Book Title: Chaiyavandanmahabhasam
Author(s): Shantisuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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मान्यार्थः
चेहयवंदणमहामास । खयमेवाऽऽगम्य सुराधिपेन संपूजिता ततो जननी । वर्धिता (वर्धापिता) च भुवनैकभानुतनयस्य लाभेन।।५५४॥ तहियह चिय सहसा, समत्थसत्येहि धमपुबेहिं । सबत्तो इंतेहि, सुहं सुमिक्खं तहिं जायं ॥ ५५५ ॥ तदिवसादेव सहसा समर्थसाथैर्यान्यपूर्णैः । सर्वत आग्रदिः सुखं सुमिक्षं तत्र जातम् ।। ५५५ ।।
संभवियाई जम्हा, समत्तसस्साई संभवे तस्स । · तो संभवो त्ति नाम, पइडियं जणणि जणएहिं ॥५५६॥ संभूतानि यस्मात् समस्तसस्यानि संभवे तस्य । ततः संभव इति नाम प्रतिष्ठितं जननी-जनकाभ्याम् ॥५५६।।
अभिणंदा आणंदइ, स्वाइगुणेहि तिहुयणं सयलं। अमिनंदनसाअमिणंदणो जिणो तो, अन्नं पि हु कारणं वीय।।५५७॥ " अभिनन्दति आनन्दति रूपादिगुणैस्त्रिभुवनं सकलम् । अभिनन्दनो जिनस्ततोऽन्यदपि खलु कारणं द्वितीयम् ॥ गम्भगए तम्मि जओ, जणणीमचंतभत्तिसंजुत्तो। अभिनन्दनविअमिनंदइ अमिक्खं, सक्को अभिणंदणो तेण ॥५५८॥ शपाथ गर्भगते तस्मिन् यतो जननीमत्यन्तभक्तिसंयुक्तः । अभिनन्दत्यभीक्ष्णं शक्रोऽभिनन्दनस्तेन ॥ ५५८ ॥ पावायारनिमित्ता, मोक्खामिमुहा सुहा मई जस्म । सुमतिसामा. सो सुमई तित्थयरो, जइ एवं सुमइणो सवे ॥५५९॥ पापाचारनिमित्ता मोक्षाभिमुखा शुभा मतिर्यस्य ।
स सुमतिस्तीर्थकरो यद्येवं सुमतयः सर्वे ॥ ५५९ ॥ एत्थ विसेसकारणं
अचिरागयवणिमरणे, दोण्ह सवत्तीण दारओ एगो । सुमतिविशेबालगहम्गह दोण्ह वि, ववहारो मेहनिवपुरओ॥५६०॥ पार्थः
न्यार्थः ।
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