Book Title: Chaiyavandanmahabhasam
Author(s): Shantisuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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न्यार्थः
बेहबदबहामास ।
१०७ धम्मफलस्वरूवाइगुनगयो पम्मदेसजो सो सो। धर्ममामापक्खो धम्मो इच, मबइ धम्मो जियो तेण ॥५९२॥ धर्मफलभूतरूपादिगुणगयो धर्मदेशकः समः।
प्रत्यक्षो धर्म इव भव्यते धर्मों जिनतेन ॥ ५९२ ॥ अहवा
अहिओ धम्मुच्छाहो, जाओ जमणीए तम्मि उअरन्थे। धर्मविशेषार्थः तुटेण तेष पिउणा, जिणस्स धम्मो कवं नाम ॥५९३॥ अथवा
अधिको धर्मोत्साहो जातो जनन्या: तस्मिनुदरस्थे । तुष्टेन तेन पित्रा जिनस धर्मः कृतं नाम ॥ ५९३ ।। संती पसमो ममइ, अबइरित्तो य तीए तो सन्ती । शनिमामारागद्दोसविउत्तो, मावत्यो होइ एयस्म ॥ ५९४ ॥ शान्तिः प्रशमो मण्यतेऽव्यतिरिक्तश्च तया ततः शान्तिः। रागद्वेषवियुक्तो भावार्थो भवत्येतस्य ।। ५९४ ॥ अब पि एत्य कारणमिमस्स नामस्म गयउरे नयरे । मारिन असे बायं महंतमसिवं, खुद्दसुरकोवदोसेण ।। ५९५ ॥ अन्यदप्यत्र कारणमस्स नाम्नो गजपुरे नगरे । जातं महदशिवं क्षुद्रसुरकोपदोषेण ॥ ५९५ ॥ अइरादेवीउयरे, अवयरिए सोलसम्मि तित्थयरे । असिर्व जाचि पणहूँ, तिमिरं व समुग्गए सूरे ॥५९६॥ अचिरादेव्युदरेऽवतीर्णे षोडशे तीर्यकरे । अशिवं झटिति प्रणष्टं तिमिरमिव समुद्गते सूर्ये ।।५९६॥ जाया पुरम्मि संती, तत्तो तुट्टेण वीससेणेणं । संति ति कयं नामं, तिलोपचूडामणिजिणस्स ॥५९७।। जावा पुरे शान्तिः ततस्तुष्टेन विश्वसेनेन । शान्तिरिति का नाम त्रिलोकचूडामणिजिनस ॥५९॥
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