Book Title: Brammha Virachit Updeshkushalkulak
Author(s): Diptipragnashreeji
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 8
________________ 86 अनुसंधान-२४ इति उपदेश कुशल कुलं (कुलकं) समाप्तं । श्रीरस्तु कल्याणमस्तु लेखकपाठकयोः ॥ काल दकालि जे नर सती, भरयौवन वय जे नर यती अल्प आहारमा जे द्यइ ग्रास, कहि कृष्णजी तेह घरि मोरु वास ॥१॥ उपदेशकुशलकुलकर्नु परिशिष्ट एक ऐतिहासिक प्रसंगनी नोंध संवत १६८२ वर्षे फागुण वदि ६ बुधे । जंबूदीपे भरतखंडे । गुजरदेशे । फागुण वदि ६ नशा घडी ५ तथा ६ निः माझनि भूमिकंप हूउ धरती हाली तेहनु कालमान घटिका १ प्रमा आश्रिइ अहमदावादि श्री नगरि विचि बीबीपुर मध्ये । बठां । उत्तरदिशि सन्मुख उष्णि धातरीवाडानी पोलि माहिं बिठा तिका शीलनु रास ते भणतां उआश्रजिनु श्रावक महावजी साहा सांभलता हता "पणि वनि चीत्तनी चोरणहार । काम कटक माहि नायका नारि ।" ए कडवु भणीइ छइ एत पूठि घरनी छापरु हालुं मन माहि भ्राति उपनी जेए कुण हलावइ छइ । पूठिवाली जोउं को दीठू नही पछि बिठा हूता जे उष्णइ ते हालु एहवु जे जाणू विहिसीनि पडसि मनसूं विगर थया एतलि तु घरनी भीति हाली तिह्वारि जांणूउ जे काई उतपात काई देवता, प्राकम शास्त्र न्याइ निरधारूं एतलइ तु घर घर प्रति ड्रहालु थयु लोक घर बाहरि नीकला सहू इंमज कहि जे अह्मारूं घर पडइ छड् पडइ छइ । घर उपरि नलीआ हालां एहवू देवचरित्र हूउ । पाटणमा पणि घर घणा पड्या । माणसनी पणि केतलाएकनी उपघात थई । रेवा नदी माहि तु पाणीमा शाप उपना सांभल्या लखितं लाल०साध से (लालचंद साधसेवक ?) ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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