Book Title: Chaturvinshati Prabandh Author(s): Rajshekharsuri Publisher: Hemchandracharya Sabha View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ॐ अहम् श्रीहेमचन्द्राचार्यप्रन्धाधली में० २० श्रीराजशेखरसूरिविरचित चतुर्विंशतिप्रबन्धः॥ राज्याभिषेके कनकासनस्थः सर्वाङ्गदिव्याभरणेऽभिरामः। श्रियेऽस्तु वो मेरुशिरोऽवतंसः कल्पद्रुकल्पः प्रथमो जिनेन्द्रः॥१॥ विवेकसुच्चैस्तरमारोह यस्ततोऽद्रिशङ्गं चरणं ततस्तपः। ततःपरं ज्ञानमयोत्तरं पदं श्रियं स नेमिर्दिशतृत्तरोत्तराम् ॥२॥ यस्मै स्वयंवरसमागतसप्ततत्त्वलक्ष्मीकरग्रहणमाचरतेति भक्त्या। साव्यधात्फणिपतिः फणमण्डपान्कि वामानभूः स भगवान्भवतान्मुदेवः ।।३॥ अर्थेन प्रथमं कृतार्थमकरोद्यो वीरसंवत्सरे । दाने च व्रतपर्वजेऽथ परमार्थेनापि विष्वग जनम् । For Private And PersonalPage Navigation
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