Book Title: Brammha Virachit Updeshkushalkulak
Author(s): Diptipragnashreeji
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 3
________________ June-2003 जोवा मळती नथी. गुजराती साहित्य कोश ( मध्यकाल ) पृ. २७०मां पण तेमना विषेना अधिकरणमां आ रचनानी नोंध नथी. अलबत्त, तेमां आ प्रमाणे नोंध छे : "उपरांत तेमनां केटलांक स्तवनो, सज्झायो, कुलको अने प्रासंगिक काव्यो पण मळे छे. " उपदेस कुशल कुलक वरसइ पुक्खरावरं तसु मेहा । तव पृथिवी भेदाइ नीरि । पुण इक मगसेल्यउ न भेदाई अति नान्हउ अनइ कठिन सरीरि ॥१॥ तिम गुरु वचनई किमइ न भेदइ । जे हुइ प्राणी भारीकर्म । घूंक शोक जउ अति घण कीजइ । तउ नवि बूझइ साचउ मर्म |२| आकणी ॥ बावन चंदन गंध तजीनई कसमल ऊपरि माखी जाइ परिमल कमल तणु छंडीनई । डेडकडूं नित कादव खाइ | ३| तिम गुरु व. । कालई कांबलि गलीयलि कापडि चोलतणु नवि बइसइ रंग । वायसवान न थाइ धुलउ । जउ नितु डोहइ यमुना गंग | ३ ( ४ ) | तिम नि । चीगटइ कुंभई जल नवि भेदइ । न रहइ काणइ भाजनि नीर । रवि देखी घूअड हुइ अंधउ । पान न लइ वसंति करीर 1५। तिम गु.वि. । Jain Education International 81 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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