Book Title: Dandak Laghu Sangrahani Author(s): Yatindrasuri Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar View full book textPage 8
________________ अग्निकाय, वायुकाय, विकलेन्द्रिय और वैमानिकों को तीन लेश्याएँ होती हैं ॥१४॥ जोइसिय तेउलेसा, सेसा सव्वेवि हुँति चउलेसा; । इंदियदारं सुगम, मणु आणं सत्त समुग्घाया ॥ १५ ॥ गाथार्थ : ज्योतिषी देव तेजोलेश्यावाले होते हैं और शेष सभी भवनपति व व्यंतर चार लेश्यावाले होते हैं। ___ इन्द्रिय द्वार सरल है। मनुष्यो को सात समुद्घात होते हैं ॥१५॥ वेयण कसाय मरणे, वेउव्विय तेयए य आहारे;। केवलि य समुग्घाया, सत्त इमे हुंति सन्नीणं ॥ १६ ॥ गाथार्थ : वेदना, कषाय, मरण, वैक्रिय, तैजस, आहारक और केवली ये सात समुद्घात हैं । संज्ञी जीवों के सात समुद्घात होते हैं ॥१६॥ एगिदियाण केवल, तेउ-आहारग विणा उ चत्तारि;। ते वेउव्विय वज्जा, विगला-सन्नीण ते चेव ॥ १७ ॥ गाथार्थ : एकेन्द्रिय जीवों के केवली. तैजस और आहारक छोड़कर चार समुद्घात होते हैं । विकलेन्द्रियों को वैक्रिय छोड़कर शेष तीन होते हैं । संज्ञी पंचेन्द्रिय को 7 समुद्घात होते हैं ॥१७॥ श्री दंडक प्रकरणPage Navigation
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