Book Title: Chaiyavandanmahabhasam
Author(s): Shantisuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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ईवदनमहामास । पागारसंठिएण, परिखि माणुसनगे । एवं मनुस्सखे, वाहि तिरिया व देवा ॥९५८॥ प्राकारसंस्थितेन परिक्षिप्तं मानुषनगेन । एवद् मनुष्यक्षेत्रं बहिस्तियश्च देवाच ।। ६५८ ॥ पुक्खरवरदीवड़े, धायइसंडे दुइयदीवम्मि । जंबुद्दीवम्मि म आइमम्मि सबेसि दीवाणं ॥ ६५९ ॥ पुष्करवरद्वीपार्षे घातकीखण्डे द्वितीयद्वीपे । जम्बूद्वीपे चादिमे सर्वेषां द्वीपानाम् ॥ ६५९ ॥ पच्छाणुपुखियाए, निद्देसो एस खितगुरुयता। मरहे-वय-विदेहे, एस समाहारदंदो उ ॥६६०॥ पमानुपूर्वीतया निर्देश एष क्षेत्रगुरुकत्वान् । मरते-रावत-विदेहे एष समाहारद्वन्द्वस्तु ॥ ६६०॥ । एकेकं पञ्चगुणं, जम्हा भरहाइयाण एयाण । पनरंससु कम्मभूमिसु, भावत्यो होइ एयस्स ॥६६१॥ एकैकं पचगुणं यस्माद् भरतादिकानामेतेषाम् । पञ्चदशसु कर्मभूमिषु भावार्थो भवति एतस्य ॥६६१।। धम्मो इह सुपधम्मो, आइगरा होति तस्स तित्ययरा। ते उ नमसामि अहं, वंदामि विसुद्धचिचेणं ॥६६२॥ धर्म ह भुतधर्म आदिकरा भवन्ति तस्स तीर्थकराः । वांस्तु नमस्याम्यहं वन्दे विशुद्धचित्तेन ॥ ६६२ ॥ घम्माइगरे एवं, थोऊण सुयस्स संथवं कुणइ । तमतिमिरपडलविद्धसबस्स एगाऍ गाहाए ॥६६३॥ धर्मादिकरानेवं स्तुत्वा भुतस संखवं करोति । वमखिमिरपटलविद्धंसनस एकया गायया ॥ ६६३ ॥ १. सावइ गावा
समतिमिरपडलविखंसणस्स सुरगण नरिंदमहिअस्स। सीमापरस्स वंदे पम्फोहिममोहजालस्स।२॥
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