Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
जुलाई-२००७
__ श्री देवभद्रसूरि रचित चतुर्विंशति-जिन स्तोत्राणि
म० विनयसागर
वाणीकी सफलता और हृदय की अनुभूति का उद्रेक ही स्तोत्रों का प्रमुख विषय रहा है । जिनेश्वरों के पाँच कल्याणकों के अतिरिक्त उनसे सम्बन्धित जितनी भी वस्तुएँ स्थान हैं, उनके माध्यम/वर्णन से कृतकृत्य होना ही जीवन की सफलता का आधार है। प्रस्तुत स्तोत्रों में उनके गुणगौरव यशोकीर्ति का उल्लेख कम है, उनके वर्णनों/स्थानों का उल्लेख अधिक है ।
इस कृति की दुर्लभ प्रति श्री लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, मुनिराजश्री पुण्यविजयजी के संग्रह में उपलब्ध है । सूचीपत्र भाग-१, क्रमाङ्क १३७८, परिग्रहणाङ्क नम्बर ७२५४ (१) पर सुरक्षित है। पत्र संख्या ५ है । साईज ३० x ११-४, पंक्ति २० और अक्षर संख्या ५८ है। लेखनकाल संवत् १५५० है । इस स्तोत्र का प्रारम्भ - सिरि अजियनाह वइसाह - से प्रारम्भ होता है । गाथा संख्या १९२ है ।
प्रणेता प्रथम ऋषभदेव स्तोत्र गाथा ८ में देवभद्दाइं और वर्द्धमान स्तोत्र गाथा ८ में देवभद्दाइं शब्द का रचनाकार ने प्रयोग किया है । इससे स्पष्ट है कि इस कृति के प्रणेता देवभद्रसूरि हैं । इसमें कहीं भी अपनी गुरु-परम्परा और गच्छ का उल्लेख नहीं किया है । लिखित प्रति १५५० की होने के कारण इससे पूर्व ही देवभद्रसूरि के सम्बन्ध में विचार आवश्यक है। १. देवभद्रसूरि - नवाङ्गीटीकाकार श्री अभयदेवसूरि के विनेय शिष्य हैं ।
इनका दीक्षा नाम गुणचन्द्रगणि था और आचार्य बनने के पश्चात् देवभद्रसूरि के नाम से प्रसिद्ध हुए । इनके द्वारा प्रणीत वीरचरित्र, कहारयणकोष (रचना सं. ११५८) और
पार्श्वनाथ चरित्र (रचना सं. ११६५) के प्राप्त हैं । २. देवभद्रसूरि - चन्द्रगच्छ, बृहद् गच्छ, पिप्पलक शाखा के प्रवर्तक हैं,
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुसन्धान- ४०
जो विजयसिंहसूरि, देवभद्रसूरि, धनेश्वरसूरि की परम्परा में हैं । इनका समय १२वीं शताब्दी है ।
३. देवभद्रसूरि - चन्द्रगच्छीय, शान्तिसूरि, देवभद्रसूरि, देवानन्दसूरि की परम्परा में हैं । सत्ताकाल १३वीं शती है ।
४. देवभद्रसूरि - मलधारगच्छीय श्रीचन्द्रसूरि के शिष्य हैं । और संग्रहणी वृत्ति इनकी प्रमुख रचना है । समय १२वीं शताब्दी । ५. देवभद्रसूरि - पूर्णिमापक्षीय विमलगणि के शिष्य हैं । दर्शनशुद्धिप्रकरण की टीका प्राप्त है जिसका रचना संवत् १२२४ है ।
६. देवभद्रसूरि - राजगच्छीय अजितसिंहसूरि के शिष्य है । इनकी प्रमुख रचना श्रेयांसनाथ चरित्र है और इनका सत्ताकाल १२७८ से १२९८ है ।
I
साहित्य में इन छ: देवभद्रसूरि की उल्लेख प्राप्त होता है | क्रमांक २ और ३ की कोई रचनाएँ प्राप्त नहीं हैं । क्रमांक ४-५ जैन प्रकरण साहित्य के टीकाकार हैं और क्रमांक ६ कथाकार हैं। क्रमांक २-६ तक इस स्तोत्र के प्रणेता हों सम्भावना कम ही नजर आती है । मेरे नम्र विचारानुसार इस कृति के प्रणेता श्री अभयदेवसूरि के विनेय ही होने चाहिए ।"
देवभद्रसूरि खरतरगच्छविरुद धारक श्री जिनेश्वरसूरि के शिष्य उपाध्याय श्री सुमतिगणि के शिष्य हैं । इनका दीक्षानाम गुणचन्द्रगणि था । आचार्य बनने के पश्चात् देवभद्रसूरि के नाम से प्रसिद्ध हुए । श्री अभयदेवसूरि के पास इन्होंने शिक्षा-दीक्षा एवं आगमिक अध्ययन किया था इसीलिए गणधरसार्द्धशतक बृहद्वृत्तिकार सुमतिगणि और खरतरगच्छ गुर्वावलीकार श्री जिनपालोपाध्याय ने अभयदेवसूरि के पास विद्या ग्रहण करने वाले और उनकी कीर्तिपताका फैलाने वाले शिष्यों का उल्लेख करते हुए लिखा है। सत्तर्कन्यायचर्चार्चितचतुरगिरिः श्रीप्रसन्नेन्दुसूरिः,
--
सूरिः श्रीवर्धमानो यतिपतिहरिभद्रो मुनी देवभद्रः ।
१. महावीर स्वामीके स्तवमें पांच ही कल्याणककी बात है, ६ की नहीं; अतः यह कृति किसी अन्य गच्छ के देवभद्रसूरिकी हो यह अधिक सम्भवित है । शी.
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
जुलाई-२००७
इत्याद्या सर्वविद्यार्णवसकलभुवः सञ्चरिष्णूरुकीर्तिः,
स्तम्भायन्तेधुनापि श्रुतचरणरमाराजिनो यस्य शिष्याः ॥
इस पद्य का उल्लेख श्री जिनवल्लभगणि ने चित्रकूटीय वीरचैत्य प्रशस्ति में भी किया है । देवभद्रसूरि प्रसत्रचन्द्रसूरि के अत्यन्त कृपापात्र थे।
__ आचार्य देवभद्रसूरि जैनागमों के साथ कथानुयोग के भी उद्भट विद्वान् थे। उनके द्वारा प्रणीत निम्न ग्रन्थ प्राप्त होते हैं :
महावीर चरित्र (११३९) कथारनकोश (११५८) पार्श्वनाथ चरित्र (११६८) प्रमाण प्रकाश संवेगमञ्जरी
अनन्तनाथ स्तोत्र चतुर्विंशति जिन स्तोत्राणि(?) स्तम्भतीर्थ पार्श्वनाथ स्तोत्र पार्श्वनाथ दशभव स्तोत्र वीतराग स्तोत्र
जिनचरित्र और स्तोत्रों को देखते हुए यह कृति भी इन्हीं की मानी जा सकती है। वर्ण्य-विषय
प्रस्तुत स्तोत्रों में २४ तीर्थंकरों के ३२ स्थानकों का वर्णन है । प्रत्येक स्तोत्र में तीर्थंकरों का नामोल्लेख करते हुए ८ गाथाओं में यह वर्णन किया गया है । स्थानकों का वर्णन निम्न है :
तीर्थंकर नाम - १. च्यवन स्थान, २. च्यवन तिथि, ३. जन्मभूमि, ४. जन्मतिथि, ५. पितृनाम, ६. मातृनाम, ७. शरीर वर्ण, ८. शरीर माप, ९. लाञ्छन, १०. कुमारकाल, ११. राज्यकाल, १२. दीक्षा तप, १३. दीक्षा तिथि, १४. दीक्षा स्थान, १५. पारणक, १६. दाता, १७. दीक्षा परिवार, १८. छद्मस्थ काल, १९. ज्ञान नगरी, २०. ज्ञान तिथि, २१. गणधर संख्या, २२. साधु संख्या, २३. साध्वी संख्या, २४. शासन देव, २५. शासन देवी, २६. भक्त, २७. दीक्षा पर्याय, २८. आयुष्य, २९. मोक्ष परिवार, ३०. अन्तरकाल, ३१. निर्वाण तिथि, ३२. निर्वाण धाम । विस्तृत जानकारी के लिए पृथक् से इन ३२ स्थानकों का कोष्ठक यन्त्र परिशिष्ट में दिया गया हैं वहाँ देखें।
स्थानकों का उल्लेख किस ग्रन्थ के आधार से किया गया है ? इसका
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुसन्धान- ४० कोई उल्लेख नहीं है । तथापि आगम साहित्य, प्रकीर्णक साहित्य, तीर्थंकर चरित्र (प्रथमानुयोग), आदि विभिन्न ग्रन्थों में जो स्थानकों सम्बन्धि उल्लेख मिलते हैं उनका यहाँ एकीकरण किया गया हो ऐसा माना जा सकता है ।
श्रीशीलाङ्काचार्य (९वीं शती) रचित चउपन्न - महापुरुष - चरियं में शासनदेव, शासनदेवी, पारणा कराने वाले और प्रमुख भक्त आदि का उल्लेख न होने से यह निश्चित है कि यह उससे परवर्ती रचना है ।
श्रीशीलाङ्काचार्य रचित चउप्पन्न - महापुरुष - चरियं और कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य रचित त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र में वर्णित स्थानकों में अन्तर हो सकता है । जैसे श्री शीलाङ्काचार्य, देवभद्रसूरि और हेमचन्द्राचार्य ने श्रेयांसनाथ का अन्तरकाल ६६, २६००० सागरोपम कम माना है, किन्तु त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र संस्कृत में ६६, २६००० ही माना है किन्तु सम्पादक श्री विजयशीलचन्द्रसूरिजी ने पाठान्तर में ६६, ३६००० स्वीकृत किया है । गुजराती और हिन्दी अनुवादों में ६६, ३६००० ही देखने में आ रहा है ।
श्रीजिनवल्लभसूरि ने चतुर्विंशति जिन स्तोत्राणि में केवल छः स्थानकों का ही उल्लेख किया है । परवर्ती काल में स्थानकों का वर्णन क्रमश: बढ़ते हुए १७० तक पहुँच चुका था । श्रीसोमतिलकसूरि द्वारा संवत् १३८७ में रचित सप्ततिशत्तस्थानप्रकरणम् में १७० स्थानों का वर्णन है ।
1
मुनिराज की पुण्यविजयजी के संग्रह की वर्तमान समय में प्राप्त प्रति में अजितनाथ स्तोत्र से यह वर्णन प्रारम्भ होता है । जबकि आज से ५५ वर्ष पूर्व जिस प्रति के आधार से प्रतिलिपि की थी उसमें ऋषभदेव वर्णनात्मक ८ गाथाएँ भी थी । यह कृति अद्यावधि अप्रकाशित थी । अतः पाठकगण इसका रसास्वादन करें, इसी दृष्टि से प्रस्तुत है I
सिरि रिसहणाह - थुत्तं
परिसिद्धिकए सिरिरिसहनाह ! सव्वट्टसिद्धिमुज्झेउं । अवइन्नोसि अउज्झं कसिणं चउत्थीइ आसाढे ॥ | १ || नाहि-मरुदेवि-तणओ जाओ चित्तट्ठमीइ बहुलाए । पंच धणुस्यदेहो कणयपहो तंसि वसहंको ॥२॥
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
जुलाई - २००७
कुमरोसि पुव्वलक्खे वीसं पुहईसरो य तेवट्ठि । कसिणडुमीइ चित्ते सह चउहिं नरिंदसहसेहिं ||३|| सिद्धत्थवणंमि तुमं छट्टेण विणिग्गओसि वरिसंते । सेयंसाउ तुहासी इक्खुरसो पढमपारणए ।।४।। वाससहस्सं अच्छिय छउमत्थो फग्गुणस्स कसिणाए । इक्कारसीइ पत्तो के वलनाणं पुरिमताले ॥५॥ तुह गणहरा य चुलसी साहु सहस्सा य साहुणि तिलक्खं । गोमुह- अप्पडिचक्का भरहेसरचक्किणो भत्ता ||६|| दिक्खा य पुव्वलक्खं आउं चुलसीइ पुव्वलक्खाई । अवसप्पिणि तइयऽरए सेसे गुणनवइ पक्खेहि ॥७॥ कसिणाइ तेरसीए माहे सह दसहि मुणिसहस्सेहि । अट्ठावयम्मि निव्वुय ! देहि महं देव ! भद्दाई ॥८॥
सिरि अजियणाह - थुत्तं
सिरिअजियनाह ! वइसाह - सुद्ध-तेरसि विमुक्कविजयसुहो । लोयहियद्रुमवज्झाइ तं पवन्नोसि गब्भदुहं ॥ १ ॥ भविय जियसत्तु - विजया - तणओ माहट्टमीए सुद्धाए । गयचिंध अद्धपंचम धणुसयतणु कणयसंकास ||२|| कुमरत्ते अट्ठारस लक्खा पुव्वाण गमिय रज्जेउ । तेवत्रमंगसहिया माहे सुद्धाइ नवमीए ||३|| सहसंबवणे छट्टेण निग्गओ तंसि नरसहस्सजुओ । अन्नदिणे परमन्नं दिण्हं तुह बंभदत्तेन ||४|| बारसवरिसाणंते पोस- सिय-इक्कारसीइ तम्मि वणे । उप्पन्ननाण तुमए पणनवई गणहरा विहिया ||५|| साहू लक्खं अज्जाउ तिनि लक्खाइं तीस सहसा य । भत्ता तुह महजक्खो अजियबला सगरचक्की य ||६|| वयमंगूणं लक्खं पुव्वा आउं बिसत्तरी लक्खा । पन्नास अयर कोडी लक्खेसु गएसु उसभाओ ||७||
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुसन्धान-४०
चित्तसिय-पंचमीए सम्मेए तं मुणीण सहसेण । सेलेसीमारुहिउं जत्थ गओ तत्थ मन्नेसु(मं नेसु) ||८||
सिरि संभवणाह-थुत्तं सिरिसंभवजिण ! सत्तम ! सत्तम-गेविज्जयाउ सावत्थि । फग्गुणसियट्ठमीए पत्तोसि सुहाय वसुहाए ॥१।। जाओ जिआरि-सेणाण सुद्धमग्गसिरचउदसीइं तुमं । कणयतुलियंग चउसयधणुतुंग तुरंग-लंछणय ॥२॥ पन्नरस-पुव्वलक्खे कुमरो चउचत्तपुव्वलक्खा य । चउरंगाणि य राया भविऊणं मणुय-सहसेण ॥३॥ मग्गसिर-पुन्निमाओ कयछट्ठो निग्गओ सहस्संबे । बीयदिणे परमन्नं सुरिंददत्ताउ पत्तोसि ॥४।। चउदस-वरिसंते पंचमीइ कसिणाइ कत्तिए नाणं । तम्मि वणे जणिय कयं गणहारिसयं दुरुत्तरयं ॥५॥ लक्खदुगं साहूणं अज्जा छत्तीससहसलक्खतिगं । नाह ! तुह तिमुह-दुरियारि मित्तसेणा सया भत्ता ॥६॥ पुव्वाण लक्खमेगं चउरंगूणं तवेण खविऊणं । अजियजिणाओ सागर-कोडी-लक्खाण-तीसाए ॥७॥ चित्तसियपंचमीए तं निट्ठिय सट्ठि-लक्ख-पुव्वाउं । संजयसहस-समे यं-सम्मेए निव्वुयं वंदे ॥८॥
सिरि अभिणंदणणाह-थुत्तं सरिमो सिरिअभिनंदणजिर्णिद ! वइसाहसियचउत्थीए । जय नाह ! जयंताउ तुज्झ अवज्झाइ अवयरणं ॥१॥ संवर-सिद्धत्थाणं कणयपहो माह-सुद्धबीयाए । अद्ध-चउत्थ-धणुस्सयतणु वानरचिंध जाओसि ॥२॥
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
जुलाई - २००७
अद्धत्तेरसकुमरोसि पुव्व-लक्खाई सड्ढछत्तीसं । अट्ठगाणि य राया माहे सिय- बारसीइ तुमं ॥३॥ छद्वेण गहियदिक्खो सहसंबवणे नरिंदसहसेणं । पत्तो पायसमसणं बीयदिणे इंददत्ताओ || ४ || अट्ठारस - वरिसेहिं सिय-पोस - चउद्दसीइ तम्मि वणे ! जायं नाणं तह सोलसोत्तरं गणहराण सयं ॥ ५ ॥ मुणि लक्ख-तिगं अज्जाण तीससहसाहियं तु छल्लक्खं । जक्सर - कालीओ तुह भत्ता मित्तविरिओ य ॥६॥ गय-पुव्व-लक्खं अट्ठगूणं ठिओसि सामन्ने । संभवनाहाउ गएसु अयर - दसकोडि - लक्खेसु ॥७॥ पन्नास-पुव्व लक्खे जीविय सियअट्ठमीइ वइसाहे । मुणि- सहसजुयं सिद्धं तुमं नम॑सामि सम्मेए ॥८॥
सिरि सुमइणाह - थुत्तं
पणमामि सुमइसामिय ! कामिय वसुहोवयारभ (म?) वयारं । सावण- सिय- बीयाए जयंतओ तुह अवज्झाए ॥१॥ तं मेह- मंगलाणं वइसाह - सियट्टमीइ जाओसि । अइजच्च-कंचणनिभो तिसय- धणुच्चो सकुंचो य ॥२॥ कुमरोसि पुव्वलक्खे दस नरनाहो य बारसंगजुयं । इगुणत्तीसं वइसाह - सुद्ध - नवमीइ सहसंबे ॥३॥ कर्यानिच्चभत्त नर- सहसंसंगओ निग्गओसि बीयदिणे । पउमाउ पत्तपायस वासा वीसं ठिओ छउमे ||४| तम्मि वणे वरनाणं चित्त - सिय- इक्कारसीइ पत्तोसि | गणहरसयं मुणीणं लक्ख-तिगं वीससहसजुयं ॥५॥ अज्जाण पंच-लक्खं तीस-सहस्साहियं तए विहियं । तुह भत्तिपरा तुंबुरु - महयाली सव्वविरियनिवा ॥६॥ लक्खा अ बारसंगं घुट्ठाण वयं तु चत्तलक्खाई । अभिनंदणाउ जिणओ नवसागरकोडि - लक्खेहिं ॥७॥
७
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुसन्धान-४०
साहुसहस्सेण समं सम्मेए चित्त-सुद्ध-नवमीए । पत्तोसि सुहमणंतं तं देसु ममावि किमऽजुत्तं ॥८॥
सिरि पउमप्पहणाह-थुत्तं सिरिपउमप्पह ! पुहई पहासिङ माह-बहुलछट्ठीए । सब्बुवरिम-गेविज्जा तुमं पवन्नोसि कोसंबि ॥१॥ जाओसि धर-सुसीमाण कत्तिए बहुल-बारसीइ तुमं । अड्डाइज्ज-धणुस्सयपमाण कमलं क रत्तंगं ।।२।। अद्धट्ठमा कुमारो लक्खा पुव्वाण सट्टइगवीसं । सोलस अंगा यतिवो सह निव-सहसेण सहसंबे ॥३॥ छट्टेण विणिक्खंतो पहु कत्तिय-कसिण-तेरसीइ तुमं । परमन्नं च पवन्नो बीयदिणे सोमदे वाउ ।।४।। छम्मासंते नाणं तम्मि वणे चित्त-पुन्निमाए तए । लक्ष्ण कयं गणहर-सत्तहियसयं मुणीणं तु ॥५॥ तीस सहस्स-तिलक्खं अज्जाणं वीस सहस चउलक्खं । तुह सामि सेवगा कुसुम-अच्चुया अजियसेण-निवा ॥६॥ तुह वयमसोलसंग लक्खं पुव्वाण तीस लक्खाऊ । सुमइ-जिणाणंतरमयर कोडि-नवई सहस्सेहिं ॥७॥ सम्मे ए चउवीसहिएहिं तिहिं सएहि समं । मग्गसिर-कसिण-इक्कारसीइ निव्वुय नमो तुज्झ ।।८।।
सिरि सुपासणाह-थुत्तं तिहुयणसिरिवास-सुपाससामि ! कसिणट्ठमीइ भद्दवए । मज्झिम उवरिमओ तुह चरणं भवियाण कुणउ सुहं ॥१॥ वाणारसीइ सिय-बारसीइ जिढे पइट्ठ-पुहइ-सुओ । दुसय-धणू सियवर-सत्थियंक कणयप्पहो तेसिं ।२।।
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
जुलाई-२००७
पुव्वाण पंच लक्खा वीसंगजुयं च लक्ख चउदसगं । कमर-नरनाहभावं अणुभविय नरिंद-सहसजुओ ॥३॥ सहसंबवणे कयछट्ठ जिट्ठ-सिय-तेरसीइ नीहरिओ । जिणचंद महिंदाओ बीयदिणे पायसं पत्तो ।।४।। मासेहिं नवहि फग्गुण-सामलछट्ठीइ तम्मि उज्जाणे । नाणं लद्धण कया पण-नवई गणहरा तुमए ॥५॥ साण तिन्नि लक्खा अज्जा चउ लक्ख तीस सहसा य । तुह भत्ता मायंगो संता तह दाणविरिओ य ॥६॥ पुव्वाणमवीसंगं लक्खं वयमाउ लक्ख वीसं च । पउमाप्पहनाहाओ नव सागरको डिसहसे हिं ।।७।। कसिणए फग्गुण-सत्तमीइ पंचहि सएहिं साहूणं । सम्मेयम्मि सिवं गय सिवगई देहि मह नाह ! ॥८॥
__ सिरि चंदप्पहणाह-थुत्तं चंदप्पह ! पुहइमिमं मज्जति तममुहंमि उद्धरिउं । तुह बहुल-चित्तपंचमि परिवज्जियवेजयंत नमो ॥१५॥ चंदपुरीइ महायस ! पोसासिय-बारसीइ जाओसि । महसेण-लक्खमाणं चंदको चंदधवलोयं ॥२॥ तं सड्डसयधणूसिय कुमरो पुव्वाण सड्ढलक्खदुगं । राया सड्ढछलक्खे चउवीसंगा य कयछट्टो ॥३॥ नरसहसजुओ तं पोस-कसिण-तेरसि पवनसामन्नो । सहसंबे पत्तो सोमदत्त परमन्नमन्नादिणे ।।४।। मासतिगंते कसिणाइ फागुणे सत्तमीइ तम्मि वणे । घाइचउक्कविमुक्केण तेणवइ गणहरा विहिया ।।५।। साहू सड्डदुलक्खा अज्जाउ असीइसहसलक्खतिगं । भत्तिरओ तुह विजओ भिउडी मघवं च महिनाहो ॥६॥ लक्खमचउवीसंगं कयवय दस पुव्व लक्ख सव्वाउं । सागरकोडिसएहि नवहिं गएहिं सुपासाओ ||७||
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
१०
भद्दवय - कसिण - सत्तमि निम्महियाऽसेसकम्म सम्मेए । मुणिसहसजुओ तं निव्वुओसि मम निव्वयं कुणसु ॥८॥
अनुसन्धान- ४०
सिरि सुविहिणाह - थुत्तं
सिरिसुविहिनाह ! मह देहि वंछियं वंछियाइं पूरेउं । चविओसि आणयाओ तं फग्गुण - कसिण- नवमी ॥१॥ कायंदीए रामा - सुग्गीवाणं सुओसि मयरंको । मग्गसिर - पंचमीए कसिणाए चंद- गोरंगो ॥२॥ धणुसयपमाण कुमरत्तणम्मि पन्नास पुव्वसहसाई । रज्जम्मि गमिय तिच्चिय अट्ठावीसंग - सहियाई ॥३॥ सहसंबवणे छद्वेण निग्गओ मग्ग-बहुल- छट्ठीए । नरसहसजुओ पुस्साओ पायसं परदिणे पत्तो ||४|| चरवासे तं कत्तिय - सिय-तइयाए तहिं वणे नाणं । लद्धूण गणहराणं अट्ठासीई तए ठविया ||५|| दो लक्खा साहूणं लक्खं अज्जाण वीस सहसा य । तुह भत्तिरया अजिओ सुतारया जुद्धविरिओ य ||६|| वयमडवीसंगूणं लक्खं पुव्वाण लक्ख- दुगमाउं । चंदप्पहाओ सागरकोडीण गयाइ नवईए ||७|| भद्दवय- सुद्ध - नवमी समणसहस्सेण तंसि सम्मेए । पत्तो ठाणमणंतं ममावि वासं तहि देहि ||८||
"
सिरि सीयलणाह - थुत्तं
सीयलनाह ! महीअलंमि णमो संताववज्जियं काउं । वइसाह - कसिण - छट्ठीइ पाणयाओवइन्नोसि ॥१॥ भद्दिलपुरंमि दढरह - नंदाणं माहबारसीइ तुमं । कसिणाइ कणयवन्त्रो उप्पन्नो नवइ - धणुमाणो ॥ २ ॥
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
जुलाई-२००७
११
सिरिवच्छलंछण तुमं कुमरो पणुवीस पुव्व-सहसाई । दुगुणाई निवो छट्ठाउ मणुय-सहसेण सहसंबे ॥३।। नीहरिओ जम्म-तिहीइ परदिणे पायसं पुणव्वसुणा । दिनां वास--तिगंते पोससिय-चउद्दसीइ दिणे ॥४॥ तम्मि वणे वरनाणं तुहासि इगसीइ गणहराणं च । साहूण सयसहस्सं अज्जालक्खं तु छहि अहियं ॥५॥ तुह पहुभत्ता बंभोऽसोया सीमंधरो य धरणीसो । पणवीस-पुव्व-सहसा वयमाउं पुव्वलक्खं तु ॥६॥ सिरि सुविहिजिर्णिदाओ गयम्मि नवगम्मि अयर-कोडीणं । वइसाह-बहुल-बीयाइ साहुसहसेण सम्मेए |७|| नाणेहिं तिहिवि चउहि वि पंचहि वि जं न पत्तपुव्वं तु । तक्कालि च्चिय तं अक्खरपयं पत्त तुज्झ नमो ॥८॥
सिरि सेयंसणाह-थुत्तं तिहुयणलच्छीकन्नावयंस-सेयंस ! तंसि अच्चुयओ । सीहपुरे अवइन्नो बहुलाए जिट्ठ-छट्ठीए ।।१।। जाओसि विण्हु-विण्हूण बारसीइ कसिणाए । गंडयमंडिय तं कणयसच्छहो असीइधणुमाणो ॥२॥ इगवीसवासलक्खे कुमरो दुगुणाई ताई कयरज्जो । छटेणं फग्गुण-तेरसीइ-कसिणाइ सहसंबे ॥३॥ नर-सहसजुओ नीहरिय परदिणे नंदपायसं पत्तो । वासेहि दोहि मासे अमावसाए वणे तत्थ ॥४॥ जायं नाणं गणहर छहत्तरी साहुसहस चुलसी य । अज्जा तिसहस्साहिय लक्खं तुह ईसरो भत्ती ॥५॥ तह माणसी तिविठ्ठ हरी य इगवीस-वास-लक्खाई । तुह वयमाउं चउगुण-मणंतरं सीयलजिणाओ ॥६!। छव्वीस सहस्साहिय छावट्ठी-वासलक्ख-सहिएण । सागरसएण ऊणाइ अयरकोडीओ गमियायो ॥७॥
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुसन्धान-४०
सम्मेए कसिणाए सावण तइयाए समणसहसजुओ । तंसि गओ लोयग्गं हत्थालंबं ममं देसु ।।८।।
सिरि वासुपुज्जणाह-थुत्तं सिरिवासुपुज्ज ! उज्जोइउं जयं जिट्ठ-सुद्ध-नवमीए । तं पाणयक प्पाओ चविउं चंपाइ संपत्तो ॥१॥ जाओ वसुपुज्ज-जयाण फरगुणे कसिण-चउद्दसीइ तुमं । महिसंक-रत्तवत्रो सत्तरिधणुमाण गयमाण ॥२॥ अट्ठारसयसहस्सा वासा कु मरोसि तं चउत्थेणं । फग्गुण-अमावसाए विहारगेहम्मि नीहरिओ ॥३।। छहिं निवसएहि सहिओ बीयदिणे पायसं सुनंदाओ । पत्तोसि वासमेगं छउमत्थो विहरिओ नाह ! ॥४॥ माहे सिय-बीयाए विहारगे हम्मि पत्तनाणेणं । छावट्ठी लोयहिया विहिया गणहारिणा तुमए ।५।। बावत्तरी सहस्सा मुणीण अज्जाउ लक्खमेगं तु । तुह भत्ता य कुमारो पयंड-देवी दुविद् हरी ॥६।। चउपन्न-वास-लक्खो वयम्मि बावत्तरी तुह(हा)उम्मि । चउपन्न सागरेहिं गएहिं सेयंस-नाहाओ ॥७।। छहिं साहसएहिं समं आसाढ-चउद्दसीइ सुद्धाए । चंपाइ तंसि संपत्तसिवसुहो सिवसुहं देसु ॥८॥
सिरि विमलणाह-थुत्तं विमलजिणिंद ! सुरिंदेहिं तंसि महिओ महीइ इंतो वि। वइसाह-सुद्ध-बारसि विमुक्कसहसार गुणसार ॥१॥ कंपिल्लपुरे जाओ नाह ! तुमं माह-सुद्ध-तइयाए । सामा-कयवम्म-सुओ सट्ठिधणुच्चो वराहजुओ ।।२।।
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
जुलाई- २००७
तवियम (त?) वणिज्जगोरो कुमार - वासम्मि वास - लक्खाई । पनरस रज्जम्मि य दुगुणियाई गमिऊण छद्वेणं ॥३॥ माह - सिय सहस्संबे माह - सिय- चउत्थि गहियसामन्नो । नर- सहसजुओ जय - पायसं च पत्तोसि बीर्यादिणे ||४|| वास- दुगंते फुरिया नाणसिरी पोस - सुद्ध-छट्टीए । तम्मि वणे गणहारी सत्तावन्ना तए विहिया ||५|| अडसट्ठी मुणि सहसा अज्जाउ लक्ख- मट्ठसयसहियं । तुह देव ! सेवगा पुण छम्मुह विइया सयंभु हरी || ६ || पन्नरस वासलक्खा तुब्भ वयं सट्ठिमेव सव्वाऊ । तीसाइ सागरेहिं गएहिं जिण वासुपुज्जाओ ||७|| आसाढ - कसिण- सत्तमि समत्तनीसेसकम्मनिम्महण | छह मुणिसहसेहि समं सम्मेए निव्वुय नमो ते ॥८॥
सिरि अनंतणाह - थुत्तं
जिणनाह ! अणंतमणंतराउ भवियाण मोहमवणेउं । कसिणाए सावण --सत्तमीइ तं पाणयाउ चुओ ||१|| जाओसि अउज्झाए सेणंको सीहसेण - सुजसाण । वइसाह - तेरसीए कसिणाइ सुवन्नवन्न तुमं ॥२॥ पन्नासधणुसरीरो वासाणऽद्धमा सय- सहस्सा 1 कुमरो निवो यदुगुणा मणुय - सहस्सेण सहसंबे || ३ || कयछट्टो कसिणाए वइसाह - चउद्दसीइ गहियवओ । विजयाओ परमन्नं अन्नंमि दिणंमि पत्तोसि ||४|| वासतिगंते संजम - तिहीइ पत्तं तहिं वणे नाणं तुह गणहर पन्नासा कमेण मुणि साहुणी सहसा ||५|| छावट्ठी छावट्ठी भत्ता पायाल - अंकुसाउ तहा । पुरिसुत्तमो हरी वयमद्धवमवासलक्खाई ॥६॥ वासाण तीस लक्खा सव्वाउं विमलजिणवरिंदाओ । सागरनवगम्मि गए सह सतहिं मुणिसहस्सेहिं ॥७॥
१३
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
१४
चित्त- सिय-पंचमीए कम्मणमोरालियं च सम्मेए । मुत्तूण तणुं तणुवज्जियपयं पत्त तुज्झ नमो ॥८॥
अनुसन्धान- ४०
सिरि धम्मणाह-थुत्तं
सिरिधम्मनाह! धम्मम्मि ठाविडं भवियजणमिणं विजया । वइसाह-- सुद्ध-सत्तमि कयगब्भवयार तं नमिमो ॥१॥ ते भाणु- सुव्वयाणं रयणपुरे माह सुद्ध-तइयाए । वज्जंक कंचणप्पह पणचत्तधणुच्च जाओसि ||२|| अड्डाइज्जा पंचम कुमरो य निवो य वास सय सहसा । माह - सिय-तेरसीए कयछट्टो वप्पगाइ तुमं ||३|| सहसेण निवाण विणिग्गउसि गहिऊण धम्मसीहाओ । परमन्नमन्नादियहे वासदुगं गमिय - छउमत्थो ||४|| पत्तीसि वप्पगाए वरनाणं पोस-पुन्निमाइ तुमं । तुह गणहरा तिचत्ता मुणिणो चउसट्ठिसहसा य ॥५॥ अज्जाउ चउसयाहिय बिसट्ठि सहसा य निट्ठियकसाया । भत्तिपरा तुह किन्नर - पत्रत्ती पुरिससीह हरी ||६|| अड्ढाइज्जा लक्खा वासाण वयं दसेव सव्वाऊ । अंतरमणंतजिणओ जणिउं सागरचउक्के ण ||७|| जिट्ठसिय- पंचमीए अद्भुत्तरमुणिसएण सम्मेए । होउमजोगी पत्तोसि जं पयं तं पयं देसु ॥८॥
सिरि संतिणाह थुत्तं
सिरिसंतिनाह ! सव्वोवसग्गनिग्गहकएण पुहईए । भद्दवय - कसिण - सत्तमि सव्वट्ठचुयं नमामि तुमं ॥ १ ॥ जाओसि गयउरे विस्ससेण अइराण चत्तधणुमाणो । हरिणंक कणयलद्धो जिट्ठासियतेरसीइ तुमं ॥२॥
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
जुलाई-२००७
पणुवीसवाससहसा कुमार-मंडलिय-चक्कवट्टिपए । पत्तेयं भविय तुमं नरिंद-सहसेण सहसंबे ॥३॥ कयछट्ठो जिट्ठ-चउद्दसीइ कसिण्ण(णा?)इ विरइमणुरत्तो। पत्तोसि सुमित्ताओ परमन्नमणंतरम्मि दिणे ॥४॥ वासंते तम्मि वणे लक्ष्णं सुद्ध-पोस-नवमीए । नाणवरं वरसीसा छत्तीसा गणहरा विहिया ।।५।। मुणिणो बिसट्ठिसहसा अज्जा इगसट्ठिसहस-छसया य। गरुडो निव्वाणी तुह भत्ता कोणालयो य निवो ॥६॥ वाससहस्साणि वयं पणुवीसं वासलक्खमाउं च । पाऊण पल्लरहिए गयम्मि धम्माउ अयरतिगे ॥७॥ नवसाहुसएहि समं जिट्ठासिय-तेरसीइ सम्मेए । मुत्तुं मुत्तिमसारं सारं पत्तोसि तुज्झ नमो ।।८।।
सिरि कुंथुणाह-थुत्तं सिरिकुंथुनाह ! थुणिमो परमत्थ-परोवयार-करणत्थं । सचट्ठाओ चवणं तुह सावण-कसिण-नवमीए ॥१॥ नागपुरे सूर-सिरीण कसिण-वइसाह-चउद्दसीइ तुमं । छगलंछण कणयप्पह पणतीसधणुच्च जाओसि ।।२।। कुमरो तह मंडलिओ चक्कीवि य भविय वास-सहसाई । पाओण-चउव्वीसं पत्तेयं नरसहस्सजुओ ॥३॥ छद्रेण कसिण-वइसाह-पंचमी चरिय चरिय सहसंबे । बीयदिणम्मि पवन्नो परमन्नं वग्घसीहाओ ॥४॥ सोलसवरिसेहिं तर्हि · उज्जाणे चित्त-सुद्ध-तइयाए । हय-घाइकम्म तुमए पणतीसं गणहरा विहिया ॥५॥ साहू सट्ठि-सहस्सा अज्जाओ सट्ठि-सहस छसया य । तुह नाह विहियसेवा गंधव्व-बला कुबेरनिवो ॥६॥ पाऊण चउवीसं पणनवई चेव वास-सहसाई । तुह वयमाउं च गए सिरिसंतिजिणाउ पलियद्धे ||७||
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
१६
अनुसन्धान-४० वइसाह-पडिवयाए सिणाए दसहिं मुणिसएहिं समं । सम्मेयम्मि विमुक्कोसि सेसकम्मेहिं देहि सुहं ॥८॥
सिरि अरणाह-थुत्तं सिरिअरनाह ! नमो ते भवियाणमणुग्गहिक्कबुद्धीए । फग्गुण-सिय-बीयाए सव्वट्ठाओ चुओ तंसि ।।१।। नागपुरंमि सुदंसण-देवीणं मग्ग-सुद्ध- दसमीए । तीसधणूसिय जाओसि नंदवत्तंक कणयपहो ॥२॥ इगवीस-वास-सहसा पत्तेयं कुमर-मंडलिय-चक्की । मग्गसिर-सेय-इक्कारसीइ छद्वेण सहसंबे ॥३।। नर-सहसेण गिहाओ नीहरिओ परदिणंम्मि परमन्नं । अवराइयाउ पत्तो अह तिहिं वरिसेहिं तम्मि वणे ॥४॥ नाणं कत्तिय-सिय-बारसीइ आसाइउं तए विहिया । गणहारी तेत्तीसा साहू पन्नाससहसा य ॥५।। अज्जाण सट्ठि-सहसा भत्ता जक्खिद-धारिणि-सुभूमा । इगवीसवाससहसा तुह वयमाउं तु चुलसीई ॥६॥ पलिओवमचउभागे रहिए वासाण कोडिसहसेणं । कुंथुजिणाउ गयम्मी सम्मेए मुणि-सहस्सेण ॥७॥ जम्म-तिहीए कम्मक्खएण संसारउवि नीहरिउ । अपुणागमं पयंगम पसीय दंसेसु अप्पाणं ॥८॥
सिरि मल्लिणाह-थुत्तं सिरिमल्लिनाह ! मिहिलं मोहवसं बोहिउं जयंताओ । फग्गुण-सुद्ध-चउत्थीइ इत्थिरूवोऽवइन्नोसि ॥१॥ मागसिर-सुद्ध-इक्कारसीइ कुंभ-प्पभावईण तुमं । कलसंक नीलवनो पणुवीसधणूसिओ जाओ ॥२॥ कुमरोसि वच्छरसयं कुमार अट्ठमेण सहसंबे । जम्मतिहीए तिहिं तिहिं नरसएहिं नीहरिओ ॥३॥
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
जुलाई-२००७
१७
तम्मि दिणे अवरण्हे नाणं पत्तोसि तम्मि चेव वणे । जायं पायसमसणं बीयदिणे विस्ससेणाओ ॥४॥ गणहर अट्ठावीसा कमसो तुह साहुणी सहसा । चालीसा पणपन्ना भत्ता य कुबेर-वइरोट्टा ॥५॥ तह अजिओ नरनाहो तुहाउ पणपन्नवाससहसाई । सयहीणाई तु वयं गम्मि अरजिणवरिंदाओ ॥६॥ वासाण कोडिसहसो सम्मेए पंचपंचहि सहे(ए)हिं । साहूण साहुणीणं फग्गुण-सिय-बारसीइ तुमं ॥७॥ उत्तरिय दुत्तराओ अणाइभवपंकओ दुरवयारे । निम्मग्गोऽणंतपए अणंतविरिओसि तुज्झ नमो ||८||
सिरि मुणिसुव्वयणाह-थुत्तं सिरिमुणिसुव्वय ! अवराइयाउ अवराइयं पयं पत्तं । पुन्नावण सावणपुन्निमाइ उइन्न तुज्झ नमो |॥१॥ रायगिहे सामंगो सुमित्त-पउमावईण जाओसि । जिट्ठबहुलट्ठमीए कुम्मको वीसधणुमाणो ॥२॥ अट्ठमाई कुमरो वास-सहस्साइं पनरस-नरिंदो । होउं नरसहसजुओ नीलगुहाए विहियछट्ठो ॥३॥ सुद्धाए फग्गुण-बारसीइ नीहरिय परदिणे पत्तो । तं बंभदत्तपायसमह पक्खूणे गए वरिसे ॥४॥ तम्मि वणे फग्गुण-बारसीइ बहुलाइ लद्ध-नाणस्स । अट्ठारस गणहारी तुहसि मुणि तीस-सहसा य ||५|| पन्नास सहस्सा साहुणीण भत्ता य वरुण-नरदत्ता । विजयनिवोवि य तुह वयमद्धट्ठमवाससहसाई ॥६॥ तीसं साउं चउपन्न-वास-लक्खेहि मल्लिनाहाओ । जिट्ट-सिय नवमीए सम्मेए समण-सहसेणं ॥७॥ भववाडियाइ चउगइचउरं काउं तुमं सभत्तीए । पत्तो सिद्धि मह पहु ! पहुत्तसरिसं फलं देसु ।।८।।
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुसन्धान-४०
सिरि नमिणाह-थुत्तं नमिनाह ! नमामि तुमं कयत्थमप्पाणयं विहेउमणो । तं पाणयाओ मिहिलं आसोए पुनिमाइ गओ ॥१॥ जाओसि विजय-वप्पाण सावण-कसिण-अट्ठमीइ तुमं । पन्नरसधणूसिय उप्पलंक तवणिज्जरमणिज्ज ॥२॥ अड्डाइज्जा कुमरो वास-सहसा य पंचनरनाहो । होउं सहसंबवणे नर-सहसेणं विहियछट्ठो ॥३॥ आसाढकसिण-नवमीइ निग्गओ परदिणम्मि पत्तोसि । परमन्नं दिनाओ अह नवमासेहिं तम्मि वणे ॥४॥ मग्गसिरसि इक्कारसि हयनाणावरण गणहरा जाया । सत्तदस साहु-साहुणिसहसा वीसेगचत्ता य ॥५॥ भिउडी गंधारी वि य भत्ता हरिसेण चक्कवट्टी य । तुह वयमड्ढाइज्जा वाससहस्सा दसाउं च ॥६॥ छसु वच्छरलक्खेसु गएसु मुणिसुव्वयाउ सम्मेए । ' वइसाह-कसिण-दसमीइ सह सहस्सेण साहूणं ॥७॥ सम्मत्ताइगुणे हि लद्धं तित्थयरनाममइदुलहं । मुत्तूण तंपि पत्तोसि मुक्खसोक्खं नमो तुज्झ ॥८॥
सिरि णेमिणाह-थुत्तं सिरिनेमिणाह ! मोहेण भुवणमवराइयं तुमं काउं । बहुलाए कत्तिय-बारसीइ अवराइयाउ भुओ ॥१॥ जाओसि सिवादेवी-समुद्दविजयाण सोरियपुरम्मि । सामंग दसधणूसिय सावण-सिय-पंचमीइ तुमं ॥२॥ संखंक कुमारोच्चिय कुमरत्ते गमिय तिन्नि वाससए । सावण-सिय-छट्ठीए छटेणुज्जितगिरिसिहरे ॥३।।
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
जुलाई-२००७
नरवइ-सहसेण समं नीसामन्नं गहेवि सामन्नं । वरदिनाउ पवनो तुमंसि परमन्नमत्रादिणे ।।४।। चउपन्नदिणाणते आसोय-अमावसाइ उज्जिते । निम्महियमोह विहिया एक्कारस गणहरा तुमए ॥५॥ अट्ठारस तह चत्ता सहसा साहूण साहुणीणं च । भत्ता तुह गोमेहो अंबा कण्हो हरी तह य ॥६॥ सत्त सया वासाणं वयमाउं दस सयाउ नमिजिणओ। पणवच्छरलक्खंते आसाढ-सियट्ठमीइ तुमं ॥७॥ पंचहि साहु-सएहि सह छत्तीसाहिएहिं उज्जंते । पत्तोसि पंचमगई मह पहुं तं चिय गई एक्का ||८||
सिरि पासणाह-थुत्तं सिरिपासनाह ! पसरियमहंतमोहं मणुग्गहिउं(?) । तं पाणयाउ चविओ चित्त-चउत्थीइ कसिणाए ॥१॥ वाणारसीइ तं अस्ससेण-वम्माण पोसदसमीए । कसिणाइ नीलवन्नो फणिरायविराइओ जाओ ॥२।। नवहत्थपमाण तुमं तीसं वासाइं वसिय कुमरत्ते । अट्ठमतवेण आसमपयम्मि तिहिं नर-सएहिं समं ॥३॥ कसिणाइ पोस-इक्कारसीइ सामन्नमुत्तमं पत्तो । बीयदिणे तुह दिन्नं परमन्नं नाह । धन्नेण ॥४॥ चुलसी-दिणेहिं चित्ते कसिण-चउत्थीइ आसमपयम्मि । उल्लसिय-केवलेणं तुमए दस गणहरा विहिया ॥५॥ सोलस तह अडतीसा सहसा मुणि-साहुणीण तुह भत्ता । पास-पउमावईउ पसेणई चेव नरनाहो ॥६॥ सत्तरि-वासाई वयं वाससयं आउ नेमिनाहाओ । अद्धटुमसय-समहिय-तेसीइं वाससहसेहि ।।७।। मुणितेत्तीसाय समं सावण-सिय-अट्ठमीइ सम्मेए । सिद्धोसि हरसु मोहं मह जह पेच्छामि सामि ! तुमं ॥८॥
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुसन्धान-४०
सिर वड्डमाण-थुत्तं सिरिवद्धमाणजिण ! पाणयाउ आसाढ-सुद्ध-छट्ठीए । भुवणमिणं बोहेउं कुण्डग्गामं तुमं पत्तो ।।१।। तिसला-सिद्धत्थाणं चित्ते सिय-तेरसीइ सीहंको । तं सत्तहत्थकाओ जाओ चामीयरच्छाओ ।।२।। कुमरोसि वास-तीसं कय-छट्ठो मग्ग-कसिण-दसमीए। नीहरिय नायसंडे एगो परमन्नामन्नादिणे ।।३।। पत्तो बहुलाउ गए पक्खाहियसव-वासबारसगे । उजुवालियाइ तीरे नईइ वइसाहदसमीए ॥४॥ सुद्धाइ लद्धकेवल एक्कारस गणहरा तए विहिया । चउद्दस तह छत्तीसा सहसा मुणि-अज्जियाणं च ॥५॥ मायंगजक्ख सिद्धाइयाओ सेणियनिवो य तुह भत्ता । वासा बायालीसं दिक्खा बावत्तरी आउं ॥६॥ अड्डाइज्जसएहिं गएहि वासाण पासनाहाओ । अवसप्पिणीइ गुणनवइपक्खसेसे चउत्थरए ॥७।। निव्वाणो कत्तियमावसाइ एगोसि तं अपावाए । पयडसि जयदीव जयं जह तह कुरु देवभद्दाइं ॥८॥
C/o. प्राकृत भारती
जयपुर
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
परिशिष्ट
पार्विशति जिन 32 स्थान-कोष्ठक (यन्त्रम)
Moran नाम
viu ARA
सगरमा
MER
सुवर्णम
4. पू
र
सा पूर्व
मदत
वयान
1000
शिपाय
जग
मैन्या
"
MPE
Man
Kला पूर्व
।
१ महिना
ng
पवमान
ween
PEO
Praven
राताप
मानात
Sparpati
FINNI
पूजाग An |
-.लात पूर्व " |
ma
भरा
HEM.44
परमान्न
प..
अस्मिार -
मा
.
imalanic
Regut
T PART
-
सान
माग गुल
10-04
..-
साल
- पूर्णन..!
म मर पिपमनन
भा"7...
LDAADIR
that..--.
१०
-
_
.
.
.
-
.-
पाती
-
मामा.. पुतीन
भवन...- 4..
परमान्न ।
...Tu
सोमदेव
विचाजमरगी ।
मा-2014
Lama
रामना
dika-aron
गा.
URANA
go पता
पुनर्जवन
।
रत्तिक ।
नाच पूर्व
2000012
पामा
सभा
1000
कानमा . -
1
२. भूमीगत" ... . ......- ४ पुसाय
.
Portमाय
मान
PRIL
मात्र पूर्व
पौ.men
LEAprilater. Perionalico-only
قليلهوامله
का
.
.
album
Maf.
uply
Fb.00
ANNA
पापस
पुप
tron
परिताप
... ...
:..गुलज
. ...
!...
माम
+
पाव
पुनर्व
4,000
ख
-पर भगा -
+--.
.___w.mपूर्ण
An" 01.12.
POWDron ani
जवनचर्ज
पूर्व
L
ma
T
Hai
1
.
तार
-
...समर्म
भाव
STEINS
- ..
-
..मा . 0 , .अया...! शित
रापमा
ना !
.... " मामा-:.- 1
مومنو
nu
सहसानन
पिक
निमय नयाशिल भोलि
-ना"करि - Tan 4 .. . नापुर.--.-.-!
हजाचव.
परमात्र
2000
1-24
Yपन्न
.मालिक आपराजित
-
idiari
...वषय
सकराप्रपन
22-.-- --
पर
runner
मायनल
मारधर्म -४.२VM .. .
_ _er ५ -- मार ____ हजार
--- -
. : :
| !. सणारच- सना...! तर
- 10 .1 0
+------ . 2
-
+ ... Rm
मस
Pari munism
भी -- वर्ग-+11
1 प
.t माती. साn - पती_. मालमत्र. काय
garamin ur.1 पीपल मागन |
HDRLIAN
|- namah .
-24F ed.
पापस
Jubi | wisi
Main
Ina
+LINE
Pone
अविनाम
अपराजिन
IFE
प्रण्मपत
परम
TH
-
-
धर्म
भटमोरपानी
J
सम्पर
ease AL-
यान.....
ला
horo| असमपर Lador- ! माता
....भूपचन.1
.
...L.. Nis
-
- पाचन
_
_ एका LIJ
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________ न. Tसा मामनदेव - .. 4. गोव+ ממומן 902 - - 1.4 . AAPL.. 1 "न:शु० 41 .. 1 महा या 14000 विमुरा ..Suvw Tच-गायक . 420,000 कसम 130.000 मातंग "संजय अजित 1,008 माता 1,04,000 अगर ---+- शबर me.' a ""भादवा Praane युद्धगय 000 - " Eor Privatestersonal odeigily AN otod Arun 7-मानताता गरिपात मममाम अगोमा-सहक h- ni अयोध्या-रात 'पी००४ अन्योन्या-गहम hi Timi वाराणसी-रावगन पती-गधाम फार 0 " कादी गन्ना कार्तिक शुरू Dorfer-Reit कमि-सास नगरों-मल्साय कॉपलर सान पी०६ अगोरया या ' 4tav नयुश. नाम - प हस्तिनापुर-सरसाम जय शुरू सालापुर. सहसा सस्तनापुर -रामान कार्तिक P-SAयला-संसा पानशीब राजंगली-पायाकान्न.२ बियिया-राक्षमाय ताज़ार 0 उजगारागिरि--सार - आनिधन - 2 // कामाणम-समाज गुणनिका मदी "bridio सुपार T मलिनदेशT प्रमः भनT लाखापर्योग - मकT आयुष्य T गोन-चारिकामा नम्'T'-'-- -गाव - जन-माम तीब "सिक " "भपत मात्र पूर्व भावपूर्ण' 17000 15सापा के साथ पूर्व माग n"1 अलाद गिरि वर्थगीना होम मनिला रापर गफ मालपूर्व कलाम पूर्व लारूसागरोषप सत्र गुग मम्मतवितर दुरितार मित्रसम - लाल पूर्व नाब पूर्व कलाम कोरि सासंगम बन्ला ''मित्रकीट सापूर 10 लाख पूर्व 20 लावाटि गार्गपोषण मम्मतशिखर महाकाली पार्वती कमाल साफ दि सागरापम सातशिसार अन्य अजितर्सन साप पूर्व 10 लाख C0,000 बार सारोपण भान कृ. " सम्मतशिखर शा-सा दानवीर्य लाख 2. साख पून Eniकोशिशेपत्र फा०%०७ भग लाल पूर्व -लापूर 200 कोटिगरापर्व भादवा 0 . गुलारका 1०हजार पूर्व मा कोरि भयमसनम ममतशिखर अंगोका सोमयर 254 पूट स्ववियूछ शान शिखर गान कि सारव गर्म नाब धावण राम्गेतशिवार प्रमका भृष्ठ लाख वर्ष " भारत वर्ष 24 सांगरोपग . आगाioM चम्याएकी जादशा स्वतार ६०बान पर आचार "राजलकनर शा पुरुषोत्तम"1 000 वर्ष २०माकन -" भारतवम चय / स hear प्रति पुसहित 6-annis लब xनागरों ज्यपाल - शिखर कोणाजक आर वर्म नाशपम ज्येन - RT समेतशिवार 257 नारा मारव सम्मेत निखार चारिणी -4 हजारच 200 हजार रिम मन्योम मार्ग ' समेतशिरकर काशि " | 00 हजार " जार सर्व नारकोदि फागुन - सम्पेतशिखर भरवंता 75 30 हजार व कलारव पच ज्य ऋ० सम्माशिखर नामा मजार वर्ष 2000 --"गाय सम्मेतशिवर। अम्बिका कृष्ण जार - नाखन मानविन" उसनमा निरि पन्नावलअसे-जिन riKजार का -- मापण "मशिसार भिदापिका "अनिक -- सन-- 1एकाका मान / कार्तिक यदि 20 / पामाधुरी 10 सागरोफग ... 72. 4-900 . ..aaa 10.00 मगन LL.Goa पाine 40 Tकिन्नर मरम्प द... गचपापाज विन PAN.. ARESH 82.maa 87mon - Tm -- -- ana - VO.C000 . KI tage 10,000 Moon र "T वराण 1 मृति 2. 10 | " ---- Land9_ . Rockta 40,000 "36000 पाव