Book Title: Brammha Virachit Updeshkushalkulak Author(s): Diptipragnashreeji Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 4
________________ 82 मूंग कांगडू कणमाहि जेहवउ । पाणी अगनि न छीपड़ अंस । जल केलव्या न थाइ तंदुल | बग सीखव्यउ न होवइ हंस |६| तिम गुरु । मृगमद अगर कपुरइं वास्यु लसण न पांमइ रूडउ ग (गंध । सूरि जस सिहर दीवा योति । किमही नवि देखइ जाचंध |७| तिम गुरु. 1 ऊग्यु चंद चोरनंइ गमइ । मेहिइं जवासउ सूकी जाइ । खीर खंड घृत मीठउं भोजन । पेटि कूतिरा नइ न संमाइ ॥ ८| तिम गुरु । मीठी द्राख न वायस चाखइ । श्वांनन पूंछडी सभी न थाइ । आंबानूं वन करहउ न चरइ । अन्याइनई न गमइ न्याय |९| तिम गुरु व. । खाइ नर सनेपातियउ साकरा । पापीनइ धरमी न सुहाइ । रुचइ नही पापउ मधुकरनई घुण नितु सुकउ लाकड खाइ | १० |तिम गुरु । गाम समीप नदी सूंकी निइ रासभ राखइ घरडलू अंग कुलवंती कामनी तजीनई नीच करइ पर रमणी संग | ११ | तिम गुरु व. । Jain Education International For Private & Personal Use Only अनुसंधान - २४ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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