Book Title: Chaiyavandanmahabhasam
Author(s): Shantisuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 181
________________ थायारम्भः चिदणा तिमेगा चिश्वदणासरूवं... चित्तसमाही भीई... चिंता न अनक 800 चितर बप्पाएगी चितेगब्यो सम्मं .. वीवंदनकयकिचो चीवंदना उ दुबिहा चेहयगय साहुगयं... as परिवाढीए चेहरेण केई छज्जीवकायसंजमो छट्ठीसत्तमियाणं छविहनिमित्तमुत्तं निवि जर आज़म्मदरिद्दा जइ आसायणभीरू ... ... ... जइ एगो देइ थुई जर एत्तियमेत्तं चि जर एवं किं भणिया अइ कम्मधसा केई जइ गुरुपरंपराए ... 000 ... ... 000 ... ... 600 ... www ... ... 01. ... ... 800 ... ... जर ताव जारचोरा जइ ता सप्तरीराण बि जद्द पडिबिंबनिमित्ता जह बा वसो त्ति धम्मो ... जव इह वासुपु अइ वि बहुवा न तीरइ. जइ विहु सव्वे एवंजं वायगेण भणियं जं वा सहोपयो जं ठाणं तु इहं... जं सम्मवंदणाए .. ००० ... ... ... ... 000 ... 000 006 चैत्यवन्दनमहाभाष्य 000 ... ... 000 ... ... ... 000 ... ૪૬ १५६ | जं पुण बंदर किरिया २६ पु सुते मणि ७४ | जं भणसि सुतवृत्तं १२३ | जम्मुहमहद्दहाओ... ७५ | अम्हा जम्मप्पभिई ५६ जम्हाऽवयारसमए २१ जय वीयराय जगगुरु १२ जलम घोळतं... ९० जह एगचेश्य है १४८ |जह एगं जिणबिंबं ६जह कणरक्खण हे २५जह गंधहत्यिगंध २३ जह गारुडिओ गरुडं २२ | जह जाइपचयाओ १४ बह पडदेसम्म पढो १७ जह मिम्मयपडिमाए ९८जह वा कुसलो विज्जो १०३ | वह विसविधायणत्थं ... १४२ | जह सारही सुकुसलो १०९ |जह सावगस्स पुत्तो १० जाइ त्ति मासनवगं १४८ जाए दुन्भिक्खभरे १५ | जाया पुरम्म संती ४७ बारिसतारिसवेसो ... ... ... .... ... ... ... 000 ... पृष्ठम् गावारम्भः २० वं संसारनिमित्तं ... ३३ ... ७५ ४५ अक्खाए वा सुव्वइ कुणओपी रसो पुण अग्भासरसा 000 600 अत्थ ति जम्मि सुयध १०९ जं नमिया सयलनिवा ૪૧ जं जं १५१ पुण असरीराणं... १४८ | जं पुण मणंति केई पुण लोगविरुद्ध ... ... 000 ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... 000 000 ... 0.0 0.0 ... 900 ... 800 0.0 १४१ १५८ १२५ ... ११० १५९ १४ १५ १३ * ७५ २३ १ 000 9.0 ... ... .... 800 ... 800 ... ⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀ ... ... K पूछम् १५३ ... *********** १११ १०६ १५१ १३ ११५ ५ २५ ५६ ja १३६ SE ܙ १७ १४२ ૬ ܘ& . १२० 1 ... १०७

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