Book Title: Chaturvinshati Jin Stotrani Author(s): Vinaysagar Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 8
________________ अनुसन्धान-४० साहुसहस्सेण समं सम्मेए चित्त-सुद्ध-नवमीए । पत्तोसि सुहमणंतं तं देसु ममावि किमऽजुत्तं ॥८॥ सिरि पउमप्पहणाह-थुत्तं सिरिपउमप्पह ! पुहई पहासिङ माह-बहुलछट्ठीए । सब्बुवरिम-गेविज्जा तुमं पवन्नोसि कोसंबि ॥१॥ जाओसि धर-सुसीमाण कत्तिए बहुल-बारसीइ तुमं । अड्डाइज्ज-धणुस्सयपमाण कमलं क रत्तंगं ।।२।। अद्धट्ठमा कुमारो लक्खा पुव्वाण सट्टइगवीसं । सोलस अंगा यतिवो सह निव-सहसेण सहसंबे ॥३॥ छट्टेण विणिक्खंतो पहु कत्तिय-कसिण-तेरसीइ तुमं । परमन्नं च पवन्नो बीयदिणे सोमदे वाउ ।।४।। छम्मासंते नाणं तम्मि वणे चित्त-पुन्निमाए तए । लक्ष्ण कयं गणहर-सत्तहियसयं मुणीणं तु ॥५॥ तीस सहस्स-तिलक्खं अज्जाणं वीस सहस चउलक्खं । तुह सामि सेवगा कुसुम-अच्चुया अजियसेण-निवा ॥६॥ तुह वयमसोलसंग लक्खं पुव्वाण तीस लक्खाऊ । सुमइ-जिणाणंतरमयर कोडि-नवई सहस्सेहिं ॥७॥ सम्मे ए चउवीसहिएहिं तिहिं सएहि समं । मग्गसिर-कसिण-इक्कारसीइ निव्वुय नमो तुज्झ ।।८।। सिरि सुपासणाह-थुत्तं तिहुयणसिरिवास-सुपाससामि ! कसिणट्ठमीइ भद्दवए । मज्झिम उवरिमओ तुह चरणं भवियाण कुणउ सुहं ॥१॥ वाणारसीइ सिय-बारसीइ जिढे पइट्ठ-पुहइ-सुओ । दुसय-धणू सियवर-सत्थियंक कणयप्पहो तेसिं ।२।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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