Book Title: Dandak Laghu Sangrahani
Author(s): Yatindrasuri
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 22
________________ गाथार्थ : चौंतीस विजयों में एक-एक ऋषभकूट, सुमेरु पर हरिकूटादि और जंबू वृक्ष पर जंबूकूटादि आठआठ कूट देवकुरुक्षेत्र के शाल्मलीवृक्ष पर शाल्मलीकूटादि आठ कूट और हरिकूट १ तथा हरिस्सहकूट इस प्रकार ३४, ८, ८, ८, १, १ ये साठ भूमिकूट हैं । ये पर्वत के शिखर नहीं, बल्कि भूमि के ऊपर शिखर स्वरूप पर्वत हैं जो भूमिकूट कहलाते हैं। मागहवरदामपभास, तित्थं विजएसु एरवयभरहे । चउतीसा तीहिं गुणिया, दुरुत्तरसयं तु तित्थाणं ॥१८॥ गाथार्थ : ३२ विजयों में ऐरवत क्षेत्र तथा भरतक्षेत्र इन चौंतीस क्षेत्रों में एक-एक में मागध, वरदाम और प्रभास ये तीन-तीन तीर्थ हैं, इसलिये चौंतीस को तीन से गुणा करने पर तीर्थों की संख्या १०२ (एक सौ दो) होती है । विज्जाहर अभिओगिय, सेढीओ दुन्नि दुन्नि वेयड्ढे । इय चउगुण चउतीसा, छत्तीससयं तु सेढीणं ॥१९॥ गाथार्थ : वैताढ्य पर्वतों पर विद्याधर मनुष्यों तथा अभियोगिक देवों की दो दो श्रेणियाँ हैं, इन चौंतीस वैताढ्य पर्वतों की चार श्रेणियों को चौगुणी करने से कुल श्रेणियाँ एक सौ छत्तीस होती हैं। चक्कीजेअव्वाइं, विजयाइं इत्थ हुंति चउतीसा । महदह छप्पउमाई, कुरुसु दसगंति सोलसगं ॥२०॥ श्री लघुसंग्रहणी प्रकरण

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