Book Title: Collected Research Papers in Prakrit and Jainology Vol 02
Author(s): Nalini Joshi
Publisher: University of Pune

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Page 104
________________ List of References 1. The short form of Devavācakagani is 'DVG.', which is used in this paper for the sake of convenience. 2. Tattvārtha 1.20; 1.32 3. 'AR' is Arya Raksita 4. आगम युग का जैन दर्शन, p.165 5. तत्त्वार्थ, पं. सुखलालजी संघवी (हिंदी), p.26 6.i) गोटे पाओवगदो सुबंधुणा गोब्बरे पलिविदम्मि । डझंतो चाणक्को पडिवण्णो उत्तम अटुं ।। भगवती आराधना, १५५६ ii) चाणक्याख्यो मुनिस्तत्र शिष्यपञ्चशतैः सह । पादोपगमनं कृत्वा शुक्लध्यानमुपेयिवान् ।। बृहत्कथाकोश १४३ चाणक्यमुनिकथानकम् । Gatha 83 7. सग-हण-बब्बर - प्रश्नव्याकरण १.२१ : भगवती ३.९५ 8. प्रबंधकोश, कालकाचार्य कथानक, katha No. 4, pp. 22-27 9. दिट्ठो गंठी धणदेवेण । थेरीए दिट्ठि वंचिऊण छोडिओ । दिट्ठाओ दोन्नि तत्थ सुवण्णखोडियाओ । मणोरमाकहा p.249,250 10. सिद्धानां कपिलो मुनिः । गीता १०.२६ ; उत्तराध्ययन 'कापिलीय' अध्ययन 8 11. कौटिलीय अर्थशास्त्र, प्रस्तावना - दुर्गा भागवत, p.4 12. Silanka comm. on सूत्रकृतांग (I) 1.1.7.8 13. लोकायता वदन्त्येवं नास्ति जीवो न निर्वृतिः ।। धर्माधौं न विद्यते न फलं पुण्यपापयोः ।। षड्दर्शनसमुच्चय 80 14. साङ्ख्ययोगौ पृथग्बाला: प्रवदन्ति न पण्डिताः । गीता 5.4 एक साङ्ख्यं च योगं च यः पश्यति स पश्यति । गीता 5.5 15. भम्भ्याम् आसुवृक्षे माढरे नीतिशास्त्रे कौटिल्यप्रणीतासु च दण्डनीतिषु ये कुशला इति गम्यते । व्यवहारसूत्रभाष्य Part 3, p.132 16. Jina Rsabha as an Avatāra of Visnu - Chapter 18, Collected Papers on Jaina Studies, P.S.Jaini 17. जैनांच्या आगमग्रंथातील बहात्तर कला - विभाग 8, जैनविद्येचे विविध आयाम 18. कुमारपालप्रतिबोध, शीलव्रतपालने शीलवतीदृष्टान्तः, 'सयल-कला-सिरोमणिभूयं सउणरुयं अहं सुणेमि', p.223 19. Jainism, Glasenapp.p.384 20. History of the Ajivikas, A.LBasham, Silanka and Trairāsikas' pp.174-181 List of Reference-Books (i) Original Sources 1. नन्दीसूत्रम् : देववाचकविरचित, वृत्ति हरिभद्र, सं.मुनि पुण्यविजय, प्राकृत ग्रंथ परिषद, अहमदाबाद, १९६६ 2. देववाचकविरचित नंदिसुत्तं, आर्यरक्षितविरचित अणुओगद्दाराई : सं. मुनि पुण्यविजय ; महावीर जैन विद्यालय, मुंबई, १९६८ 3. नन्दीसूत्र : घासीलाल महाराज टीकासहित, जैन शास्त्रोद्धारसमिति, राजकोट, १९५८ 4. सांख्यकारिका : ईश्वरकृष्णविरचित माढरवृत्तिसहिता, चौखम्बा संस्कृत सीरिज आफिस, वाराणसी, वि.सं. २०२७ 5. तत्त्वार्थसूत्र : वाचक उमास्वाति, पं. सुखलाल संघवी, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी, १९९३ 6. कुमारपालप्रतिबोध : सोमप्रभ, ओरिएंटल इन्स्टिट्यूट, वडोदरा, १९९२ (ii) Secondary Sources 1. आगम-युग का जैन-दर्शन : पं. दलसुख मालवणिया, सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा, १९६६ 2. प्राकृत साहित्य का इतिहास : डॉ. जगदीशचन्द्र जैन, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, १९८५ 3. Prakrit Proper Names (Part I,II): compiled by Mohanlal Mehta, L.D.Institute of Indology, ____ Ahmedabad, 1970 4. History and Doctrines of The Ajivikas: A.L.Basham, Motilal Banarsidass, Delhi, 2002 5. Collected Papers on Jaina Studies: Padmanabh S. Jaini, Motilal Banarsidass, Delhi, 2000 6. जैनविद्येचे विविध आयाम : लेखक व संपादक - डॉ. नलिनी जोशी, जैन अध्यासन, तत्त्वज्ञान विभाग, पुणे विद्यापीठ, ऑगस्ट २०११ * * ** ** ** ** 104

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