Book Title: Chaturvinshati Jin Stotrani
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 20
________________ अनुसन्धान-४० सिर वड्डमाण-थुत्तं सिरिवद्धमाणजिण ! पाणयाउ आसाढ-सुद्ध-छट्ठीए । भुवणमिणं बोहेउं कुण्डग्गामं तुमं पत्तो ।।१।। तिसला-सिद्धत्थाणं चित्ते सिय-तेरसीइ सीहंको । तं सत्तहत्थकाओ जाओ चामीयरच्छाओ ।।२।। कुमरोसि वास-तीसं कय-छट्ठो मग्ग-कसिण-दसमीए। नीहरिय नायसंडे एगो परमन्नामन्नादिणे ।।३।। पत्तो बहुलाउ गए पक्खाहियसव-वासबारसगे । उजुवालियाइ तीरे नईइ वइसाहदसमीए ॥४॥ सुद्धाइ लद्धकेवल एक्कारस गणहरा तए विहिया । चउद्दस तह छत्तीसा सहसा मुणि-अज्जियाणं च ॥५॥ मायंगजक्ख सिद्धाइयाओ सेणियनिवो य तुह भत्ता । वासा बायालीसं दिक्खा बावत्तरी आउं ॥६॥ अड्डाइज्जसएहिं गएहि वासाण पासनाहाओ । अवसप्पिणीइ गुणनवइपक्खसेसे चउत्थरए ॥७।। निव्वाणो कत्तियमावसाइ एगोसि तं अपावाए । पयडसि जयदीव जयं जह तह कुरु देवभद्दाइं ॥८॥ C/o. प्राकृत भारती जयपुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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