Book Title: Dandak Laghu Sangrahani
Author(s): Yatindrasuri
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 20
________________ गाथार्थ : और सात सौ नब्बे करोड छप्पन लाख चौरानवे हजार एक सौ पचास योजन ऊपर अधिक एक कोस तथा पन्द्रह सौ पन्द्रह धनुष्य साठ अंगुल प्रमाण जंबूद्वीप का गणित पद समझना चाहिए । भरहाइ सत्त वासा, वियड्ढ चउ चउरतिंस वट्टियरे । सोलस वक्खारगिरि, दो चित्त विचित्त दो जमगा ॥११॥ दोसय कणयगिरीणं, चउगयदंता य तह सुमेरु अ । छ वासहरा पिंडे, एगुणसत्तरि सया दुन्नि ॥१२॥ गाथार्थ : भरतादि ७ वासक्षेत्र हैं, ४ गोलाकार वैताढ्य पर्वत तथा ३४ इतर दीर्घ वैताढ्य पर्वत हैं, सोलह वक्षस्कार पर्वत हैं, १ चित्र पर्वत, १ विचित्र पर्वत है, १ यमक पर्वत तथा १ समक पर्वत है। २०० कंचनगिरि पर्वत हैं, और ४ गजदन्तगिरि पर्वत हैं, तथा १ सुमेरु पर्वत है और ६ वर्षधर पर्वत हैं, इन सबों को एकत्रित करने से २६९ पर्वत होते हैं। सोलस वक्खारेसु, चउ चउ कूडा य हुंति पत्तेयं । सोमणस गंधमायण, सत्तट्ठ य रूप्पि महाहिमवे ॥१३॥ गाथार्थ : सोलह वक्षस्कार पर्वतों पर एक एक पर चार-चार कूट हैं और सौमनस तथा गंधमादन पर्वत पर सात-सात कूट हैं और रुक्मि पर्वत तथा महाहिमवन्त पर्वत पर आठ-आठ कूट हैं । श्री लघुसंग्रहणी प्रकरण

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