Book Title: Dandak Laghu Sangrahani Author(s): Yatindrasuri Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar View full book textPage 7
________________ गाथार्थ : पाँच स्थावर, देव तथा नारक के जीव संघयण रहित होते हैं । विकलेन्द्रिय में सेवा संघयण होता है । गर्भज मनुष्य और तिर्यंच में सभी छह प्रकार के संघयण होते हैं ॥११॥ सव्वेसिं चउ दह वा, सन्ना सव्वे सुरा य चउरंसा; । नर तिरिय छ संठाणा, हुंडा विगलिदि-नेरइया ॥ १२ ॥ गाथार्थ : सभी जीवों के चार अथवा दश संज्ञाएँ होती हैं । सभी देवता समचतुरस्रसंस्थान वाले, सभी गर्भज मनुष्य व तिर्यंच छहों संस्थानवाले तथा नारक विकलेन्द्रिय हुंडक संस्थानवाले होते हैं ॥१२॥ नाणाविह धय सूई, बुब्बुय वण वाउ तेउ अपकाया; । पुढवी मसूर-चंदा-कारासंठाणओ भणिया ॥ १३ ॥ गाथार्थ : वनस्पतिकाय भिन्न-भिन्न संस्थानवाली होती है, वायुकाय का संस्थान ध्वजा के आकार का होता है, अग्नि का संस्थान सुई जैसा, अप्काय का संस्थान परपोटे जैसा तथा पृथ्वीकाय का संस्थान मसूर की दाल अथवा चंद्र के आकारवाला होता है ॥१३॥ सव्वे वि चउकसाया, लेसछग्गं गब्भतिरिय मणुएसु । नारय-तेऊ वाउ, विगला वेमाणिय तिलेसा ॥ १४ ॥ ___ गाथार्थ : सभी जीव चार कषायवाले होते हैं । गर्भज तिर्यंच और मनुष्य की छह लेश्याएँ होती हैं । नारक, दंडक-लघुसंग्रहणी ___wrPage Navigation
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