Book Title: Dada Bhagvana Kaun
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 13
________________ दादा भगवान ? बोलिये, अब ऐसी माँ महावीर बनायेगी कि नहीं बनायेगी ? इस प्रकार संस्कार भी माताजी से उच्च प्रकार के मिले हैं। उसमें घाटा किसका? १५ मैं बचपन में थोड़ा बहुत रूठा करता था। बहुत रूठना नहीं होता था, कभी-कभी रूठ बैठता था। फिर भी मैंने हिसाब निकाला कि रूठने में केवल घाटा ही होता है, इसलिए फिर तय किया कि कोई हमारे साथ कैसा भी व्यवहार करे फिर भी कभी नहीं रूठना । मैं रूठा जरूर था, पर उस दिन सुबह मिलनेवाला दूध खोया ! फिर मैंने सारे दिन में क्या-क्या गँवाया उसका हिसाब लगाया.... माताजी से मेरी क्या शिकायत थी कि मुझे और भाभीजी को, दोनों को आप समान क्यों समझती हैं, माँ? भाभीजी को आधा सेर दूध और मुझे भी आधा सेर दूध ? उसे कम दीजिये। मुझे आधा सेर मंजूर था। मुझे ज्यादा की ज़रूरत नहीं थी पर भाभीजी का कम करने को कहा, डेढ़ पाव कीजिये कहा, इस पर माताजी ने क्या कहा? 'तेरी माँ तो यहाँ मौजूद है, उसकी माँ यहाँ नहीं है न! उस बेचारी को बुरा लगेगा। उसे दुःख होगा। इसलिए समानता ही होनी चाहिए।' फिर भी मेरा समाधान नहीं होता था । माताजी बार-बार समझाती रहती, कई तरह से समझाने का व्यर्थ प्रयत्न किया करती थी ! इसलिए एक दिन मैं अड़ गया, मगर उसमें घाटा मेरा ही हुआ । इसलिए फिर तय किया कि अब दोबारा हठी नहीं होना है। कम उम्र में भी सही समझ बारह साल का था तब गुरु के पास बंधवायी हुई कंठी टूट गई। तब माताजी ने कहा कि, 'हम यह कंठी फिर से गुरु के पास बँधवाएँ।' इस पर मैंने कहा, 'हमारे पुरखों ने जब इस कुएँ में छलांग लगाई होगी, तब इस कुएँ में पानी होगा, पर मैं आज जब इस कुएँ में झाँकता हूँ तो बड़े-बड़े पत्थर नज़र आते हैं, पानी नज़र नहीं आता और बड़े-बड़े साँप दिखाई देते हैं। मैं इस कुएँ में गिरना नहीं चाहता।' बाप-दादा जिसमें गिरे उस कुएँ में हम भी गिरें ऐसा कहीं लिखकर थोड़े दिया है? देखिए भीतर, १६ दादा भगवान ? कि पानी है या नहीं, यदि है तो कूद पडिए। वर्ना पानी नहीं हो और गिरकर हमारा सिर तुड़वाने से क्या फायदा? तब गुरु माने प्रकाश धरनेवाला ऐसा अर्थ मैं समझता था । जो मुझे प्रत्यक्ष रूप से ज्ञान नहीं देते, प्रत्यक्ष प्रकाश नहीं धरते तो मैं कुछ ठंडा पानी छिड़कवाकर या सिर पर पानी के घड़े उँडेलवाकर कंठी बँधवाना नहीं चाहता। यदि मुझे लगा कि इसे गुरु करने योग्य है तो मैं ठंड़ा पानी तो क्या, हाथ कटवाने को कहेंगे तो हाथ काटने दूँगा। हाथ काट ले तो क्या हुआ, अनंत अवतारों से हाथ लिए ही फिरते है न? और यदि कोई लुटेरा बिना कहे काट डाले तो काटने देते हैं न? तब यहाँ गुरुजी काटे तो क्या नहीं काटने देना? और यदि गुरु ने काटा तो? पर गुरुजी बेचारे काटनेवाले हैं ही नहीं। पर मान लीजिये शायद काटने को कहें, तो हमें ऐसा नहीं करने की कोई वजह है क्या? इसलिए जब मदर ने कहा कि तुझे 'निगुरा' कहेंगे, तब उन दिनों 'निगुरा' माने क्या इसकी मुझे समझ नहीं थी। मैं मानता था कि यह शब्द उन लोगों का कोई एडजस्टमेन्ट होगा, और 'निगुरा' कहकर फजिहत करते होंगे पर 'बिना गुरु का ऐसा उसका अर्थ उन दिनों मुझे मालूम नहीं था। इसलिए मैंने कहा कि, लोग मुझे निगुरा कहेंगे, मेरी फज़िहत होगी, इससे ज्यादा और क्या कहनेवाले हैं? मगर बाद में मैं इसका अर्थ समझ गया था। नहीं चाहिए ऐसा मोक्ष तेरह साल की उम्र में स्कूल से समय मिलने पर वहाँ संत पुरुष के आश्रम में दर्शन करने जाता था। वहाँ पर उत्तर भारत के एक-दो संतों का निवास था। वे बड़े सात्विक थे, इसलिए मैं तेरह साल की उम्र में उनकी चरण सेवा किया करता था। उस समय वे मुझे कहने लगे कि, 'बच्चा, भगवान तुमकु मोक्ष में ले जायेगा।' मैंने कहा, 'साहिब, ऐसी बात नहीं करें तो मुझे अच्छा लगेगा। ऐसी बात मुझे पसंद नहीं है!' उनके मन में हुआ होगा कि नादान बच्चा है न, इसलिए समझता नहीं है! फिर मुझे

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