Book Title: Collected Research Papers in Prakrit and Jainology Vol 02 Author(s): Nalini Joshi Publisher: University of PunePage 79
________________ List of References 1) आगम युग का जैन दर्शन, p.281 2) पंचास्तिकाय, Agasa edn. Numbers of verses given in the paper are according to this edition 3) पंचास्तिकाय, verse 2 4) पंचास्तिकाय, verse 173 5) Sakrastava, a part of Sadavasyaka for Sravakas 6) बारसाणुपेक्खा , verse 1 7) पंचास्तिकाय, verse 105 8) अष्टपाहुड, दर्शनपाहुड verse 19 9) Studies in Jainism, pp.83-97 10) नव सब्भावपयत्था पण्णत्ता, स्थानांग 9.665 11) जीवाजीवा य बन्धो य ---सन्तेए तहिया नव, उत्तराध्ययन 28.14 12) पंचास्तिकाय, verse 86 13) आदेशमत्तमुत्तो धादुचदुक्कस्स कारणं जो दु । सो णेओ परमाणू परिणामगुणो सयमयद्दो ।। पंचास्तिकाय, verse 78 14) णिच्चिदर धादु-सत्तय तरुदस वियलिंदियेसु छच्चेव । सुर णिरय तिरिय चउरो चोद्दस मणुये सदसहस्सा ।। बारसाणुपेक्खा, verse 35 15) The words mūrta (mutta) and amūrta (amutta) are found in Pancāstikāya verses 78,97,99. 16) दवियदि गच्छदि ताई ताई सब्भावपज्जयाई जं । दवियं न भण्णते अणण्णभूदं तु सत्तादो ।। पंचास्तिकाय, verse 9 17) प्रवचनसार, 2.23; पंचास्तिकाय, verse 14 18) Tattvärtha sūtra, Nathmal Tatia, p.27 19) द्रव्यसंग्रह, verse 11 20) Tattvärtha sūtra, Nathmal Tatia, p.41 21) अरहंतसिद्धचेदियपवयणगणणाणभत्तिसंपण्णो । ___बंधदि पुण्णं बहुसो ण दु सो कम्मक्खयं कुणदि ।। पंचास्तिकाय, verse 166 22) जीवा पुग्गलकाया आयासं अत्थिकाइया सेसा । अमया अत्थित्तमया कारणभूदा हि लोगस्स ।। पंचास्तिकाय, verse 22 23) पंचास्तिकाय, verse 66 24) पंचास्तिकाय, verse 67 25) (i) विणइत्तु लोभं णिक्खम्म, एस अकम्मे जाणति-पासति । आयारो (Ldn.), 1.1.2.37 (ii) दुक्खं च जाण अदुवागमेस्सं, लोयं च पास विष्फंदमाणं । आयारो (Ldn.), 1.1.3.35 26) पंचास्तिकाय, verse 85,86 27) दर्शनपाहुड 7; बोधपाहुड 15,23 ; भावपाहुड 82,90,95,122,123,158 ; मोक्षपाहुड 51. List of Reference-Books 1) अष्टपाहुड : कुन्दकुन्दाचार्यविरचित, सं.डॉ.हकुमचन्द भारिल्ल, श्री कुन्दकुन्द कहान दिगंबर जैन तीर्थ सुरक्षा ट्रस्ट, जयपुर 2) आगम-युग का जैनदर्शन : पं.दलसुख मालवणिया, सं.विजयमुनि, सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा, 1966 3) आचारांग (आयारो) : वाचना प्रमुख-आ.तुलसी, जैन विश्वभारती प्रकाशन, लाडनूं (राजस्थान), वि.सं.2031 4) उत्तराध्ययनसूत्र : सं. साध्वी चन्दना, सन्मति ज्ञानपीठ, जैन भवन, आगरा. 1997 5) तत्त्वार्थसूत्र : उमास्वातिविरचित, विवेचक-पं. सुखलाल संघवी, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी, 1976 6) TATTVĀRTHA SUTRA : Umāsvāti, Translated by Nathmal Tatia, Motilal Banarsidass Publishers Private Limited, Delhi, 2007 7) पंचास्तिकाय : कुन्दकुन्दाचार्यविरचित, श्रीमद् राजचंद्र आश्रम, अगास (गुजरात), 1986 8) PANCASTIKAYA : By Kundakundacharya, Translated by Prof. Chakravartinayanar, The Central ____ Jaina Publishing House, Arrah (India). 1920 9) बारसाणुपेक्खा : आ. कुन्दकुन्दविरचित, पद्मश्री सुमतिबाई शहा, सोलापुर, 1989 10) STUDIES IN JAINISM : Editor-Dr. M.P.Marathe, Gokhle, Department of Philosophy, University of Poona, 1984Page Navigation
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