Book Title: Dandak Laghu Sangrahani
Author(s): Yatindrasuri
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 18
________________ अहविगखंडे भरहे, दो हिमवंते अ हेमवइ चउरो । अट्ठ महाहिमवंते, सोलसखंडाइं हरिवासे ॥४॥ बत्तीसं पुण निसड्डे, मिलिया तेसट्टि बीयपासे वि । चउसट्टिउ विदेहे, तिरासि पिंडे उ णउयसयं ॥५॥ गाथार्थ : अथवा एक खंड का भरतक्षेत्र है, दो खंड का हिमवन्त पर्वत है, चार खंड का हेमवन्त क्षेत्र है, आठ खण्ड का महाहिमवंत पर्वत है और सोलह खंड का हरिवर्षक्षेत्र है, बत्तीस खण्ड का निषधपर्वत है ये ये सब मिलकर ६३ खण्ड हुए । दूसरी तरफ भी १ खण्ड का ऐरवत क्षेत्र, २ खण्ड का शिखरी पर्वत, ४ खण्ड का हिरण्यवन्त क्षेत्र, ८ खण्ड का रुक्मि पर्वत, १६ खण्ड का रम्यक्षेत्र, ३२ खण्ड का नीलवन्त पर्वत, ये तिरसठ तथा ६४ खण्ड का महाविदेह क्षेत्र है । इन तीनों राशियों को एकत्रित करने से १९० खण्ड होते हैं। जोयण परिमाणाइं, समचउरसाइं इत्थ खंडाई । लक्खस्स य परिहीए, तप्पायगुणे य हुंतेव ॥६॥ गाथार्थ : यहाँ लाख योजन की परिधि को उसके चौथे हिस्से के २५००० योजन से गुणा करने पर योजन प्रमाण के समचौरस खंड होते हैं ।। विक्खंभ वग्ग दहगुण, करणी वट्टस्स परिरओ होई । विक्खंभपायगुणिओ, परिरओ तस्स गणिय पयं ॥७॥ श्री लघुसंग्रहणी प्रकरण

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