Book Title: Collected Research Papers in Prakrit and Jainology Vol 02
Author(s): Nalini Joshi
Publisher: University of Pune

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Page 121
________________ 3. सूत्रपाहुड 24,26 4. पंचमहव्वयजुत्तो तिहिं गुत्तिहिं जो स संजदो होई । णिगंथमोक्खमग्गो सो होदि हु वंदणिज्जो य ।। सूत्रपाहुड 20 5. सण्णी छस्संहडणो वज्जदि मेघं तदो परं चापि । सेवट्टादीरहिदो पण पणचदुरेगसंहडणो ।। अंतिमतियसंहडणस्सुदओ पुण कम्मभूमिमहिलाणं । आदिमतिगसंहडणं णत्थित्ति जिणेहिं णिघि8 ।। गोम्मटसार 31,32 6. सूत्रपाहुड 24,26 7. ललितविस्तरा p.406 8. 'आद्ये पूर्वविदः ।' (तत्त्वार्थ ९.३९) इतिवचनात्, 'दृष्टिवादश्च न स्त्रीणामि' तिवचनात् । ललितविस्तरा (पञ्जिका) p.406 9. जैन आगमात स्त्री p.114 10. षड्दर्शनसमुच्चय p.306, para 277 11. नवगुणस्थानसङ्गतापि लब्ध्ययोग्या अकारणमधिकृतविधेः । ललितविस्तरा, p.405 12. आहारक शरीरलब्धि, मनुष्य के सिवाय अन्य जातियों में नहीं होती है और मनुष्य में भी विशिष्ट मुनि के ही होती है । चतुर्दश पूर्वधारी मुनि के ही होती है । तत्त्वार्थसूत्र p.76,77 13. स्त्री सम्यक्त्व याने चतुर्थ गुणस्थानक तो पाए जाए किन्तु वह ऊपर के नौ गुणस्थानक प्राप्त करने के लिए अयोग्य है । ललितविस्तरा p.405 14. दिगम्बर कहते हैं कि स्त्रियों में अनृतं, साहसं माया' इ. स्वाभाविक दूषण रहे हैं । श्वेताम्बर-दिगम्बर (समन्वय), p.99 15. ----- इथिओ जति छट्ठि पुढवि त्ति । ----- मूलाचार, verse 113, para 12 16. जो आत्मा सातवीं नारकी पाने को समर्थ है, वही मोक्ष पाने को समर्थ है । श्वेताम्बर-दिगम्बर (समन्वय), p.112 17. जैन परंपरा और यापनीय संघ (प्रथम खंड) सप्तम अध्याय, p.485 18. ललितविस्तरा p.402 19. ललितविस्तरा p.406 20. ललित-विस्तरा p.401-407 21. अंतगडदशा, अष्टमवर्ग 22. Sat-darsana-samuccaya, verse 52 23. Sat-darsana-samuccaya, p.301-308 List of Reference-Books 1. अंतकृद्दशा (अंतगडदसा) : अंगसुत्ताणि ३, जैन विश्वभारती, लाडनूं (राजस्थान), वि.सं.२०३१ 2. उपासकदशा (उवासगदसा) : वृत्तिरचयिता घासीलालजी महाराज, श्वेतांबर स्थानकवासी जैन संघ, कराची, १९३६ 3. कार्तिकेयानप्रेक्षा : कार्तिकेयविरचित. सं.पं. महेन्द्रकमार पाटनी, दिगंबर जैन शिक्षण संयोजन समिति, इन्दौर, १९९६ 4. गोम्मटसार (कर्मकाण्ड) : नेमिचंद्रसिद्धांतचक्रवर्तीविरचित, निर्णयसागर प्रेस, मुंबई, वी.नि.सं.२४३८ 5. जैन आगमात स्त्री : डॉ. नलिनी जोशी, सन्मति-तीर्थ, पुणे, २००० 6. जैन परंपरा और यापनीय संघ (प्रथम खंड) : डॉ. रतनचन्द्र जैन, सर्वोदय जैन विद्यापीठ, आगरा, २००९ 7. तत्त्वार्थसूत्र : उमास्वातिविरचित, विवेचक पं. सुखलालजी संघवी, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी, २००१ 8. बारसाणुवेक्खा : कुंदकुंदविरचित, सं. पद्मश्री सुमतिबाई शहा, सोलापुर, १९८९ 9. भगवती आराधना : आ. शिवार्यविरचित, सं.पं. कैलाशचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री, श्री हिरालाल खुशालचंद दोशी, फलटण, १९९० 10. मूलाचार : आ. वट्टकेर, सं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, १९८४ 11. ललितविस्तरा : आ. हरिभद्रसूरिविरचित, मुनिचंद्रसूरिविरचित पञ्जिका टीका सहित, हिंदी विवेचन - भानुविजयजी, 'दिव्यदर्शन' साहित्य समिति, अहमदाबाद, १९६३ 12. व्यवहारसूत्र : शूबिंग, देवनागरी रूपांतर, जैन साहित्य संशोधक समिति, पुणे, १९२३ 13. श्वेताम्बर-दिगम्बर (समन्वय) : मुनि दर्शनविजय, शा. मफतलाल माणेकचंद, बोरडी, १९४३ 14. षड्दर्शनसमुच्चय : हरिभद्रसूरिविरचित, सं.डॉ. महेन्द्रकुमार जैन, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, दिल्ली, १९८९ 15. सूत्रपाहुड (अष्टपाहुड) : कुंदकुंदविरचित, सं.डॉ. हुकुमचन्द भारिल्ल, श्री कुंदकुंद कहान दिगंबर जैन तीर्थ सुरक्षा ट्रस्ट, जयपुर 121

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