Book Title: Chaturvinshati Jin Stotrani
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan
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१४
चित्त- सिय-पंचमीए कम्मणमोरालियं च सम्मेए । मुत्तूण तणुं तणुवज्जियपयं पत्त तुज्झ नमो ॥८॥
अनुसन्धान- ४०
सिरि धम्मणाह-थुत्तं
सिरिधम्मनाह! धम्मम्मि ठाविडं भवियजणमिणं विजया । वइसाह-- सुद्ध-सत्तमि कयगब्भवयार तं नमिमो ॥१॥ ते भाणु- सुव्वयाणं रयणपुरे माह सुद्ध-तइयाए । वज्जंक कंचणप्पह पणचत्तधणुच्च जाओसि ||२|| अड्डाइज्जा पंचम कुमरो य निवो य वास सय सहसा । माह - सिय-तेरसीए कयछट्टो वप्पगाइ तुमं ||३|| सहसेण निवाण विणिग्गउसि गहिऊण धम्मसीहाओ । परमन्नमन्नादियहे वासदुगं गमिय - छउमत्थो ||४|| पत्तीसि वप्पगाए वरनाणं पोस-पुन्निमाइ तुमं । तुह गणहरा तिचत्ता मुणिणो चउसट्ठिसहसा य ॥५॥ अज्जाउ चउसयाहिय बिसट्ठि सहसा य निट्ठियकसाया । भत्तिपरा तुह किन्नर - पत्रत्ती पुरिससीह हरी ||६|| अड्ढाइज्जा लक्खा वासाण वयं दसेव सव्वाऊ । अंतरमणंतजिणओ जणिउं सागरचउक्के ण ||७|| जिट्ठसिय- पंचमीए अद्भुत्तरमुणिसएण सम्मेए । होउमजोगी पत्तोसि जं पयं तं पयं देसु ॥८॥
सिरि संतिणाह थुत्तं
सिरिसंतिनाह ! सव्वोवसग्गनिग्गहकएण पुहईए । भद्दवय - कसिण - सत्तमि सव्वट्ठचुयं नमामि तुमं ॥ १ ॥ जाओसि गयउरे विस्ससेण अइराण चत्तधणुमाणो । हरिणंक कणयलद्धो जिट्ठासियतेरसीइ तुमं ॥२॥
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