपगारी साध्वीजी

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